Stubble Burning: अंबाला के किसान नहीं जलाते पराली, इस तकनीक का इस्तेमाल कर पेश की मिसाल
अंबाला के हल्दरी गांव के किसान पराली को जलाते नहीं बल्कि इस तरह से पराली का प्रबंधन करते हैं। धान की कटाई के बाद जिस खेत में दूसरी फसल उगाते हैं तो उसे सुपरसीडर कृषि यंत्र से तैयार करते हैं और पराली को मिट्टी में मिक्स हो जाती है।
अंबाला शहर, जागरण संवाददाता। साहा ब्लाक के गांव हल्दरी के किसान धान के अवशेष पराली को नहीं जलाते, बल्कि इसका समाधान करते हैं। धान की कटाई के बाद जिस खेत में आलू की फसल उगाते हैं तो उस खेत को सुपरसीडर कृषि यंत्र से तैयार करते हैं। यह यंत्र पराली को मिट्टी में मिक्स कर देता है और जिस खेत में गेहूं उगाया जाता है उस खेत में पहले कटर से पराली की कटाई की जाती है। जिसके बाद पराली की गांठे बनवाकर खेत से निकाला जाता है।
बता दें कि मिश्रित खेती को देखकर चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार की ओर से कृषि मेले में उन्हें जिले में बतौर प्रगतिशील किसान चुना था। हल्दरी के शमशेर सिंह 12वीं पास हैं, लेकिन खेती में सभी को मात दे रहे हैं। जो बीते कार्यकाल में गांव के सरपंच भी रह चुके हैं। उन्होंने बताया कि वह 19 एकड़ में खेती करते हैं। फसल को बचाने और अधिक पैदावार लेने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में रहते हैं। इसी वजह से उन्हें सम्मानित किया गया।
गन्ने के साथ-साथ चन्ना या प्याज की लेते हैं फसल
शमशेर सिंह बताया कि वह गन्ना में चन्ना या प्याज की फसल एक साथ लेते हैं। उन्होंने चार एकड़ में गन्ना लगाया था। इससे डबल फसल लेते हैं। इसके बाद खेत में कम पानी वाली धान लगाते हैं। हर साल फसल परिवर्तन करते हैं। गेहूं-धान से हटकर फसल चक्र अपनाते हैं। अक्टूबर में गन्ना लगा देते हैं, गन्ने को खुड (निचले एरिया) में और मेढ़ पर चन्ना लगा देते हैं। इसमें दोनाें एक साथ होते हैं। चन्ने की कटाई गेहूं के साथ अप्रैल में की जाती है। इसके बाद गन्ने के खुड में मेढ़ की मिट्टी भर देते हैं। गन्ना एक साल में नवंबर तक तैयार होता है। जब भी मील चलता है उसके बाद कटाई करते हैं। इसमें गन्ने के साथ चन्ना या प्याज की अतिरिक्त फसल हो जाती है।
आलू में पिछले साल एक एकड़ से 1 लाख 90 हजार हुई था आमदन
हल्दरी के शमशेर सिंह ने बताया कि पिछले साल आलू पांच एकड़ में लगाए थे। एक एकड़ में से 1 लाख 90 हजार के आलू की पैदावार हुई। आलू 29 रुपये और 19 रुपये प्रति किलो आलू तक बिका। वह आलू अगेता लगाते हैं, लेकिन इस बार बरसात के कारण देरी हो रही है। इसके बाद नवंबर तक आलू पटने पर कोई नुकसान नहीं आता। 400 क्विंटल प्रति एकड़ गन्ना का उत्पादन होता है। कच्चा आलू 60 क्विंटल प्रति एकड़ जबकि पकने पर 100 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है। प्याज 80 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार, चन्ना 8 क्विंटल प्रति एकड़ तक उत्पादन हो जाता है।
खुद किया बीज तैयार
शमशेर ने बताया कि पिछले साल 15 सितंबर को आलू लगाया था और अक्टूबर में निकाल लिया था। फिर वह पंजाब के जालंधर से आलू का बीज लेकर आये थे और 1 नवंबर को आलू लगाया था। चार माह बाद आलू का छज्जा काटा दिया जाता है। दस दिन छोड़ दिया जाता अच्छी तरह पकने पर बीज तैयार किया जाता है।
हर साल अपनाते हैं फसल चक्र
15 जून को धान लगाते हैं, जिसे सितंबर में कट जाने के बाद इसमें आलू लगाया जाता है। उसके बाद जनवरी में प्याज करते हैं। वह सूरजमुखी के भी चार एकड़ में खेती करते हैं। गन्ने के खेत खाली होने पर जनवरी में सूरजमुखी भी करते हैं। गेहूं-धान के मुकाबले दूसरी फसलों में ज्यादा फायदा है। क्योंकि धान में खर्चा काफी है।