हरियाणा में पराली जलाने से मिलेगा छुटकारा, कैथल के किसान ने अपनाई ये टेक्निक

पंजाब हरियाणा सहित दिल्‍ली के आसपास के क्षेत्रों में पराली से प्रदूषण बड़ी समस्‍या है। हरियाणा सरकार ने पहल करते हुए किसानों को पराली न जलाने के लिए जागरूक किया है। कैथल के किसानों को पराली जलाने से छुटकारा मिल गया। डी कंपोजर वरदना बनी है।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Sat, 09 Oct 2021 11:12 AM (IST) Updated:Sat, 09 Oct 2021 11:12 AM (IST)
हरियाणा में पराली जलाने से मिलेगा छुटकारा, कैथल के किसान ने अपनाई ये टेक्निक
कैथल में पराली में डी कंपोजर दवाई का छिड़काव करता किसान।

कैथल, जागरण संवाददाता। वेस्ट डी कंपोजर दवाई जहां पर्यावरण की प्रहरी बन रही है, वहीं इस दवाई ने किसानों के पराली जलाने के झंझट खत्म किया है। किसान बताते है कि पहले फसल अवशेषों को जलाना पड़ता था, इससे पर्यावरण प्रदूषित हो रहा था। साथ ही साथ जमीन की उर्वरता शक्ति कमजोर पड़ रही थी। अब इस दवाई का छिड़काव करने से जहां जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ रही है। लागत के हिसाब से फसल में पैदावार अच्छी मिल रही है। किसानों की जमीन को जैविक तौर पर ताकत मिल रही है, वहीं मित्र कीटों की संख्या भी बढ़ रही है। किसान बताते है कि फसल की कटाई के बाद जमीन पर जो सूखी घासफूस छूट जाती है, वह भी नष्ट होकर खाद बन जाती है। यही कारण है कि किसानों में वेस्ट डी कंपोजर की तरफ रुझान बढ़ाया है।

तीन साल से डी कंपोजर का करते है छिड़काव: सुभाष गुहणा

किसान सुभाष गुहणा बताते है कि पिछली तीन साल से डी कंपोजर दवाई का छिड़काव अपने खेत में करते है। इससे जहां जमीन अच्छी पैदावार दे रही है। पर्यावरण प्रदूषण से राहत मिल रही है। पराली को सड़ाकर खेत में जैविक खाद तैयार होती है। तीन साल पहले डि कंपोजर दवाई का घर पर तैयार करते थे, प्लास्टिक की एक टंकी में 200 लीटर पानी लेकर उसमें दो किलो गुड़ डालकर घोल देते थे, फिर उसमें डीकंपोजर को मिला देते थे। इसे एक लकड़ी की सहायता से दो-तीन मिनट तक हिलाते रहते थे। यह घोल 7 से 8 दिन में तैयार हो जाता है। 200 लीटर के घोल को एक एकड़ में स्प्रे मशीन से छिड़काव कर देते है। इस वर्ष खुद विभाग डी कंपोजर दवाई का छिड़काव कर रहा है।

खाद डालना पड़ता है कम, पैदावार मिलती है अच्छी

प्योदा के किसान सतबीर ने बताया कि दो साल से डी कंपोजर दवाई का छिड़काव खेत में करते हैं। धान की फसल को कटने के बाद छिड़काव कर देते है। पराली छिड़काव के बाद खेत में सड़ जाती है। खेतों में आग लगाने से छुटकारा मिल गया है। फसल अवशेष प्रबंधन में सबसे वरदान साबित डी कंपोजर दवाई है। अन्य किसानफसल अवशेष की जगह डी कंपोजर दवाई का छिड़काव करें।

कृषि विभाग के उपनिदेशक कर्मचंद ने बताया कि विभाग की तरफ से डी कंपोजर दवाई का छिड़काव करवाया जा रहा है। इससे जहां फसल अवशेष खेत में सड़ जाते है। अगली फसल में अच्छी पैदावार निकलती है। इस दवाई का छिड़काव करने के बाद किसानों को आगामी फसल में पेस्टीसाइड की जरूरत नहीं पड़ती है।

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