हजकां के टिकट पर चुनाव लड़े मदान, इनेलो के भगत को दे दिया था समर्थन Panipat News

पूर्व मंत्री सुरेंद्र मदान ने पांच में से दो चुनाव जीते थे। दोनों बार मंत्रीमंडल में जगह मिली थी। उन्होंने भाजपा से राजनीति की शुरूआत की थी।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Fri, 20 Sep 2019 03:55 PM (IST) Updated:Sat, 21 Sep 2019 09:57 AM (IST)
हजकां के टिकट पर चुनाव लड़े मदान, इनेलो के भगत को दे दिया था समर्थन Panipat News
हजकां के टिकट पर चुनाव लड़े मदान, इनेलो के भगत को दे दिया था समर्थन Panipat News

पानीपत/कैथल, [सुरेंद्र सैनी]। वर्ष 1987 में लोकदल व वर्ष 1991 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ विधानसभा में पहुंचे पूर्व मंत्री सुरेंद्र मदान ने 2005 में टिकट न मिलने पर कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया था। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल द्वारा बनाई गई हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) को ज्वाइन कर लिया था। 

वर्ष 2009 के विधानसभा चुनाव में हजकां की टिकट पर कैथल विधानसभा से चुनाव में उतरे, लेकिन प्रचार के लिए जब भजन लाल व कुलदीप बिश्नोई नहीं आए तो सहयोग न मिलने पर इनेलो की टिकट पर चुनाव लड़ रहे कैलाश भगत को समर्थन कर दिया था, हालांकि उनके समर्थन के बावजूद कैलाश इस चुनाव में करीब साढ़े 22 हजार वोटों से हार गए थे। 

अब इनेलो में हैं मदान

सुरेंद्र मदान अब इनेलो पार्टी में हैं। वर्ष 1996 में कांग्रेस पार्टी ने उनका टिकट काट दिया था। इसके बाद उन्होंने आजाद चुनाव लड़ा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। 2000 में फिर कांग्रेस ने उन्हें उम्मीदवार बना दिया, इस चुनाव में वे इनेलो के लीला राम से हार गए। 

हजकां ने सुरजेवाला को दे दिया था समर्थन

2005 में कांग्रेस की टिकट पर मजबूत दावेदार थे, लेकिन पूर्व सिंचाई मंत्री शमशेर सिंह सुरजेवाला कांग्रेस की टिकट लेने में सफल रहे। इस चुनाव में उन्होंने सुरजेवाला का सहयोग किया, लेकिन कांग्रेस सरकार बनने पर अनेदखी होने के बाद पार्टी को छोड़ दिया था। पूर्व मंत्री मदान बताते हैं कि 2009 के विधानसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई ने उन्‍हें धोखा देते हुए कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार सुरजेवाला का समर्थन किया था। 

पांच चुनावों में से दो जीते, दोनों बार मंत्रीमंडल में मिली जगह

पूर्व मंत्री सुरेंद्र मदान ने कुल पांच चुनाव लड़े। इनमें वर्ष 1987 में पहली बार लोकदल पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ा। 35 साल की उम्र में यह चुनाव लड़ते हुए जीत गए। एक साल बाद मंत्रमंडल में जगह मिल गई। देवीलाल के केंद्र सरकार में जाने के बाद यहां ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री बना दिया गया। इस सरकार का कार्यालय पूरा होने से पहले ही मदान ने सरकार पर अनदेखी का आरोप लगाते हुए विधायक व मंत्री पद से इस्तीफा देते हुए पार्टी छोड़ दी। इसके बाद वर्ष 1991 में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली। पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल से मिलते हुए टिकट ले आए और इस चुनाव में रिकार्ड 6 हजार वोटों से जीते। पूर्व के हुए चुनावों में यह अब तक का सबसे ज्यादा वोटों से जीतने का यह रिकार्ड था। इसके बाद वर्ष 1996 में कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय चुनाव लड़े और कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी से ज्यादा वोट लेने में सफल रहे। 

पार्टी को दिखाना था अपनी मजबूत छवि

मदान बताते हैं कि उन्होंने यह चुनाव इसलिए निर्दलीय लड़ा था कि पार्टी को दिखाना था कि वे आज भी दूसरे नेताओं से कहीं ज्यादा मजबूत हैं। इस चुनाव में पार्टी को हार के रूप में खामियाजा भुगतना पड़ा। 2000 का विधानसभा चुनाव फिर कांग्रेस पार्टी से लड़ा, इस चुनाव में इनेलो की लहर के चलते हार गए। 2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर मजबूत दावेदार थे, लेकिन कांग्रेस ने शमशेर सिंह सुरजेवाला को टिकट थमा दी। 

भाजपा से की थी राजनीतिक की शुरूआत, चार साल रहे, बाद में लोकदल ज्‍वाइन कर बने विधायक

पूर्व मंत्री सुरेंद्र मदान ने बताया कि उन्होंने वर्ष 1980 में जब भाजपा पार्टी बनी तो इसे ज्वाइन किया था। भाजपा युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष की उन्हें जिम्मेदारी मिली। इस मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष प्रो. रामबिलास शर्मा होते थे। उन्होंने कैथल में कई कार्यक्रम आयोजित करवाए। वर्ष 1984 में इंद्रजीत सरदारा को इस मोर्चा का जिलाध्यक्ष बनवाते हुए वे लोकदल में शामिल हो गए। उन्होंने लोकदल पर चुनाव लडऩे के लिए काफी मेहनत की। एक रात हम तीन बजे शहर में लोकदल पार्टी के पोस्टर लगा रहे थे तो उस समय जिलाध्यक्ष गुरदयाल सैनी वहां से निकल रहे थे। हमें पोस्टर लगाते देख रुके और कहा कि रात को पोस्टर क्यों लगा रहे हो तो उन्होंने कहा कि दिन में कौन पोस्टर लगाने देता है। उनके इस कार्य की गुरदयाल सैनी ने एक मंच पर जब चर्चा की तो देवीलाल ने उनकी पीठ थपथपाई थी। 

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