कालका से चंडीगढ़ रेल हादसा: बड़ा हादसा न हो इसलिए पटरी से नीचे उतारा था अनियंत्रित इंजन

कालका से चंडीगढ़ जा रहे रेल इंजन को पटरी से उतारने के मामले में सामने आया है कि बड़ा रेल हादसा न हो इस वजह से इंजन को पटरी से नीचे उतारा था। लखनऊ से इंजन को निकालने के लिए आएगी टीम। चार सदस्यीय कमेटी हादसे की जांच में जुटी।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Sat, 23 Oct 2021 08:46 AM (IST) Updated:Sat, 23 Oct 2021 08:46 AM (IST)
कालका से चंडीगढ़ रेल हादसा: बड़ा हादसा न हो इसलिए पटरी से नीचे उतारा था अनियंत्रित इंजन
कालका से चंडीगढ़ आ रहा रेल इंजन पटरी से उतरा।

अंबाला, [दीपक बहल]। हिल स्टेशनों पर अनियंत्रित इंजन या फिर रेलगाड़ी होने पर रेलवे का तकनीकी सिस्टम कुछ ऐसा है कि वह रेलगाड़ी को मुख्य लाइन की जगह स्लिप साइडिंग की ओर रवाना कर देता है ताकि कोई बड़ा हादसा न हो। अनियंत्रित इंजन बफर एंड से उतरकर या तो रुक जाता है या फिर पटरी से नीचे उतर जाता है। कुछ इस तरह का हादसा हाल ही में कालका से चंडीगढ़ आ रहे रेल इंजन के साथ चंडी मंदिर के पास हुआ। यह इंजन कालका वर्कशाप में डिब्बे छोड़कर वापस आ रहा था। इंजन की ब्रेक फेल हो गई, जिसे रेलवे के आपरेटिंग डिपार्टमेंट ने मेन लाइन पर हरा सिग्‍नल देने की बजाए इंजन को स्लिप साइडिंग की ओर धकेल दिया।

इंजन की स्पीड करीब 80 किलोमीटर प्रतिघंटा थी, जो बफर एंड को तोड़ती हुई पटरी से नीचे उतरकर दस फुट के गड्ढे में जा गिरा। इस हादसे में रेलवे के लोको पायलट समेत तीन कर्मचारी घायल हो गए लेकिन यही इंजन यदि मेन लाइन पर आ जाता, तो बड़ा हादसा हो सकता था। रेलवे के आंतरिक तकनीकी सिस्टम के कारण ही इंजन नीचे उतरा।

लखनऊ से आएगी टीम

रेल पटरी से करीब 50 फीट दूर गड्ढे में डेढ़ सौ टन का इंजन 20 अक्टूबर को नीचे उतरा था। एक ओर रेलवे की ओवरहेड इक्विपमेंट (ओएचई) और दूसरी ओर जंगल है। यही कारण है कि तीसरे दिन भी इंजन गड्ढे से नहीं निकाला जा सका। शुक्रवार को अंबाला रेल मंडल कार्यालय से अधिकारी मौके पर गए और इंजन को निकालने का प्रयास किया गया। आसपास सफाई कर दी गई, लेकिन इंजन के व्हील काफी क्षतिग्रस्त हो चुके हैं, जिस कारण इनको निकालना संभव नहीं हो पाया। अब रेलवे की लखनऊ स्थित वर्कशाप से टीम आएगी, जिसके मार्गदर्शन पर इंजन को निकाला जाएगा। इस इंजन को पटरी पर लाने के बाद वर्कशाप भेजा जाएगा। इसे वर्कशाप तक रेलमार्ग से ले जाना है या सड़क यह लखनऊ की टीम तय करेगी।

यह होता है स्लिप साइडिंग का रोल

पहाड़ी रेल मार्ग पर स्लिप साइडिंंग बनी होती है। डाउन के समय जब भी रेलगाड़ी अथवा सिर्फ इंजन आ रहा होता है, तो स्टार्टर के पास गाड़ी को रुकना होता है। स्टार्टर वह पाइंट होता है, जहां पहाड़ी क्षेत्र से डाउन आने वाली गाड़ी को रोका जाता है। यह सिस्टम हर गाड़ी पर लागू होता है। यदि गाड़ी रुक जाती है, उसे आगे मेन लाइन पर जाने के लिए ग्रीन सिगनल मिल जाता है। यदि यहां पर गाड़ी नहीं रुकती, तो रेलवे का तकनीकी सिस्टम गाड़ी को स्लिप साइडिंग की ओर रवाना कर देता है। स्लिप साइडिंग पर बफर एंड बने होते हैं, जिससे टकराकर गाड़ी रुक जाती है या फिर पटरी से उतर जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि इंजन या गाड़ी मेन लाइन पर न आ जाए और दूसरी दिशा (अप साइड) से आ रही गाड़ी से टकरा न जाए। हालांकि इस इंजन की स्पीड अधिक थी, इसलिए यह बफर एंड को तोड़ता हुआ दस फीट के गड्ढे में जा गिरा। उधर, डीआरएम जीएम सिंह ने कहा कि जांच कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार है, जबकि इंजन को सीधा करने के लिए अधिकारी और कर्मचारी काम कर रहे हैं।

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