World IVF day: भारत में पहला टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा कराने वाले डॉक्टर ने कर ली थी आत्महत्या, यह है वजह

विश्व आईवीएफ दिवस आज 25 जुलाई को है। डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय भारत में आईवीएफ को ईजाद करने वाले हीरो हैं। भारत का पहला और विश्व का दूसरा टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा करवाने का श्रेय इनको जाता है। उसके बावजूद उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला।

By Umesh KdhyaniEdited By: Publish:Sun, 25 Jul 2021 11:23 AM (IST) Updated:Sun, 25 Jul 2021 11:23 AM (IST)
World IVF day: भारत में पहला टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा कराने वाले डॉक्टर ने कर ली थी आत्महत्या, यह है वजह
भारत में आईवीएफ तकनीक खोजने वाले डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय।

रवि धवन, पानीपत। आइवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) यानी पिता के शुक्राणु और माता के अंडाणु को अलग निषेचित कर मां के गर्भ में प्रत्यारोपित करके बच्चे को जन्म देने की विधा है। इस विधा ने ऐसे दंपतियों की गोद भरी है, जो बरसों से संतान को तरस रहे थे। पहले ऐसे बच्चों को टेस्ट ट्यूब बेबी कहा जाता था।

पानीपत के निरूमा फर्टिलिटी एवं आइवीएफ सेंटर की निदेशक डॉ. दिशा मल्होत्रा बताती हैं कि पहले ऐसे बच्चों को टेस्ट ट्यूब बेबी कहा जाता था। विश्व में पहला टेस्ट ट्यूब बेबी 25 जुलाई 1978 को लंदन में पैदा हुआ था, जिसका नाम लुइस जोय ब्राउन है। इस दिन को विश्व आइवीएफ दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन लुइस के जन्म के महज 67 दिन बाद भारत में पहले टेस्ट ट्यूब बेबी को दुनिया में लाने वाले चिकित्सक को बंगाल सरकार ने इतना उत्पीड़ित किया कि 19 जून 1981 को उन्होंने आत्महत्या कर ली। 

डॉ. दिशा कहती हैं कि अगर डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय की खोज को सम्मान देते हुए उनकी तकनीक को आगे बढ़ाया जाता तो आज इस क्षेत्र में बहुत आगे होते। उनके दावे को स्वीकार न करने का कारण यह था कि एक भारतीय चिकित्सक की इतनी बड़ी उपलब्धि विदेश के चिकित्सकों के गले नहीं उतर रही थी। उन्होंने मुखोपाध्याय के दावे को निरस्त कर दिया और दुनिया में ही नहीं, देश में भी बहुत से लोगों ने उनका उपहास किया। बंगाल की ज्योति बसु की सरकार ने उनके दावे को गलत बताते हुए उनका तबादला कर दिया। तमाम तरह से उत्पीड़न किया। लेकिन उनकी मौत के बाद दुनिया के विशेषज्ञों ने माना कि डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय की तकनीक सही थी और उनका दावा भी उचित था।

डॉ. टीसी आनंद कुमार सामने लाए उपलब्धि

यह भी गौरतलब है कि डॉ. मुखोपाध्याय के निधन के बाद उनके शोध और कार्य को वही व्यक्ति दुनिया के सामने लाया, जिसे भारत में पहले टेस्ट ट्यूब बेबी को दुनिया में लाने वाला माना गया। वह थे डॉ. टीसी आनंद कुमार। डॉ. आनंद ने दुर्गा के जन्म के आठ वर्ष बाद एक टेस्ट ट्यूब बेबी को पैदा कराया था। वह भी कन्या ही था और उसका नाम था हर्षा। हर्षा को देश में तब तक पहली टेस्ट ट्यूब बेबी माना जाता रहा, जब तक डॉ. आनंद ने स्वयं देश में पहला टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा कराने का श्रेय डाक्टर मुखोपाध्याय को नहीं दिया।

डॉ. मुखोपाध्याय की डायरी से सामने आया सच

देश और दुनिया ने तो डाक्टर मुखोपाध्याय के योगदान को भुला ही दिया होता, लेकिन उनकी डायरी और शोध कार्य से संबंधित दस्तावेज डाक्टर आनंद को डाक्टर मुखोपाध्याय की पत्नी ने उपलब्ध करा दिए। उनका अवलोकन करने के बाद पूरी ईमानदार से डाक्टर आनंद ने स्वीकार कर लिया कि भारत में पहले टेस्ट ट्यूब बेबी को पैदा कराने वाले डॉ. मुखोपाध्याय ही थे। उन्होंने 1978 में जिस कन्या दुर्गा के जन्म कराने की बात कही थी। वह एकदम ठीक थी और इसके भारत में पहले टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म देने का श्रेय उन्हीं को मिलना चाहिए मुझे (डॉ. आनंद) नहीं।

डॉ. मुखोपाध्याय के दावे को मिली अंतरराष्ट्रीय मान्यता

आज के बीस वर्ष पहले आखिरकार डॉ. मुखोपाध्याय के दावे को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्रदान हो गई। यह बात अलग है कि तब तक दुनिया को अलविदा कहे डॉ. मुखोपाध्याय को 16 वर्ष हो चुके थे। अब डॉ. मुखोपाध्याय की उपलब्धियों को डिक्शनरी ऑफ मेडिकल बायोग्राफी में शामिल किया गया है। इसमें पूरी दुनिया के सौ देशों के 1100 प्रमुख चिकित्सा विशेषज्ञों के योगदान का उल्लेख किया जाता है। 

तो एक और भारतीय को मिल जाता नोबल

विश्व में पहले टेस्ट ट्यूब बेबी को पैदा कराने वाले डॉ. राबर्ट एडवर्ड, जिन्हें आइवीएफ तकनीक का जनक माना जाता है, उन्हें 2010 में मेडिसिन में नोबल पुरस्कार मिला। वास्तविकता यह है कि डॉ. मुखोपाध्याय और एडवर्ड ने आइवीएफ पर लगभग साथ-साथ कार्य आरंभ किया था। यदि भारत डॉ. मुखोपाध्याय का साथ देता और दावा पेश करता तो संभव था कि डॉ. मुखोपाध्याय को नोबल पुरस्कार मिलता। या फिर मुखोपाध्याय और एडवर्ड को संयुक्त रूप से मिलता।

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