वर्ल्ड हेरिटेज Kalka-Shimla Rail Track पर कागजों में 30 व पटरी पर 25 KM की रफ्तार से दौड़ती रही ट्रेन
रेल अधिकारी कालका-शिमला ट्रेन को कागजों में 30 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ाते रहे जबकि हकीकत में यह ट्रेन 25 किलोमीटर की रफ्तार से चली। दो साल बाद लखनऊ के आरडीएसओ ने स्पीड सर्टिफिकेट में बदलाव किया।
दीपक बहल, अंबाला। ब्रिटिशकालीन कालका-शिमला वर्ल्ड हेरिटेज ट्रैक पर टाय ट्रेन की स्पीड बढ़ाने के मामले में रेलवे की बड़ी कागजी चूक सामने आई है। कागजों में यह ट्रेन इस ट्रैक पर वर्ष 2019 से 30 किलोमीटर प्रति घंटा (केएमपीएच) की रफ्तार से दौड़ रही है, लेकिन हकीकत में स्पीड 25 किलोमीटर प्रति घंटा ही है। इस बड़ी चूक से पर्दा तब उठा है जब तत्कालीन रेल मंत्री पीयूष गोयल की ट्रेन की स्पीड बढ़ाने की सिफारिश के बाद लखनऊ के रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड आर्गेनाइजेशन (आरडीएसओ) ने सर्वे शुरू किया।
गोयल ने मार्च 2021 में शिमला का दौरा कर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री से रीअलाइनमेंट के लिए रेलवे को जमीन देने की मांग की थी। हालांकि अब फिर से 25 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेन दौड़ाने का सर्टिफिकेट जारी किया गया है।
इस कारण नहीं बढ़ाई जा सकती स्पीड
ट्रेन की स्पीड बढ़ाने के पीछे बड़ा अड़ंगा ट्रैक पर 48 डिग्री का कर्व है। इस कर्व पर 30 केएमपीएच की स्पीड से गाड़ी दौड़ाना खतरनाक होगा, इसलिए अंबाला रेल मंडल के अधिकारियों 30 केएमपीएच का सर्टिफिकेट जारी होने के बावजूद ट्रेन की रफ्तार को नहीं बढ़ाया। इस सेक्शन में करीब 919 कर्व हैं। यह ट्रैक कालका से शिमला तक 102 सुरंगों को काटकर बिछाया गया था। सन 2008 में यूनाइटेड नेशन एजुकेशन, साइंटिफिक एंड कल्चरल आर्गेनाइजेशन (यूनेस्को) ने इस ट्रैक को वर्ल्ड हेरिटेज घोषित किया था। ऐसे में इस ट्रैक पर कोई भी बदलाव यूनेस्को की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता है। कुछ भी बदलाव करने के लिए रेलवे को यूनेस्को से नो आब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी) लेना होता है।
117 साल पहले शुरु हुई थी ट्रेन
कालका-शिमला रेल मार्ग पर करीब 117 साल पहले नैरो गेज लेन पर ट्रेन चलाई गई थी। कालका-शिमला रेलमार्ग पर 861 पुल बनाए गए हैं। बड़ोग रेलवे स्टेशन पर 33 नंबर सुरंग सबसे लंबी है। इस सुरंग की लंबाई 1143.61 मीटर है। सुरंग को क्रास करने में ट्रेन ढाई मिनट का समय लेती है।