Kargil Vijay Diwas: परिवार ने 22 साल से संभालकर रखे शहीद प्रवेश की वर्दी और जूते, हौसला देती हैं यादें
करनाल के इंद्री के प्रवेश 6 जून 1999 को शहीद हुए थे। परिवार में उनका छोटा भाई संजय व बहन ममतेश हैं। मां कमलेश देवी ने शहीद बेटे के जूते व वर्दी को 22 वर्ष से संभालकर रखा है। इसे देख बेटे के पास होने का अहसास होता है।
जागरण संवाददाता, करनाल। कारगिल युद्ध में भारत माता की रक्षा के लिए हरियाणा के कई वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी। इनमें करनाल के इंद्री खंड के मुखाला गांव के जांबाज प्रवेश कुमार का नाम भी शामिल है। प्रवेश ने कारगिल युद्ध अभियान में छह जून 1999 को बलिदान दिया था। आज भी परिवार को उसके साहस और वीरता के तमाम किस्से याद आते हैं।
शहादत के बाद प्रवेश की पार्थिव देह को पैतृक गांव मुखाला में राजकीय सम्मान के साथ मुखाग्नि दी गई थी। शहीद के पिता रामेश्वर दास ने बताया कि प्रवेश का जन्म छह फरवरी 1978 में हुआ था। परिवार में उनका छोटा भाई संजय व बहन ममतेश हैं। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा गांव मुखाला व पड़ोसी गांव कलरी जागीर से दसवीं पास की। खंड इंद्री के राजकीय स्कूल में बारहवीं कक्षा की परीक्षा के दौरान पांच मार्च 1996 में 18 वर्ष की आयु में प्रवेश कुमार भारतीय सेना में भर्ती होकर ट्रेनिंग सेंटर दिल्ली चले गए। यहां से उनकी पोस्टिंग कश्मीर घाटी में कर दी गई। कारगिल अभियान के दौरान प्रवेश शहीद हो गए। उन्होंने बताया कि प्रवेश को बचपन से ही सैनिक बनकर देश की सेवा करने का शौक था। दुश्मनों से लोहा लेते हुए देश की रक्षा के लिए अपनी जान देने वाले जांबाज पुत्र पर उन्हें नाज है और हमेशा रहेगा।
बेटे की वर्दी देख सिहर जाती है मां
शहीद प्रवेश की माता कमलेश देवी बताती हैं कि शहीद बेटे के जूते व वर्दी को 22 वर्ष से संभालकर रखा है। वह अपने छोटे बेटे व पति के साथ निसिंग में रहती हैं। लेकिन, जब भी गांव मुखाला जाती हैं तो उन्हें अपने फौजी बेटे के पास होने का अहसास होता है। प्रवेश के जूते व वर्दी को देखकर उनकी आत्मा सिहर जाती है। प्रवेश बेशक देश का ऋण चुकाने की खातिर मां-बाप और परिवार को छोड़कर चला गया, लेकिन उसकी यादें एक पल के लिए नहीं गईं।
आज भी सपनों में आकर बात करता है बेटा
प्रवेश की मां बताती हैं कि उसे मीठा खाने का बड़ा शौक था। विदेश जाने की बातें भी अकसर किया करता था। फोटो खिंचवाने का भी शौक रखता था। पढ़ाई में तेज था। जब भी फौज से चिट्ठी भेजता था तो सबसे पहले अपनी मां को नमस्ते लिखता था। उनकी यादें आज भी आत्मा का झकझोर रहीं हैं। शहादत से दो साल पहले उसकी सगाई हुई थी। कमलेश कहती हैं कि बेटा आज भी सपने में आकर बातें करता है।
स्मारक पर हर साल भंडारा
शहीद के भाई संजय के अनुसार, गत वर्ष उन्होंने गांव में बने शहीद स्मारक का नवीनीकरण करवाया, जिसमें राजस्थान के जयपुर में करीब डेढ़ लाख रुपये की लागत से बनी पत्थर की प्रतिमा स्थापित की है। प्रवेश की याद में हर वर्ष 15 अगस्त को उनकी ओर से मुखाला में अटूट भंडारा चलाया जाता है। इस बार निसिंग स्थित गैस एजेंसी पर कारगिल के अमर शहीदों की याद में 26 जुलाई को कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
शहीद प्रवेश का परिवार अब निसिंग में रहताहै। शहीद प्रवेश के पिता रामेश्वरदास और भाई संजय।
पुस्तकालय बना लेकिन नही पहुंचीं किताबें
शहीद के पिता रामेश्वर बताते हैं कि सरकार ने गांव खेडा से मुखाला पहुंचायक मार्ग का नामकरण शहीद प्रवेश कुमार मार्ग करने, गांव के प्राथमिक स्कूल को अपग्रेड करने, उनके नाम पर लाइब्रेरी बनवाने व करनाल में एक दुकान देने की घोषणा की थी। लेकिन घोषणा के मुताबिक उन्हें अभी तक करनाल में दुकान नहीं दी गई। लाइब्रेरी भवन बना, लेकिन वर्षों तक किताबें आने की बाट जोहकर भवन मायूस हो गया। इसमें अब आंगनबाड़ी चल रही है। सड़क पर शहीद के नाम का लगा बोर्ड भी टूट गया। शहीद की माता कमलेश देवी को शहीद प्रवेश के नाम पर सांभली रोड निसिंग में गैस एजेंसी व पेंशन सुविधा मिल पाई है।
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