टिकैत और चढूनी की टिप्पणियों से वाल्मीकि, पंडित और पंजाबी नाराज, सरकार भी उनके गुस्से को हवा देने में लगी

राजपूत सैनी यादव गुर्जर जैसी किसान जातियां भी आंदोलनकारियों के साथ नहीं हैं। वैश्यों का कृषि कानूनों से कोई लेना-देना ही नहीं है। ऐसी स्थिति में अराजकता और हिंसा के बल पर आंदोलन को अधिक दिन तक जीवित नहीं रखा जा सकता।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 03 Jul 2021 10:15 AM (IST) Updated:Sat, 03 Jul 2021 03:45 PM (IST)
टिकैत और चढूनी की टिप्पणियों से वाल्मीकि, पंडित और पंजाबी नाराज, सरकार भी उनके गुस्से को हवा देने में लगी
आंदोलन के नेता कुछ उलटा बोलकर लोगों का गुस्सा भड़का देते हैं, जो सरकार के लिए मुफीद होता है।

जगदीश त्रिपाठी, पानीपत। कृषि सुधार कानूनों के विरोध में हरियाणा में आंदोलन का चेहरे बने राकेश टिकैत और गुरनाम चढ़ूनी की टिप्पणियों से हरियाणा के लोग आंदोलन से क्षुब्ध हो रहे हैं। यह बात भारतीय जनता पार्टी और जननायक जनता पार्टी के गठबंधन वाली हरियाणा सरकार के पक्ष में है, भले ही वह इसे स्वीकार न करे। गुरनाम चढ़ूनी ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल को पाकिस्तानी कहकर पंजाबी समुदाय को खफा कर दिया है तो उत्तर प्रदेश दिल्ली सीमा पर गाजीपुर बार्डर पर उत्तर प्रदेश भाजपा के सचिव राकेश वाल्मीकि का स्वागत में उमड़े भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमला कर वाल्मीकि समुदाय के साथ ही सारे अनुसूचित समुदाय को भी क्षुब्ध कर दिया है।

सीएम को पाकिस्तानी कहे जाने और अमित वाल्मीकि पर हमले के खिलाफ दोनों समुदायों के लोग गुरुग्राम में चढ़ूनी और टिकैत के खिलाफ दोनों प्रदर्शन कर चुके हैं। वे प्रदेश भर में प्रदर्शन करने की तैयारी में हैं। नारनौल में भी लोगों ने चढ़ूनी की टिप्पणी के विरोध का पुतला फूंका है। टिकैत इसके पहले ब्राह्मणों पर भी अशोभनीय टिप्पणी कर चुके हैं। टीकरी बार्डर पर कसार गांव के ब्राह्मण मुकेश मुदगिल की पेट्रोल डाल जलाकर चार आंदोलनकारियों द्वारा हत्या किए जाने का कारण भी ब्राह्मण समुदाय के बहुत से लोग टिकैत की टिप्पणी को मान रहे हैं।

टिकैत ने सिंघु बार्डर पर टिप्पणी की थी कि आंदोलन में पंडित नहीं शामिल हो रहे हैं, समय आने पर उनका हिसाब लिया जाएगा। मुकेश की ह्त्या के बाद टिकैत के उस भाषण की वीडियो क्लिप भाजपा के एक नेता ने पोस्ट भी की थी। वैसे वह क्लिप टिकैत की टिप्पणी के बाद ही वायरल हो चुकी थी। अब गाजीपुर की घटना के बचाव में टिकैत समर्थक भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि आज के दौर में घटनाएं सेलफोन में वीडियो क्लिप के रूप में रिकार्ड हो जाती हैं। सच सबके सामने आ जाता है।

गाजीपुर बार्डर पर हुई घटना की वीडियो क्लिप भी वायरल है और अमित वाल्मीकि के जुलूस में शामिल कार्यकर्तायों की कारों पर आंदोलनकारी हमला करते स्पष्ट नजर आ रहे हैं। हरियाणा भाजपा अपने उत्तर प्रदेश के नेता अमित वाल्मीकि के साथ हुई घटना की शिकायत अनुसूचित जाति-जन जाति आयोग में करने जा रही है। स्पष्ट है कि वह भी इस मौके को नहीं छोड़ना चाहती। छोड़े भी क्यों? अवसर का लाभ तो हर कोई उठाता है।

रही बात चढूनी की तो उन्हें प्रदेश के स्वास्थ्य एवं गृह मंत्री अनिल विज जवाब दे चुके हैं। लेकिन सबसे करारा जवाब दिया है भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेता रामबिलास शर्मा ने। शर्मा ने चढूनी को मंडी में काम करने वाला कमीशन एजेंट बताया है।

विज और शर्मा दोनों ने यह बात कही है कि मनोहर लाल हों या कोई भी विस्थापित परिवार, वे सब हरियाणवी हैं। भारतीय हैं। विज की इस बात से भला कौन इन्कार कर सकता है कि विभाजन के समय जो लोग इस तरफ आए वे भारत प्रेम के कारण आए। वैस चढ़ूनी को भी शायद यह भान हो गया है कि उनकी मुख्यमंत्री पर टिप्पणी उन्हें बुरे फंसा सकती है, इसलिए उन्होंने मौन साध लिया है, क्योंकि हरियाणा में रहने वाले अधिकतर पंजाबी विभाजन के समय अपना सबकुछ गंवाकर यहां आए थे। अपने पुरुषार्थ से उन्होंने हरियाणा की समृद्धि में तो अपना योगदान दिया है। इसीलिए हरियाणा में पंजाबी समुदाय को पुरुषार्थी समुदाय भी कहा जाता है।

हरियाणा में उनकी बड़ी संख्या है और लगभग हर शहर में वे चुनावों में निर्णायक भूमिका में हैं। यह समाज चढूनी के इस बयान के बाद उन दलों से भी नाराज हो गया है जो आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि भाजपा के अतिरिक्त किसी भी दल के नेता ने चढूनी के बयान की आलोचना-निंदा नहीं की है, जबकि हर दल में कद्दावर पंजाबी नेता हैं। कुछ ऐसा ही कष्ट अब अनुसूचित जाति के लोगों को अमित वाल्मीकि के साथ हुई घटना से हो गया है। ब्राह्मण तो टिकैत के बयान के बाद रोष में थे ही मुकेश हत्याकांड के बाद उनका गुस्सा और बढ़ गया है। जाहिर है कि उनका गुस्सा भाजपा के पक्ष में ही जाएगा। राजपूत, सैनी, यादव, गुर्जर जैसी किसान जातियां भी आंदोलनकारियों के साथ नहीं हैं। वैश्यों का कृषि कानूनों से कोई लेना-देना ही नहीं है। ऐसी स्थिति में अराजकता और हिंसा के बल पर आंदोलन को अधिक दिन तक जीवित नहीं रखा जा सकता, आंदोलन के नेता भी कुछ न कुछ उलटा बोलकर लोगों का गुस्सा भड़का देते हैं, जो सरकार के लिए मुफीद होता है।

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