Emergency in India : इमरजेंसी का वो दर्द, जब बच्‍चों का पता ही नहीं चला, पापा कहां गए, जेल में मिली प्रताड़ना

The Emergency of India 1975 Memories लोकतंत्र का काला दौर आज भी सत्‍याग्राहियों को नहीं भुलाए भूलता है। एक सप्ताह तक परिवार को पता नहीं चला कि कहां गए बीमार होने पर ट्रक में बैठाकर रवाना किया। परिवार आज भी इस दर्द को याद कर सिहर जाता है।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 09:13 AM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 09:13 AM (IST)
Emergency in India : इमरजेंसी का वो दर्द, जब बच्‍चों का पता ही नहीं चला, पापा कहां गए, जेल में मिली प्रताड़ना
बांग्लादेश सत्याग्रह में भी विजय सलूजा (सबसे बायें) ने भाग लिया था।

पानीपत, जागरण संवाददाता। आपातकाल को जिन्होंने भुगता, वही इसका दर्द समझ सकते हैं। पानीपत में दीपक सलूजा का परिवार कभी उन दिनों को नहीं भूल सकता। स्व.विजय सलूजा को इमरजेंसी लगते ही पहले दिन पुलिस घर से सुबह-सुबह उठाकर ले गई थी। परिवार को एक सप्ताह तक पता ही नहीं चला कि विजय सलूजा कहां चले गए। बाद में बताया गया कि वह करनाल में हैं। करनाल से उन्हें अंबाला जेल भेज दिया गया।

भाजपा के जिला मीडिया प्रभारी रहे दीपक सलूजा ने जागरण से बातचीत करते हुए बताया कि तब उनकी उम्र दस वर्ष थी। पापा को जेल हो गई। हमें पता भी नहीं होता था कि जेल क्या होती है। तब मां चंद्रकांता के साथ पापा से मिलने जाते थे। हम घर से टिफिन लेकर जाते। कई बार कुछ बात कहनी होती तो पर्ची पर लिखते और टिफिन में छोड़ देते। इमरजेंसी की खबरों के बारे में बताना होता तो रोटी को अखबार में लपेटकर देते, ताकि पापा बाहर के बारे में सब जान सकें।

जेल में साथ थे रामबिलास शर्मा

भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री रामबिलास शर्मा तब अंबाला जेल में विजय सलूजा के साथ थे। रामबिलास शर्मा और विजय सलूजा में अच्छी दोस्ती थी। विजय सलूजा दो बार नगर पालिका में पार्षद रहे। पालिका में उपप्रधान भी बने।

अयोध्या भी रवाना हुए

दीपक सलूजा ने बताया कि आपातकाल में जेल होने के बावजूद वह अपने सिद्धांतों से पीछे नहीं हटे। श्रीराम मंदिर बनवाने के लिए जब कारसेवक अयोध्या रवाना हुए तो वे भी पानीपत से निकले। उनके साथ पूरा एक समूह था। मां भी उनके साथ गईं।

बीमार होने पर छोड़ा

आपातकाल के समय प्रशासन निरंकुश हो चुका था। पापा की तबीयत खराब हो गई। इसके बावजूद उनकी सुनवाई नहीं हो रही थी। वजन गिरता जा रहा था। राजनीतिक रूप से मजबूत थे। बीमार ज्यादा हुए तो प्रशासन को लगा कि कहीं कुछ गलत हो गया तो हंगामा हो सकता है। तब रातों-रात उन्हें एक ट्रक पर बैठाकर अंबाला से पानीपत रवाना किया गया।

राजनीतिक पद नहीं लिया

दीपक ने बताया कि उनके पिता का दस जनवरी 2011 को देहांत हुआ। जब जेल से छूटकर आए थे, तब उन्हें कई पद का आफर हुआ। तब उन्होंने कहा था कि वह किसी पद के लालच के लिए राजनीति में नहीं आए हैं। दरअसल, उस समय आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई थी। पर उन्होंने समझौता नहीं किया। फोटोग्राफी करते थे। अब आगे उनके दोनों बेटे फोटोग्राफी की ही दुकान चलाते हैं।

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