जींद में संरक्षण के अभाव में हर साल घट रही तालाबों की संख्या, जानिए क्या है बड़ी वजह
जींद में संरक्षण के अभाव में तालाब पूरी तरह से खत्म हो चुके हैं। तालाब में या तो गंदा पानी जा रहा या तो उस पर आबादी बस गई। जींद में भी अब महज एक हजार तालाब बचें हैं इसमें 500 तालाब में पशुओं के पिलाने लायक पानी नहीं।
जींद, जेएनएन। हमारे पूर्वजों की धरोहर, भूमिगत जल को रिचार्ज करने का बड़ा स्त्रोत तालाबों की संख्या जिले में लगातार घटती जा रही है। कुछ गांवों में जहां तालाब की संख्या कम होती जा रही है तो वहीं कुछ गांवों में तालाबों का एरिया सिमटता जा रहा है। साल 2013 में जहां जींद जिले में तालाबों की संख्या 1182 थी, वह आज 1095 पर आ चुकी है। इनमें से भी 500 से ज्यादा तालाबों में पशुओं के पीने लायक पानी नहीं बचा है ।
आज से 40-50 साल पहले की बात करें तो तालाबों का पानी काफी स्वच्छ होता था और लोग घरेलू कार्यों में भी तालाबों के पानी को उपयोग में लेते थे। महिलाएं तालाब से पानी लाकर सब्जियां तक बनाती थी। रसोई के अन्य कार्यों में इस पानी का प्रयोग किया जाता था। समय बदलने के साथ संरक्षण के अभाव में तालाबों का पानी खराब होता गया। गांव की गलियों का गंदा पानी तालाबों में जाने लगा।
इस समय हालत यह हो चली है कि जिले में 50 प्रतिशत तालाबों में पानी पशुओं के पीने लायक भी नहीं बचा है, घरेलू उपयोग तो दूर की बात है। तालाबों में मवेशियों के पीने लायक पानी नहीं होने के कारण ज्यादातर किसान अपने मवेशियों को सबमर्सिबल या हैंडपंपों से पानी पिलाने और नहाने का काम कर रहे हैं। इससे एक तो ज्यादा पानी व्यर्थ बहाया जाता है और दूसरा यह सुविधा सभी किसानों के पास नहीं है। इसके चलते पशुपालकों से लेकर मवेशियों तक को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। तालाब में गंदा पानी होने से पशुओं में कई तरह के इंफेक्शन होने का खतरा रहता है।
यह है साल 2013 और साल 2020 के ब्लाक वाइज तालाबों के आंकड़े
खंड का नाम -साल 2013 में तालाबों -साल 2020 में तालाबों की संख्या
जींद -231 -208
जुलाना -169 -161
अलेवा -117 -106
सफीदों -136 -124
पिल्लूखेड़ा -101 -95
नरवाना -203 -193
उचाना -225 -208
कुल -1182 -1095
तालाबों की घटती संख्या का यह भी बड़ा कारण
कुछ गांवों के लोगों से बात करने पर तालाबों की घटती संख्या का यह भी एक कारण निकल कर आया है कि पुराने समय में पेयजल के स्त्रोत केवल कुएं और तालाब होते थे। पशुपालक काफी संख्या में पशु रखते थे, जिन्हें पानी आदि पिलाने के लिए तालाबों पर ले जाया जाता। अब हर घर में पेयजल सप्लाई और सबमर्सिबल लगे हुए हैं और लोग भी ज्यादा से ज्यादा दो-तीन पशु ही रख रहे हैं, जिससे इन पशुओं को पीने का पानी घर पर ही पिला दिया जाता है। नहलाने के लिए भी लोग तालाबों की बजाय घर पर ही नहला देते हैं। इससे तालाबों पर जाने वाले पशुओं की संख्या घट गई और इस कारण तालाबों के संरक्षण को लेकर भी लोगों में बेरुखी आने लगी।
तालाबों का संरक्षण करेंगे : आरके चांदना
जींद के जिला विकास एवं पंचायत अधिकारी आरके चांदना ने कहा कि तालाबों की घटती संख्या पर सभी चिंतित हैं। तालाब हमारे पूर्वजों की धरोहर हैं। इन्हें संभाल कर रखना हमारी जिम्मेदारी है। तालाबों के संरक्षण को लेकर उचित कदम उठाए जाएंगे।
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