अंबाला के तिरंगे की देश के कोने-कोने में मांग, पाकिस्तान पर जीत के बाद चोटियों पर फहराया गया था
अंबाला के राय मार्केट में लिबर्टी एम्ब्रायडर्स पर तिरंगे तैयार किए जाते हैं। 1964 में दुकान शुरू हुई थी। भारत-पाक युद्ध के दौरान ही रातों रात पचास तिरंगे बनाकर हवाई जहाज से भेजे गए थे। 15 अगस्त 26 जनवरी पर एक से दो हजार से तिरंगे तैयार किए जाते हैं।
पानीपत/अंबाला, जेएनएन। सैनिकों के शहर अंबाला छावनी के राय मार्केट में तैयार होने वाले तिरंगे को देश के कोने कोने में फहराया जाता है। राय मार्केट की एक छोटी सी दुकान में तैयार किए जाने वाले तिरंगे की डिमांड हरियाणा ही नहीं, बल्कि दिल्ली, लेह लद्दाख, जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल सहित अन्य राज्यों में हैं।
गुरप्रीत सिंह बताते हैं कि उनके दादा ने एक साधारण सिलाई मशीन से झंडा बनाने का काम शुरू किया था। बताया कि 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद जब हमारे देश की जीत हुई तो देश की चोटियों पर फहराया गया तिरंगा भी अंबाला में बनाया गया था। युद्ध के दौरान ही रातों रात पचास तिरंगे बनाकर हवाई जहाज से भेजे गए थे।
उस समय भारतीय सेना ने लिबर्टी एम्ब्रॉयडर्स के संचालक गुरदीप सिंह को प्रशंसा पत्र दिया था। अपने पिता से विरासत में मिला कामकाज संभाल रहे गुरप्रीत सिंह ने बताया कि पांच दशक से हर वर्ष 15 अगस्त और 26 जनवरी पर एक से दो हजार से तिरंगे तैयार करते हैं। गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के अलावा, 365 दिन तिरंगा तैयार किया जाता है।
इन दिनों तिरंगे के साथ भाकियू के झंडे की बढ़ी डिमांड
गुरप्रीत बताते हैं कि उन्होंने अब तिरंगा बनाने के साथ-साथ पार्टी के झंडे को बनाने का काम शुरू किया है। इसमें गाड़ियों पर लगने वाले आकर्षक और टिकाऊ झंडे भी बना रहे हैं। इसमें भाजपा, जननायक जनता पार्टी, कांग्रेस, हरियाणा जनतांत्रिक कांग्रेस, सहित अन्य राजनीतिक दलों के अलावा भारतीय किसान युनियन चुटानी ग्रुप व अन्य खास तरह के झंडे बनाए जा रहे हैं। वह बताते हैं कि इन दिनों तक तिरंगे के साथ-साथ किसान आंदोलन को देखते हुए भाकियू के झंडे की भी डिमांड बढ़ गई है। इसके लिए दिन-रात मशीनों से झंडे को बनाने का काम चल रहा है।
1964 में शुरू हुई थी दुकान
हरियाणा और पंजाब वर्ष 1964 में एक ही राज्य थे। गुरदीप सिंह अंबाला में कपड़ों की दुकान चलाते थे। एक फौजी ने उनसे तिरंगा बनवाया। तब अंबाला छावनी से एकाएक उनके पास तिरंगा बनवाने के लिए मांग बढ़ गई। इस तरह उन्होंने तिरंगा सिलने को ही अपना कारोबार बना लिया। अब उनकी दुकान पर हर रोज तीस से चालीस तिरंगे सिले जाते हैं। बड़ा तिरंगा, जिसका साइज 12 बाई 18 है, उसकी कीमत तीन हजार रुपये है। जिसे वह करीब एक घंटे में तैयार करते है। गुरप्रीत बताते हैं कि नवीन जिंदल, जिन्होंने कोर्ट के माध्यम से जन-जन को तिरंगा फहराने का अधिकार दिलाया, वे भी उनके पास ही झंडा ले जाते हैं।
तिरंगा तैयार करते समय नहीं पहनते पैर में जूते
राष्ट्रीय झंडा बनाना गुरप्रीत के लिए किसी गौरव पूर्ण कार्य से कम नहीं है। तिरंगे की सिलाई करते समय पैरों में जूते नहीं पहनते। तिरंगे के सफेद कपड़े पर अशोक चक्र छापने के लिए मशीन लगा रखी है। इस मशीन की सर्विस करने के बाद किसी अन्य कपड़े पर काम करके देखा जाता है कि कहीं कोई दाग तो नहीं लग रहा है। इसके बाद ही तिरंगे को बनाया जाता है। अशोक चक्र को विशेष कढ़ाई द्वारा आकर्षक व सुंदर रूप दिया जाता है। तिरंगे को तैयार करने के लिए थ्री प्लाई के धागे का इस्तेमाल करते हैं, ताकि मजबूती बनी रही। टेरीकॉट, साटन व खद्दर, तीन क्वालिटी और 5 साइज के तिरंगे तैयार होते हैं।
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