Pollution: दुनिया के 50 प्रदूषित शहरों में यमुनानगर भी, जानिए कितनी खतरनाक हो रही यहां की आबोहवा

यमुनानगर का नाम प्रदूषित शहरों में आने से अधिकारियों को भले ही कोई फर्क न पड़ता है। क्योंकि खुद तो वह वातानुकूलित कमरों में बैठ कर काम कर रहे हैं परंतु उनकी लापरवाही के चलते लोग घुट-घुट सांस लेने को मजबूर हैं।

By Naveen DalalEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 07:02 AM (IST) Updated:Wed, 22 Sep 2021 07:16 AM (IST)
Pollution: दुनिया के 50 प्रदूषित शहरों में यमुनानगर भी, जानिए कितनी खतरनाक हो रही यहां की आबोहवा
यमुनानगर में कारखानों की वजह से प्रदूषण का स्तर बढ़ा।

यमुनानगर, जागरण संवाददाता। दुनिया सबसे 50 प्रदूषित शहरों में प्रदेश के जिन सात शहरों को शामिल किया गया है। उनमें जिला यमुनानगर का नाम भी है। प्रदूषित शहरों में जिले का नाम आने से अधिकारियों को भले ही कोई फर्क न पड़ता है। क्योंकि खुद तो वह वातानुकूलित कमरों में बैठ कर काम कर रहे हैं, परंतु उनकी लापरवाही के चलते लोग घुट-घुट सांस लेने को मजबूर हैं।

शहरवासी प्रदूषित शहरों में जिले का नाम आना ही दुर्भाग्यपूर्ण मान रहे हैं। इससे एक बात ताे साफ हो गई प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समेत पूरा प्रशासन जो दावे कर रहा था कि जिले में प्रदूषण का स्तर घट गया है, वह दावे सब हवा हवाई थे। धरातल पर प्रदूषण को कम करने के लिए ठोक प्लानिंग से काम नहीं हो रहा। वह भी तब जब जिले में जंगल भी बहुताय मात्रा में है। 25 हजार एकड़ में फैला कलेसर राष्ट्रीय उद्यान ( 12 हजार एकड़) व वाइल्ड लाइफ सेंचुरी जंगल ( 13 हजार एकड़ ) भी जिले में है। उसके बाद यह हालत हैं।

अक्टूबर से फरवरी तक खराब रहते हैं हालात

शहर में प्रदूषण का स्तर अक्टूबर से बढ़ना शुरू हो जाता है। इसके बाद फरवरी तक ऐसे ही हालात रहते हैं। वर्ष 2020 में 15 अक्टूबर को पहली बार एक्यूआइ (एयर क्वालिटी इंडेक्स) 331 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हुआ था। इसके बाद महीने के आखिर में एक्यूआइ 360, दिसंबर में 366 से 400 तक पहुंच गया। दिसंबर में केवल तीन दिन ही ऐसे रहे जिनमें वातावरण में प्रदूषण का स्तर कम देखा गया। इसके बाद जनवरी व फरवरी तक एक्यूआइ 200 से 334 माइक्रोग्राम के बीच रहा। छोटा सा शहर है। जगाधरी से यमुनानगर आने में ही पांच मिनट लगते हैं। उसमें भी स्वच्छ हवा को लोग तरस गए हैं।

निगरानी कमेटियां बनी फिर भी खूब जली पराली

धान की कटाई के बाद पराली न जले इसके लिए सरपंच, नंबरदार, पटवारी से लेकर बीडीपीओ, एसडीएम, सिटीएम व डीसी तक के नेतृत्व में निगरानी कमेटियां बनाई। इन्हें नजर रखनी थी कि कहीं कोई पराली न जलाने पाए। फिर भी गत वर्ष 248 किसानों के चालान कर उन पर 635000 रुपये जुर्माना लगाया गया। किसानों की संख्या भले ही 248 है परंतु प्रति एकड़ के हिसाब से जिन खेतों में पराली जली वह ज्यादा हैं। अधिकारियों की नाक के नीचे खूब पराली जली।

छोटी-बड़ी लगी हैं 2000 फैक्ट्ररी

यमुनानगर इंडस्ट्रियल एरिया, खजूरी रोड, सहारनपुर रोड, रादौर रोड, बाडी माजरा से पांसरा फाटक रोड, जगाधरी की बर्तन नगरी, मानकपुर में इंडस्ट्रियल एरिया फेज टू समेत अन्य जगहों पर करीब 2000 फैक्ट्रियां हैं। प्लाईवुड फैक्ट्रियों में बायलर व मेटल इंडस्ट्री में धातुओं को गलाने के लिए भट्ठी को जलाया जाता है। जिनसे काफी मात्रा में काला धुंआ निकलता है। फैक्ट्रियों का धुंआ शहर की आबोहवा में जहर घोल रहा है। खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। प्रदूषण जांचने का जो उपकरण पंचायत भवन की छत पर लगाया है। वह पांच से सात किलोमीटर क्षेत्र का ही प्रदूषण जांचता है। यदि इसे औद्योगिक क्षेत्र में लगा दिया जाए तो इससे प्राप्त होने वाले आंकड़े पिछले सारे रिकार्ड तोड़ देंगे। बढ़ते प्रदूषण के बाद भी प्रदूषण नियत्रंण बोर्ड के अधिकारी आंखें बंद किए हुए है। बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी निर्मल कश्यप कार्रवाई का दावा करते हैं, लेकिन हकीकत में यह नजर नहीं आ रही।

धमनियों को कमजोर करता है प्रदूषण : अजय गुप्ता

शहर निवासी एमएम यूनिवर्सिटी मुलाना के पर्यावरण एवं जीव वैज्ञानिक डा. अजय गुप्ता ने बताया कि पीएम 2.5 व 2.5 का स्तर 60 से 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूब मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए। वातावरण में डीजल वाहनों के धुंए, उद्योगों के धुंए व कचरे को जलाने से ही इनका स्तर बढ़ता है। पीएम 2.5 व 10 का बढ़ना हमारे फेफड़ों, श्वास नली, धमनियों को कमजोर करता है। फैक्ट्रियों के धुंए में कार्बन मोनोडाइआक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, पोटाशियम आक्साइड जैसी हानिकारक गैसों की मात्रा काफी अधिक होती है। लोगों में खांसी, जुकाम होने का यही बड़ा कारण है।

पीएम 2.5 के स्तर पर एक नजर :

0 से 100 - अच्छा

100 -200 - सामान्य

200-300- खराब

300-400 - बहुत खराब

400-500- बहुत ज्यादा खतरनाक

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