Kargil Vijay Diwas 2021: कुरुक्षेत्र के संजीव परिवार को कह कर गए थे, कारगिल युद्ध से आने के बाद करूंगा शादी

Kargil Vijay Diwas 2021 महज 19 वर्ष की आयु में कुरुक्षेत्र के संजीव कुमार देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे। कारगिल युद्ध में पांच पाकिस्तानी घुसपैठियों को भारत की सीमा में प्रवेश करते समय संजीव कुमार ने उतार दिया था मौत के घाट।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 05:59 PM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 05:59 PM (IST)
Kargil Vijay Diwas 2021: कुरुक्षेत्र के संजीव परिवार को कह कर गए थे, कारगिल युद्ध से आने के बाद करूंगा शादी
19 वर्ष की आयु में संजीव कुमार कारगिल में शहीद हुए।

कुरुक्षेत्र(पिपली), [बाबू राम तुषार]। Kargil Vijay Diwas 2021: महज 19 वर्ष की आयु में संजीव कुमार देश की सीमाओं की रक्षा के लिए शहीद हो गए थे। भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध के दौरान द्रास सेक्टर में संजीव कुमार ने वीरगति से पूर्व दुश्मन के दांत खट्टे कर अपनी शक्ति का लोहा मनवाया था। आज भी गांव में उनकी बहादुरी के किस्से लोग याद कर संजीव कुमार की यादों को संजोए बैठे हैं।

कारगिल दिवस पर आज देश कारगिल के शहीदों को नमन कर रहा है तो वहीं गांव कौलापुर के शहीद संजीव कुमार की शौर्य गाथाएं गांव वासी उन्हें याद कर नमन कर रहे हैं। वीरगति पाने से पूर्व संजीव ने पांच दुश्मनों को मौत की नींद सुला दिया था। घायल होने से पूर्व चार घुसपैठियों को संजीव ने हमला कर उन्हें मार गिराया था और इस दौरान संजीव ने घायल होते हुए भी दुश्मन के एक घुसपैठिये को मौत के घाट उतार दिया था।

वर्ष 1980 में संजीव कुमार ने गांव कौलापुर में माता पार्वती देवी व रणजीत सिंह के घर जन्म लिया था। गांव के ही प्राथमिक स्कूल में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद संजीव कुमार ने गांव के राजकीय उच्च विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास की। संजीव कुमार को बचपन से ही सेना में भर्ती होने का शौक था। संजीव कुमार ने भारतीय सेना की बहादुरी और उनकी शौर्य की कहानियां सुनी थी। उसके बाद संजीव ने सेना में भर्ती होने का मन बना लिया था।

24 फरवरी 1998 को संजीव कुमार सिख रेजीमेंट में भर्ती हुआ। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद संजीव कुमार की जम्मू कश्मीर के द्रास सेक्टर में नियुक्ति की गई। उस समय भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध चल रहा था। द्रास सेक्टर में नियुक्ति के दौरान संजीव कुमार ने कई दिनों तक दुश्मनों से लोहा लेते हुए उनके दांत खट्टे किए थे। इस दौरान संजीव कुमार ने चार घुसपैठियों को मार गिराया था और इस दौरान वे घायल हो गए थे। घायल होने के बावजूद वीरगति प्राप्त करने से पूर्व संजीव कुमार ने एक दुश्मन को मौत की नींद सुला दिया था।

शहादत से एक माह पहले संजीव आया था घर

शहीद संजीव कुमार की माता पार्वती ने बताया कि कारगिल युद्ध में शहादत पाने से एक माह पूर्व संजीव गांव में आया था। इस बीच उसकी शादी के बारे में बातें चली थी, लेकिन संजीव ने ये कहकर टाल दिया था कि पहले वह बहनों की शादी करेगा। उसके बाद अपनी शादी के बारे में सोचेगा। संजीव की बातें याद कर मां पार्वती की आंखें नम हो जाती हैं।

बचपन से था संजीव को बंदूक चलाने का शौक

शहीद संजीव कुमार के पिता रणजीत ने बताया कि संजीव को बचपन से ही बंदूक चलाने का शौक था और यही शौक उसे सेना में ले गया। भारतीय शूरवीरों की गाथाएं सुन संजीव ने सेना में भर्ती होने की ठान ली थी। उसे अपने लाडले की शहादत पर नाज है।

बहनें आज भी याद करती हैं संजीव को

शहीद संजीव की बहनें अपने भाई को आज तक नहीं भूला पाई हैं। संजीव को शहादत पाए तकरीबन 22 वर्ष हो गए हैं, लेकिन बहनें आज भी भाई का इंतजार कर रही हैं। बहनों को अपने भाई पर नाज भी है। जिसने देश की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए। रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाई की प्रतिमा पर राखी बांधकर उन्हें याद करती हैं।

पिता ने बनवाया शहीद बेटे के नाम पर गेट

प्रदेश सरकार ने शहीद के नाम पर गांव के मुख्य प्रवेश द्वार पर गेट बनवाने की घोषणा की थी, लेकिन यह घोषणा सिरे नहीं चढ़ी। शहीद के पिता रणजीत ने अपने बेटे की याद में अपने खर्चे से गांव के मुख्य प्रवेश द्वार पर गेट बनवाने का काम किया है।

ये घोषणाएं नहीं पूरी

संजीव की कारगिल युद्ध में शहादत के बाद प्रदेश सरकार ने कई घोषणाएं की थी, जिनमें से दो घोषणाएं गांव में स्थित राजकीय उच्च विद्यालय का नाम और राष्ट्रीय राजमार्ग से बाबैन जाने वाली सड़क का नाम शहीद संजीव कुमार के नाम पर रखा गया, लेकिन शहीद के नाम पर ना तो गांव में गेट बनाया गया और ना ही स्कूल का दर्जा बढ़ाया गया और पार्क बनाने की घोषणा भी पूरी नहीं हुई। गांव में शहीद के नाम पर लाइब्रेरी और प्रतिमा गांव वासियों ने अपने सहयोग से बनवाई।

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