प्री-मैच्योर शिशु को 10 दिन ऑक्सीजन दी तो नेत्रों की जांच जरूरी
शिशु का जन्म प्री-मैच्योर(सात-आठ माह में)हुआ है वजन दो किलोग्राम से कम है तो रेटिनोपैथी ऑफ प्री-मैच्योरिटी (आरओपी)का खतरा रहता है।जन्म के समय शिशु को 10 दिन तक ऑक्सीजन दी गई है तो हर हाल में 28 दिन का होने से पहले उसके नेत्रों की जांच अवश्य करानी चाहिए।
जागरण संवाददाता, पानीपत
शिशु का जन्म प्री-मैच्योर(सात-आठ माह में)हुआ है, वजन दो किलोग्राम से कम है तो रेटिनोपैथी ऑफ प्री-मैच्योरिटी (आरओपी)का खतरा रहता है।जन्म के समय शिशु को 10 दिन तक ऑक्सीजन दी गई है तो हर हाल में 28 दिन का होने से पहले उसके नेत्रों की जांच अवश्य करानी चाहिए। लापरवाही बरतने पर शिशु जन्मभर के लिए नेत्रहीन हो सकता है।
सिविल अस्पताल की शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. निहारिका ने बताया कि खानपान, रहन-सहन सही न होने, संक्रमण, खून की कमी, उच्च रक्तचाप, हाई ग्रेड फीवर आदि के कारण प्री-मैच्योर डिलीवरी की संख्या बढ़ रही है। सिविल अस्पताल में ही रोजाना चार-पांच प्री-मैच्योर डिलीवरी संपन्न करायी जा रही है। अधिकांश नवजातों का वजन डेढ़ किग्रा. या इससे कम होता है।सांस लेने में तकलीफ होने के कारण नवजात को ऑक्सीजन लगानी पड़ती है।
लगातार दस दिन ऑक्सीजन दिए जाने से रेटिना पर प्रतिकूल असर पड़ता है। भेंगापन की दिक्कत भी आ सकती है। डॉ. निहारिका के मुताबिक ऐसे नवजातों को नेत्र रोग विभाग में स्क्रीनिग के लिए भेजा जाता है। प्री-मेच्योर में आरओपी के अन्य कारण :
-रक्त बदलना या नवजात का रक्त चढ़ाना।
-अधिक समय तक एंटीबायोटिक देना।
-उच्च रक्तचाप रहना। यह है आरओपी बीमारी :
रक्तवाहिनियों के असामान्य बढ़ने से रेटिना भर जाता है, क्षतिग्रस्त भी हो सकता है। प्रथम स्टेज में बीमारी स्वत: ठीक हो जाती है। दूसरी स्टेज में लेजर तकनीक से इलाज होता है। तीसरी-चौथी स्टेज में शिशु को पीजीआइ चंडीगढ़ भेजा जाता है। सर्जरी के बावजूद, विजन सही होने की उम्मीद कम रहती है। वर्जन :
प्री-मैच्योर नवजात को अधिक ऑक्सीजन देने से करीब 20 फीसद बच्चों के रेटिना को खतरा रहता है।सरकार ने पीजीआइ चंडीगढ़ को इस बीमारी के लिए नोडल हॉस्पिटल बनाया हुआ है। शिशु तीन-चार सप्ताह का होने पर स्क्रीनिग के लिए बुलाते हैं। दिक्कत होने पर तुरंत चंडीगढ़ रेफर करते हैं।
-डॉ. केतन भारद्वाज, नेत्र रोग विशेषज्ञ।