मिलिए इस विक्रांत से, जिसने दर्द को पाला, उसी को थ्रो कर बना चैंपियन
पानीपत के उग्राखेड़ी के विक्रांत मलिक को कमर और कोहनी की चोट की वजह से डाक्टर ने खेल छोड़ने की सलाह दी थी। फौजी पिता ने कदम डगमगाने नहीं दिए। इसके बाद ओपन नेशनल जैवलिन थ्रो चैंपियनशिप में पदक जीता।
पानीपत, जेएनएन। हौसले फौलादी हों तो बड़ी से बड़ी बाधा टिक नहीं पाती है। सफलता कदम चूमती है। कुछ ऐसा ही जैवलिन थ्रोअर उग्राखेड़ी गांव के विक्रांत मलिक ने कर दिखाया है। उन्होंने 16 से 17 जनवरी को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुई ओपन नेशनल जैवलिन थ्रो चैंपियनशिप में 76.54 मीटर थ्रो कर रजत पदक जीता। यह उनका अभी तक का श्रेष्ठ प्रदर्शन भी है। ये मुकाम उन्होंने चोट को मात देकर हासिल किया है। प्रतियोगिता में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, मध्यप्रदेश और पंजाब के 80 थ्रोअर ने शिरकत की थी।
विक्रांत ने दैनिक जागरण से बातचीत में बताया कि अगस्त 2019 में हुई ओपन नेशनल जैवलिन थ्रो चैंपियनशिप में उनकी कमर और बायें हाथ की कोहनी में चोट लग गई। अभ्यास छूट गया था। हाथ से हल्का सा वजन भी नहीं उठाया जा रहा था। असहनीय दर्द होता था। डाक्टर ने सलाह दी कि खेल छोड़ना पड़ेगा। थ्रो का रिस्क लिया तो जिंदगी भर दर्द सहन करना पड़ेगा। खेल से दूर होने की नौबत आ गई थी। फौज से सेवानिवृत्त उनके पिता व कोच राजेंद्र सिंह मलिक ने कमर व कोहनी की मालिश शुरू की। हौसला बढ़ाया और जीत के लिए आश्वस्त किया। चोट ठीक हो गई। 17 महीने बाद जैवलिन थामी और पदक जीत लिया। सीख मिली कि कामयाबी हासिल करनी है तो खुद की कमजोरी को हराना होगा।
विक्रांत के नाम है कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी का रिकार्ड
विक्रांत मलिक के नाम कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी का जैवलिन थ्रो का 73.85 मीटर का रिकार्ड है। इसके अलावा आल इंडिया यूनिवर्सिटी में रजत, जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में दो रजत और राज्य स्तरीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में पांच स्वर्ण और दो रजत पदक जीत चुके हैं।
बेटा कर रहा है सपने पूरे
जाट रेजिमेंट से सेवानिवृत्त राजेंद्र सिंह का कहना है कि वह 400 और 800 मीटर में नेशनल में सात पदक जीत चुके हैं। घर की आर्थिक स्थित कमजोर होने से खेल को जारी नहीं रख पाया। उम्मीद थी कि बेटा विक्रांत उनके सपने का पूरा करेगा। उनकी निगरानी में विक्रांत हर रोज चार घंटे अभ्यास करता है और पदक भी जीत रहा है। इसकी खुशी है।
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