किसान सावधान, पत्ता लपेट सुंडी धान की फसल को कर सकती है चौपट, जानिए कैसे रोकें
धान की फसल को लेकर किसानों को सावधान रहने की जरूरत है। पत्ता लपेट सुंडी से धान की फसल को बचाने की जरूरत है। रोकथाम समय पर न होने से उत्पादन पर पड़ेगा असर। पत्ता लपेट सुंडी से सफेद हो जाता है धान का पत्ता।
कैथल, जागरण संवाददाता। मौसम में हो रहे बदलाव के बीच धान फसल वाले किसान पत्ता लपेट सुंडी के प्रति सचेत रहिए। क्योंकि ये सुंडी आपकी फसल को सूखा सकती है। शुरूआत में यह बीमारी कुछ पौधों पर आती है और धीरे-धीरे आसपास के पौधों को अपनी चपेट में ले लेती है। इसलिए पत्ता लपेट सुंडी की समय रहते रोकथाम करनी बहुत जरूरी है अन्यथा उत्पादन पर असर पड़ेगा। किसानों को धान की फसल का नियमित रूप से निरीक्षण करना चाहिए। यदि फसल में बीमारी के लक्षण दिखाई दें, तो तुरंत विशेषज्ञों की सलाह पर दवाई का छिड़काव करें। कई बार ज्यादा यूरिया डालने से पौधे में कच्चापन अधिक हो जाता है, जिससे पत्ता लपेट सुंडी का प्रकोप बढ़ जाता है। पत्ता लपेट बीमारी आने से फसल नष्ट हो जाती है।
ये है बीमारी की पहचान
सफेद हो जाता है धान का पत्ता
पत्ता लपेट सुंडी से धान के पत्ते सफेद हो जाते हैं। कृषि डाक्टरों का कहना है पत्ता लपेट सुंडी पत्ते का हरा पदार्थ चूस लेती है, जिससे पत्ता सफेद हो जाता है। पौधा पत्तों से ही भोजन बनाता है। जब पत्तों से हरा पदार्थ खत्म हो जाएगा तो पौधा भोजन नहीं बना पाएगा। ऐसे में पौधे को भोजन नहीं मिलेगा तो पौधा कमजोर होकर मर जाएगा।
इन दवाइयों का करें छिड़काव
पत्ता लपेट सुंडी की रोकथाम के लिए पदान व रीजैंट दवाई का छिड़काव करें। साढ़े सात किलोग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करें। यदि दवाई छिड़कने के तुरंत बाद बरसात आ जाती है, तो कोई फर्क नहीं पड़ता है। दवाई खाद की तरफ जमीन पर गिरती है। इसलिए बरसात या धूप से कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। पठेरा दवाई का भी प्रयोग करें। किसानों को 10 किलोग्राम मिथाइल पैराथिन 2 प्रतिशत का प्रति एकड़ अथवा 200 मिली मोनोक्रोटोफास 36 एसएल 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ फसल पर छिड़काव करें। हाईट्रोक्लोराइड (पदान ) या सीपरोनील (रिजेंट) दस किग्रा. सूखी रेत में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव कर दें। पत्ता लपेट सुंडी का प्रकोप अधिकतर अगस्त से अक्टूबर तक होता है।
डाक्टरों की सलाह लेकर ही दवाइयों का प्रयोग किसान करें। निराई व गुड़ाई का किसान विशेषकर ध्यान रखें। घास को उगने न दें। रोजाना सुबह व शाम को फसलों की देखभाल करें। खेत की मेढ़ पर सफाई रखें। समय- समय पर डाक्टरों को खेत में बुलाकर फसल को दिखाएं।
डा. कर्मचंद, कृषि उपनिदेशक, कैथल