अब नहीं चलेगी मनमर्जी, एनसीईआरटी की किताब ही पढ़नी होंगी
निजी स्कूल संचालक किसी भी निजी प्रकाशन की पुस्तकें नहीं पढ़ा सकेंगे।
जागरण संवाददाता, पानीपत
: निजी स्कूल संचालक किसी भी निजी प्रकाशन की पुस्तकें नहीं पढ़ा सकेंगे। अब उन्हें बच्चों को राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की पुस्तकें ही पढ़ानी होंगी। इसको लेकर गजट अधिसूचना जारी करने के साथ सेकेंडरी शिक्षा निदेशालय ने प्रदेश के सभी डीईओ व डीईईओ को निजी स्कूलों में ये लागू कराने के निर्देश दिए हैं। इससे निजी स्कूल मनमर्जी से निजी प्रकाशकों की पुस्तकें बच्चों पर थोपकर मोटा मुनाफा नहीं कमा पाएंगे। स्कूल शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव महावीर सिंह की तरफ जारी गजट अधिसूचना अनुसार अब निजी स्कूल एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के बाहर की पुस्तकें नहीं पढ़ा सकेंगे। अभी तक शिक्षा नियमावली 2003 के संशोधित नियम 10 के अनुसार निजी स्कूलों में कोई भी पुस्तकें पढ़ाए जाने का प्रावधान था। निजी स्कूलों में किताबों की मुनाफाखोरी पर रोक लगाने को लेकर 2016 से मामला पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में विचाराधीन है। 2016 में कुछ निजी स्कूल संगठन निजी प्रकाशकों की पुस्तकें लागू कराने के लिए उच्च न्यायालय में गए थे।
शिक्षा निदेशालय को मिला अधिकार
शिक्षा नियमावली 2003 में शिक्षा निदेशक को कोई अधिकार नहीं था कि वह निजी स्कूलों के पाठ्यक्रम में एनसीईआरटी की पुस्तकें लागू कराएं। इसी का फायदा उठा निजी स्कूल संचालक निजी प्रकाशकों की पुस्तकें बच्चों पर थोपते आ रहे थे। हर साल अभिभावक महंगे भाव में किताब मिलने पर रोष जताते थे। लेकिन अब सरकार ने नियमावली में संशोधन कर यह अधिकार शिक्षा निदेशक को दे दिया है। हरियाणा में किसी भी बोर्ड से संबंध रखने वाले सभी निजी स्कूलों में अब एनसीईआरटी पाठ्यक्रम की निर्धारित पुस्तकें ही लागू करनी होंगी। पाठ्यक्रम की पुस्तकों का निर्धारण भी शिक्षा निदेशक करेंगे। वहीं जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी बृजमोहन गोयल का कहना है कि सभी स्कूल संचालकों को एनसीईआरटी की किताबें लगवाने के निर्देश दिए गए हैं। कोई नहीं लगवाता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। नहीं देने होंगे मनमाने दाम
अभिभावक बिजेंद्र, संजय, अंजू, प्रदीप शर्मा का कहना है कि किताबों को लेकर निजी स्कूल संचालक मनमर्जी कर रहे हैं। जो न केवल एनसीईआरटी की किताबों की बजाय अपनी मर्जी के निजी प्रकाशकों की पुस्तकें लागू कराते थे, बल्कि किताबें खरीद को लेकर एक बुक डिपो तक निर्धारित कर देते थे। जहां किताबों के मनमाने दाम वसूले जाते। उनका कहना है कि सरकार ने ये अच्छा फैसला लिया है। अब उन्हें किताबों के मनमाने दाम नहीं देने पड़ेंगे।