यमुनानगर का सूर्यकुंड मंदिर, चातुर्मास में बन जाती संतों की नगरी, जानिए क्‍या है महत्‍व

यमुनानगर का सूर्यकुंड मंदिर चातुर्मास में संतों की नगरी बन जाता है। यह सिलसिला 40 वर्षों से जारी है। यहां पर दूर-दराज से संत महात्‍मा पहुंचते हैं। शिवरात्रि को मंदिर में भगवान शिव की विशेष आराधना की जाती है।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Thu, 05 Aug 2021 05:03 PM (IST) Updated:Thu, 05 Aug 2021 05:03 PM (IST)
यमुनानगर का सूर्यकुंड मंदिर, चातुर्मास में बन जाती संतों की नगरी, जानिए क्‍या है महत्‍व
अमादलपुर के सूर्यकुंड मंदिर में पहुंचे साधु संत।

यमुनानगर, जागरण संवाददाता। चातुर्मास में अमादलपुर का सूर्यकुंड मंदिर दूर-दराज से आए साधु-संतों की नगरी बना हुआ है। यहां अयोध्या, काशी, हरिद्वार, प्रयाग सहित अन्य धार्मिक स्थलों से संतजन मंत्र, जाप, ध्यान व साधना कर रहे हैं। मंदिर के महंत गुण प्रकाश चैतन्य महाराज के मुताबिक 40 वर्ष से यह सिलसिला जारी है। उनका कहना है कि सनातन धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व है। इसमें सावन, भादौ,आश्विन और कार्तिक का महीना आता है। चातुर्मास के चलते साधु संत एक ही स्थान पर रहकर जप और तप करते हैं।

चातुर्मास में इसलिए आते हैं संत

महंत गुण प्रकाश चैतन्य महाराज बताते हैं कि चातुर्मास में ऋषि मुनियों की एक स्थान पर रहकर पूजा-अर्चना, जाप, ध्यान व साधना करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इन चार माह में व्याधियों व कीटों का प्रकोप अधिक होता है। खासतौर पर पानी के स्थल पर, चूल्हे के स्थल पर व झाड़ू के स्थल पर जाने अंजाने में हिंसा अधिक हो जाती है। इसलिए संत-महात्मा एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जाते। इन दिनों में नदी-नाले को लांघना भी पाप माना जाता है। संत-महात्मा एक समय आहार लेकर भगवान की उपासना करते हैं।

दूर-दराज से आते हैं संत

प्रयागराज तीर्थ से महाराज सुरेशाश्रम, नैनीशारण्य से स्वामी दीपीनाश्रम, काशी से स्वामी राम चंद्र आश्रम महाराज, हरिद्वार से भगवान आश्रम महाराज व नैनीशारण्य से स्वामी राजेशाश्रम महाराज ने बताया कि वे हर साल चातुर्मास में सूर्यकुंड मंदिर में आते हैं। यहीं रहकर ध्यान-साधना करते हैं। भगवान की उपासना करते हैं। यहां का माहौल व वातावरण उनको बहुत अच्छा लगा है। भव्य मंदिर में प्रवेश करते ही मन को शांति व सुकून की अनुभूति होती है। महंत गुण प्रकाश चैतन्य महाराज के मार्गदर्शन में मंदिर भव्यता दिनोंदिन बढ़ रही है।

सवा सौ किलो दूध की धारा से होगा जलाभिषेक

महंत गुण प्रकाश चैतन्य महाराज ने बताया कि छह अगस्त को शिवरात्रि के दिन शाम को छह बजे भगवान शंकर को रूद्राभिषेक किया जाएगा। सवा सौ किलो दूध की धारा से अभिषेक होगा। दही, घी, मधु, शक्कर का प्रयोग किया जाएगा। भांग, धतूरा, अर्क पुष्प, शमी पत्र, कमल पुष्प, अन्य पुष्पों से रूपेश्वर महादेव मंदिर को सजाया जाएगा। फल, नैवेद्य का प्रचूर मात्रा में भोग लगाया जाएगा। इस दिन भारी संख्या में श्रद्धालु दूर-दराज से पहुंचकर पूजा-अर्चना करेंगे। इस दिन का विशेष महत्व होता है।

chat bot
आपका साथी