Fake call center in Ambala: घूंघट पैलेस को हर महीने पौने छह लाख किराया देते थे ठग, सोनीपत एसटीएफ करेगी जांच
अंबाला में घूंघट पैले मे फर्जी कॉल सेंटर पकड़ा गया था। यहां यूएसए के नागरिकों से ऑनलाइन ठगी की जाती थी। इसमें नागालैंड मुंबई के युवक-युवतियों को रखा हुआ था। अब इस हाईप्रोफाइल मामले की जांच अंबाला की एसटीएफ करेगी।
अंबाला, जेएनएन। कॉल सेंटर की आड़ में घूंघट पैलेस में चल रहे साइबर ठगी के हाईप्रोफाइल मामले की जांच का जिम्मा अब सोनीपत एसटीएफ के पास होगा। अंबाला के सदर थाने में मुकदमा दर्ज होने के बाद जांच सोनीपत भेज दी गई है। जहां आरोपितों के जरिये मामले की तह तक पहुंचा जाएगा।
अंबाला के घूंघट पैलेस में चल रहे ठगी के खेल से कौन कौन वाकिफ था और इसमें कौन कौन शामिल होकर साइबर क्राइम कर रहा था। इस खेल में घूंघट पैलेस के मालिक की राह भी आसान नहीं है। क्योंकि पैलेस मालिक के पास हर माह ठगों के पास से बतौर किराया पौने छह लाख रुपये की राशि आती थी।
यूएसए के नागरिकों से करते थे ठगी
बता दें कि अंबाला-हिसार रोड स्थित गांव रूपोमाजरा के पास नरेश छाबड़ा की ओर से घूंघट पैलेस बनाया गया था। इसमें शादी समारोह वगैरह होते थे, लेकिन पिछले छह माह से इसमें काल सेंटर की आड़ में ऑनलाइन ठगी होती रही। इसके हॉल में 200 कंप्यूटर लगाए हुए थे। इसमें नागालैंड, मुंबई के युवक-युवतियों को रखा हुआ था। एसटीएफ को छापामारी में 89 युवक और 37 युवतियां मिली थीं। इन्हें रोजाना शाम को बस में जीरकपुर से घूंघट पैलेस में लाया जाता था और सुबह वापस छोड़ा जाता था। ये रात भर यूएसए के नागरिकों के साथ ऑनलाइन ठगी करते थे।
आरोपितों के नेटवर्क का पता लगाएगी एसटीएफ
फिलहाल मामले की जांच अब सोनीपत एसटीएफ करेगी। आरोपितों के नेटवर्क का पता लगाया जाएगा। आरोपितों ने अब तक किन-किन जगहों पर यह ठगी का खेल किया है और आरोपित किस तरीके से अमेरिकी नागरिकों के खाते से डालर उड़ाते रहे हैं। कहीं इस साइबर क्राइम में किसी बड़ी कंपनी के कर्मियों की मिलीभगत तो नहीं है। इसकी जांच चल रही है।
ठगों ने गेट पर लगाया बंद का बोर्ड, मालिक बेखबर
साइबर ठगों ने घूंघट पैलेस के गेट पर बोर्ड लगाया हुआ था। जिस पर लिखा हुआ था अस्थायी तौर पर दिसंबर 2021 तक पैलेस को बंद कर दिया गया है। पैलेस में मरम्मत का काम चल रहा है। साइबर ठगों ने लगभग छह माह तक ठगी का सेंटर चलाया। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या मालिक अपने पैलेस पर छह माह तक गया नहीं या फिर उसकी रजामंदी से आंखों में धूल झौंकी जाती रही। पूरे खेल का मकसद यही था कि किसी को भनक तक न लगे। जबकि पैलेस के अंदर किसी भी तरह की रिपेयर का काम नहीं हो रहा था।
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