मनरेगा में खर्च किए करोड़ों, फिर भी गांवों में श्रमिकों को नहीं मिला रोजगार, 33 गांव अछूते

हरियाणा सरकार की ओर से ग्रामीण स्तर पर रोजगार मुहैया करवाने के लिए अंत्योदय मेलों के अलावा आत्मनिर्भरता को लेकर जागरूकता के लिए समय-समय पर अभियान चलाए जाते हैं। लेकिन अधिकारियों की अनदेखी जरूरतमंद परिवारों के लिए रोड़ा बनी हुई है।

By Rajesh KumarEdited By: Publish:Wed, 08 Dec 2021 04:22 PM (IST) Updated:Wed, 08 Dec 2021 04:22 PM (IST)
मनरेगा में खर्च किए करोड़ों, फिर भी गांवों में श्रमिकों को नहीं मिला रोजगार, 33 गांव अछूते
मनरेगा के तहत गांवों में श्रमिकों को नहीं मिल रहा रोजगार।

करनाल, जागरण संवाददाता। कोरोना काल के दौरान श्रमिकों के लिए वरदान बनी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना को लेकर अधिकारी गंभीर नहीं हैं। करनाल के 382 गांवों में से 33 गांव ऐसे हैं जहां अब तक यह योजना पहुंची नहीं है। आठ खंडों में 1,53,800 श्रमिकों ने रजिस्ट्रेशन करवाया हुआ है, लेकिन इनमें से इस साल 81 हजार श्रमिकों ने मनरेगा के तहत काम किया है। विभाग की ओर से साल में 45 से 50 करोड़ रुपए श्रमिकों को वितरित किए जाते हैं।

प्रदेश सरकार की ओर से ग्रामीण स्तर पर रोजगार मुहैया करवाने के लिए अंत्योदय मेलों के अलावा आत्मनिर्भरता को लेकर जागरूकता के लिए समय-समय पर अभियान चलाए जाते हैं। लेकिन अधिकारियों की अनदेखी जरूरतमंद परिवारों के लिए रोड़ा बनी हुई है। भूमिहीन श्रमिकों की संख्या बढ़ती जा रही है और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत रोजगार देने के दावे जिले में खोखले साबित हो रहे हैं। 

योजना में बेरोजगार को 100 दिन रोजगार की गारंटी

करोड़ों रुपये वार्षिक खर्च करने होने के बावजूद श्रमिकों को गांव के साहूकारों के यहां काम करना पड़ता है। इस योजना में बेरोजगार को 100 दिन रोजगार की गारंटी है, लेकिन जिले के आठ खंडों के 382 गांवों में 33 गांव ऐसे हैं जहां रोजगार नहीं दिया गया है। बेश्क सरकार द्वारा मनरेगा को कृषि क्षेत्र से जोडऩे की योजना बनाई थी जोकि एक साल बीतने के बावजूद सिरे नहीं चढ़ पाई है। इंद्री के श्रमिक सीमा, मधु, रीना ने बताया कि सरपंचों से संपर्क करके उन्हें काम मिल जाता था लेकिन अब एक साल से कर्मचारियों के पास चक्कर काटने पड़ते हैं। जिसके चलते उन्हें खेतों में कम पैसों में मजदूरी करनी पड़ती है।

पैरवी न होने के कारण घालमेल की शिकायतें

जिला विकास एवं पंचायत अधिकारी के पास हर माह 10 से 15 शिकायतें मनरेगा को लेकर आती हैं। जिसमें कई शिकायतें तो मनरेगा के पैसा श्रमिक के खाते में न आने की होती है और बाकी शिकायतें गांव सरपंच के खिलाफ आती हैं। पिछले दिनों नीलोखेड़ी में ग्राम सचिव के खिलाफ मनरेगा श्रमिकों ने नारेबाजी की, जिस पर विभाग ने जांच रिपोर्ट तैयार की बात की है। इसके अलावा, कई बार श्रमिकों की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है। नतीजन श्रमिक अपनी मजदूरी के लिए कार्यालयों के चक्कर काटते रहते हैं। 

इस संबंध में जिला अतिरिक्त उपायुक्त योगेश शर्मा ने बताया कि मनरेगा के तहत सभी श्रमिकों को 100 दिन के लिए रोजगार दिया जा रहा है। जिले में 33 गांव ऐसे हैं जिसमें मनरेगा के तहत लोगों का काम नहीं दिया गया। इन गांवों की पंचायतें छोटी हैं और गांव में काम नहीं था लेकिन मार्च से पहले सभी श्रमिकों को मनरेगा के तहत काम दिया जाएगा।

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