दिव्यांगता को मात दे रहे बच्चे, अंग्रेजी में करते हैं बात, खेलों में भी चमका रहे नाम

International Day of Disabled Persons 2021 अब दिव्‍यांगता बच्‍चों के हौसले के आगे टिक नहीं पा रही है। यमुनानगर में बच्‍चों ने दिव्‍यांगता को मात देते हुए प्रतिभा को निखारा है। अंग्रेजी में बात करते हैं। खेलों में भी अपना नाम चमका रहे हैं।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Fri, 03 Dec 2021 01:15 PM (IST) Updated:Fri, 03 Dec 2021 01:15 PM (IST)
दिव्यांगता को मात दे रहे बच्चे, अंग्रेजी में करते हैं बात, खेलों में भी चमका रहे नाम
स्‍कूल में अध्‍यापकों के साथ खेलते बच्‍चे।

यमुनानगर, जागरण संवाददाता। यमुनानगर में एक ऐसा स्कूल भी है जिसमें पढ़ने वाले सारे बच्चे दिव्यांग है। यह दिव्यांग भले हैं लेकिन इनमें हुनर की कोई कमी नहीं है। जब वह पहली बार स्कूल में आए थे तो कइयों को यह तक नहीं पता था कि खाना खाने के लिए हाथ में चम्मच कैसे पकड़ते हैं। स्कूल क्या होता है, वह यहां क्यों आए हैं इसके बारे में उन्हें कुछ पता नहीं होता था। आज वहीं बच्चे अंग्रेजी में बात करते हैं। कई खिलाड़ियों ने नेशनल खेलों में अपना नाम चमकाया तो कुछ देश की राजधानी दिल्ली में अपना कैफे चला कर अपने परिवार का गुजारा कर रहे हैं। करीब 40 बच्चे तो ऐसे हैं जो जिनका आज खुद का बहुत अच्छा काम चल रहा है।

1992 में हुई थी स्कूल की शुरुआत

तेजली रोड पर उत्थान कोशिश स्कूल की शुरुआत 14 नवंबर 1992 में हुई थी। स्कूल की शुरुआत की थी डा. अंजू बाजपेयी, उनके पति डा. प्रमोद बाजपेयी व दोस्ता डा. प्रीति ने। डा. अंजू बाजपेयी ने बताया कि 1992 में वह एमसडब्ल्यू के विद्यार्थी हुआ करती थी। तब उन्होंने जिले में एक सर्वे किया था। जिसमें सामने आया था कि 10 प्रतिशत दिव्यांग बच्चे ऐसे हैं जो दिव्यांगता का शिकार थे। परिवार के साथ रहते हुए भी वह खुद को अकेला महसूस करते थे। उस वक्त तो कोई उन्हें पढ़ाने के बारे में सोचता तक नहीं था। उस सर्वे की रिपोर्ट से मन विचलित हुआ और यह ठान लिया कि ऐसे बच्चों के लिए कुछ करना है। तब एक छोटे से कमरे में उन्होंने उत्थान कोशिश स्कूल की शुरुआत मात्र पांच बच्चों से की थी। अब इसमें हर साल औसतन 60 से 70 बच्चे 10वीं तक की पढ़ाई करते हैं। अंजू बाजपेयी इस वक्त चाइल्ड हेल्पलाइन की निदेशिका भी हैं। जिसमें बच्चों से संबंधित आने वाली शिकायतों का भी निवारण कर रही हैं।

पढ़ाई के साथ-साथ देते हैं व्यवसायिक प्रशिक्षण

स्कूल में दिव्यांग बच्चों को केवल पढ़ाया ही नहीं जाता बल्कि उन्हें व्यवसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है। उन्हें मोमबत्ती, दीये, पेंटिंग समेत अन्य कार्यों का प्रशिक्षण दिया जाता है। ताकि बच्चे पढ़ाई पूरी करने के बाद स्वरोजगार भी शुरू कर सकें। इन बच्चों के द्वारा बनाए गए सामान को हर साल दीपावली, नव वर्ष व क्रिसमस डे जैसे अवसरों पर प्रदर्शनी भी लगाई जाती है। लोग बच्चों द्वारा बनाए गए सामान को खरीदते भी हैं। इससे जो राशि मिलती है उसे इन्हीं बच्चों की पढ़ाई व देखरेख पर खर्च कर दिया जाता है।

शुरुआत में आती ज्यादा दिक्कत

डा. बाजपेयी ने बताया कि उनके पास एक से एक दिव्यांग बच्चे आते हैं। शुरुआत में उन्हें संभालने में बड़ी दिक्कत आती है। क्योंकि उन्हें किसी चीज की समझ नहीं आती। धीरे-धीरे उन्हें सामान्य बच्चों की तरह मुख्यधारा में लाया जाता है। कपड़े कैसे पहनने हैं, ब्रश कैसे करना है और खाना कैसे खाना है। इसके बारे में समझाया जाता है। बच्चों की सेहत को देखते हुए स्कूल की तरफ से यहां जिम का भी प्रबंध किया गया है। जिसमें बच्चे अपनी क्षमता के अनुसार रोजाना अभ्यास कर सकते हैं। लाकडाउन के बाद से अब इसमें 58 बच्चे हैं। कोरोना महामारी के खतरे को देखते हुए उन्हें दो-दो घंटे की शिफ्ट में बुलाया जा रहा है।

खेलों में भी चमका रहे नाम

डा. अंजू बाजपेयी को स्पेशल ओलंपिक भारत एसोसिएशन की प्रदेश प्रेसिडेंट बनाया गया है। इसलिए वह बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खेलों के लिए भी तैयार कर रही हैं। वैसे तो कई सालों से यहां पढ़ने वाले बच्चे कई खेलों में नाम चमका चुके हैँ। स्कूल का छात्र अंकुर नेशनल लेवल पर साइकिल में कांस्य पदक जीत चुका है। स्कूल की प्रिंसिपल रविंद्र मिश्रा 24 साल से इन बच्चों से जुड़ी हैं। इसी तरह अनिता शर्मा 20 साल से तथाा शशि वासन 18 साल से इन बच्चों के साथ काम कर रही हैं। आज स्टाफ ने बच्चों के साथ स्कूल में विश्व दिव्यांग दिवस भी मनाया। जिसमें बच्चों ने कई तरह की गतिविधियों में हिस्सा लिया।

दिव्यांग बच्चे नाम रोशन कर सकते : अंजू बाजपेयी

अंजू बाजपेयी का कहना है कि मानसिक रूप से दिव्यांग यह बच्चे बेकार नहीं है। यह बच्चे दूसरों से कुछ अलग हैं। इन पर थोड़ा सा ध्यान देने की जरूरत है। बल्कि यह बच्चे तो इतने सक्षम हैं कि अपनी पढ़ाई व देखरेख का खर्च खुद उठा रहे हैं। क्योंकि सरकार उन्हें पेंशन दे रही है। इसलिए यह तो अपना खर्च खुद ही उठा रहे हैं। इसलिए माता-पिता को बचपन से ही इन पर ध्यान देने की जरूरत है। कई माता-पिता तुरंत रिजल्ट चालते हैं। परंतु ऐसा संभव नहीं है। ऐसे बच्चों के विषय में धैर्य से काम लेना चाहिए।

chat bot
आपका साथी