Kargil Vijay Diwas 2021 : मातृभूमि की रक्षा के लिए जा रहा हूं, क्या पता फिर मिलेंगे या नहीं
Kargil Vijay Diwas 2021 आज कारगिल विजय दिवस है। हरियाणा के कई सपूतों ने देश की रक्षा के लिए शहीद हुए। करनाल के बल्ला निवासी गुलाब की शहादत पर ग्रामीणों को गर्व है। स्वजनों चिट्ठियां संभाल कर रखी हैं। आइए पढ़ते हैं कुछ और जवानों की स्मृतियां।
करनाल(बल्ला), [दल सिंह मान]। Kargil Vijay Diwas 2021 : भाई, ये कपड़े रख लो। मातृभूमि की रक्षा के लिए जंग के मैदान में जा रहा हूं। पता नहीं, फिर अपना मिलन हो या न हो। अगर शहीद हो जाऊं तो मेरी चिट्ठियां और अन्य सामान देखकर कभी-कभी याद कर लेना.।
रोम-रोम कंपा देने वाले ये शब्द कारगिल युद्ध में शहीद हुए करनाल के बल्ला गांव के जांबाज सैनिक गुलाब सिंह ने अपने भाई दलबीर से तब कहे थे, जब युद्ध से करीब डेढ़ माह पहले केवल एक रात के लिए अपने घर आए थे। दरअसल, गुलाब अपने नाम के अनुरूप गुलाब ही थे, जिनकी कभी न मिटने वाली यादों की महक आज भी पूरे गांव में फैली है। इन यादों से जुड़े तमाम दस्तावेज और अन्य वस्तुएं परिवार ने संभालकर रखे हैं। वे इन्हें देश की धरोहर बताते हैं और चाहते हैं कि नई पीढ़ी यह अनमोल खजाना देखकर देश सेवा की प्रेरणा हासिल करे। इनमें गुलाब सिंह की वर्दी और जूते-जुराब से लेकर स्वजनों को लिखी चिट्ठियां तक शामिल हैं।
23 वर्ष की आयु में सर्वोच्च बलिदान
बल्ला के वीर गुलाब ने कारगिल युद्ध में काक्सर चौकी की चोटी पर दुश्मनों को मुंहतोड जवाब देते हुए मात्र 23 साल की उम्र में सर्वोच्च बलिदान दिया था। गुलाब की याद में गांव में पुस्तकालय बना लेकिन प्रशासनिक अनदेखी से आज उसका नामोनिशान मिटने को है। यहां हमेशा ताला लगा रहता है, जिससे पुस्तकालय का कोई सदुपयोग नहीं हो पा रहा। बल्ला में किसान नंदलाल के परिवार में महरो देवी की कोख से 14 मार्च 1976 को जन्मे गुलाब पांच भाइयों में मंझले थे। 1997 में बरेली में जाट रेजीमेंट में सिपाही पद पर भर्ती हुए गुलाब ने कारगिल की लड़ाई के दौरान काक्सर चौकी संख्या 5299 की चोटी पर दुश्मनों से जमकर लोहा लिया। लेकिन इसी दौरान लगी सीधी गोली ने गुलाब के माथे पर शहादत का तिलक लगा दिया।
गुलाब की शहादत के बाद बलविंदर भी भर्ती हुआ फौज में
यह यकीनन देश के प्रति इस परिवार के अनन्य जज्बे का प्रमाण है कि गुलाब की शहादत के बाद छोटे भाई बलविंदर ने भी फौज में शामिल होकर भारत का मान बढ़ाया। हवलदार पद से अवकाश प्राप्त बलविंदर और शहीद गुलाब के स्वजन चाहते हैं कि परिवार के वीर सपूत की याद में बने शहीद स्मारक की उपेक्षा न हो।
कारगिल में प्रदेश के पहले शहीद हैं मनजीत सिंह
अंबाला: कारगिल युद्ध में प्रदेश से पहले शहीद मनजीत सिंह हैं। बराड़ा के गांव कांसापुर में पैदा हुए मनजीत साल 1998 में 17 वर्ष की आयु में आठ-सिख रेजीमेंट अल्फा कंपनी में भर्ती हुए थे। सात जून 1999 को साढ़े 18 साल की आयु में टाइगर हिल में मनजीत देश के लिए शहीद हो गए।
बेटे की वर्दी देख सिहर जाती हैं शहीद प्रवेश की मां
अनिल भार्गव, निसिंग (करनाल): करनाल के इंद्री खंड के मुखाला गांव के जांबाज प्रवेश कुमार कारगिल युद्ध में छह जून 1999 को शहीद हो गए थे। पांच मार्च 1996 को 18 वर्ष की आयु में सेना में भर्ती प्रवेश की ट्रेनिंग के बाद कश्मीर घाटी में पोस्टिंग हो गई थी, जहां उन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान शहादत दे दी। प्रवेश की स्मृतियों को उनकी मां कमलेश ने बेटे का धरोहर मानकर संभाल रखा है। छोटे बेटे व पति के साथ निसिंग में रह रही कमलेश बताती हैं कि शहीद बेटे के जूते व वर्दी को 22 वर्ष से संभालकर रखा है। जब भी गांव मुखाला जाती हूं तो उन्हें अपने फौजी बेटे के पास होने का अहसास होता है। प्रवेश के जूते व वर्दी को देखकर आत्मा सिहर जाती है। जब भी फौज से चिट्ठी भेजता था तो सबसे पहले मां को नमस्ते लिखता था। उनकी यादें आज भी आत्मा का झकझोर रही हैं।
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