एमरजेंसी का वो दौर... पुलिस छापेमारी करती, रातोंरात भूमिगत हो जाते सत्याग्रही

एमरजेंसी के दौर में करनाल के ओमप्रकाश अत्रेजा महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों में शामिल थे। दिल्ली से दर्पण पत्रिका निकालते थे। पांच बार जेल गए। फिर बाहर निकलते और नए जोश के साथ जुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद करते। पूरे हरियाणा में भूमिगत होकर पर्चे बांटते थे।

By Umesh KdhyaniEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 01:50 PM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 01:50 PM (IST)
एमरजेंसी का वो दौर... पुलिस छापेमारी करती, रातोंरात भूमिगत हो जाते सत्याग्रही
करनाल के लोकतंत्र सेनानी ओमप्रकाश अत्रेजा आपातकाल से जुड़ीं यादें साझा करते हुए।

करनाल, जेएनएन। आपातकाल की यादों से लोकतंत्र सेनानी और सेवा भारती के प्रांतीय संरक्षक ओमप्रकाश अत्रेजा का गहरा नाता है। वह बताते हैं कि उस दौर में सत्याग्रहियों के पीछे पड़ी पुलिस लगातार छापेमारी कर रही थी। कई बार तो घर की दहलीज पर पहुंचते ही पता चलता कि अंदर सर्च ऑपरेशन चल रहा था तो रातोंरात भूमिगत हो जाते। फिर बाहर निकलते और नए जोश के साथ जुल्म की मुखालफत में जुट जाते।

अत्रेजा बताते हैं कि उन्होंने मोहाली में हुए महासम्मेलन में इंदिरा गांधी के भाषण के समय नारेबाजी के बीच पर्चे भी फेंके थे। आपातकाल के दौरान अत्रेजा को बुडैल, चंडीगढ़ व करनाल में बंदी बनाकर रखा गया। बुडैल जेल में पहले 21 माह और फिर तीन माह बंदी रहे। करनाल में आठ माह से अधिक रहे। वह दिल्ली से दर्पण नामक पत्रिका भी निकालते थे। 

अत्रेजा करीब बीस वर्ष से सेवा भारती में अनवरत सेवाएं दे रहे हैं। सेवा भारती के अर्जुन गेट स्थित कार्यालय में वह संघ की कक्षाएं भी लगाते रहे हैं। आपातकाल पर चर्चा में अत्रेजा बताते हैं कि वह 26 जून 1975 की दोपहर थी, जब प्रेम गोयल और तत्कालीन जनसंघ के प्रदेशाध्यक्ष व अंबाला के पूर्व सांसद चौधरी सूरजभान का संदेश मिला कि उन्हें गिरफ्तारी नहीं देनी। वह गुरुग्राम सूचना देने निकल गए। अगले दिन जब रात करीब एक बजे करनाल घर पहुंचे और दरवाजा खटखटाया तो सभी सदस्यों ने अंदर से ही कहा कि तुरंत भाग जाओ। कल पूरी रात पुलिस घर का कोना-काेना छान गई है। तुम्हारी जोर-शोर से तलाश हो रही है।

पिता और भाई को ले गई पुलिस, दीं यातनाएं

इसके बाद वह तुरंत लौटकर भूमिगत हो गया। वहीं पिताजी और छोटे भाई राम लाल अत्रेजा को पुलिस यह कहकर ले गई कि ओम प्रकाश को पेश करोगे तो ही उन्हें छोड़ा जाएगा। लेकिन मैं उनकी पकड़ में नहीं आया। पिताजी और भाई को जेल में यातनाएं दी जा रही थीं। इसके बावजूद पिता व भाई ने संदेश भिजवाया कि उन्हें  पुलिस के हाथ नहीं लगना है। उन्होंने ऐसा ही किया और अन्य सत्याग्रहियों के साथ लगातार पुलिस को चकमा देते रहे। 

महासम्मेलन में फेंके थे पर्चे

आपातकाल के समय अत्रेजा अशोक विहार दिल्ली से दर्पण नाम से पत्रिका निकलाते थे। पूरे हरियाणा में भूमिगत होकर पर्चे बांटते थे। इस कारण कई कार्यकर्ता गिरफ्तार भी हो गए थे। 29, 30 व 31 दिसंबर 1975 को कांग्रेस का अखिल भारतीय कामागाटामारू महासम्मेलन मोहाली में होना तय था। संघर्ष समिति ने तय किया था कि उस सम्मेलन में जब इंदिरा गांधी भाषण शुरू करेंगी तो सभागार में सत्याग्रह किया जाएगा। जब इंदिरा गांधी ने भाषण शुरू किया तो पांच-छह सत्याग्रहियों ने सरकार विरोधी नारे लगाने शुरू कर दिए। पुलिस उन्हें पकड़कर ले गई। भाषण फिर शुरू हुआ तो फिर पांच-छह सत्याग्रहियों ने नारे लगाने शुरू कर दिए। पुलिस फिर उन्हें पकड़कर ले गई। इंदिरा गांधी को गुस्सा आया तो सत्याग्रहियों ने वहां पर्चे फेंकने शुरू कर दिए। 

पांच बार की जेल यात्रा 

अत्रेजा को आपातकाल के दौरान पांच बार जेल की यात्रा करनी पड़ी। वह याद करते हुए बताते हैं कि गोरक्षा आंदोलन के दौरान लाखों लोग दिल्ली पहुंच कर प्रदर्शन कर रहे थे। तब प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग कर दी गई। एक गोली कान के पास से निकलकर गई। सरकारी आंकड़ों में लोगों की मौत कम दिखाई गई, जबकि काफी संख्या में लोग गोली का शिकार हुए थे। आपातकाल के दौरान उन्हें बुडैल, चंडीगढ़ व करनाल जेल में बंदी बनाकर रखा गया। बुडैल जेल में पहले 21 माह और फिर करीब तीन माह बंदी रहे। करनाल में आठ माह से अधिक समय तक जेल में रहे।

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