शाही स्नान से कपालमोचन मेले की शुरुआत, जानिए और क्या है खास

कपालमोचन मेले की शुरुआत हो चुकी है। पहले दिन शाही स्नान के साथ मेले का आगाज हुआ। साथ ही मेले में इस बार कई चीजें खास है। वहीं सुरक्षा व्यवस्था भी चाक चौबंद हैं।

By Ravi DhawanEdited By: Publish:Tue, 20 Nov 2018 01:47 PM (IST) Updated:Wed, 21 Nov 2018 10:40 AM (IST)
शाही स्नान से कपालमोचन मेले की शुरुआत, जानिए और क्या है खास
शाही स्नान से कपालमोचन मेले की शुरुआत, जानिए और क्या है खास

पानीपत/यमुनानगर, जेएनएन। प्राचीन इतिहास के समेटे कपालमोचन तीर्थ। पुराणों में लिखित तीनों लोकों के पाप से मुक्ति दिलाने वाला स्थल। मान्यता है, जिसके पवित्र सरोवरों में स्नान करने से ब्रह्म हत्या जैसे महापाप से मुक्ति मिल जाए। ऐसे महर्षि वेद व्यास की कर्मस्थली बिलासपुर में ऐतिहासिक कपाल मोचन मेले की शुरुआत शाही स्नान से हो चुकी है। करीब हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने सरोवरों में डुबकी लगाई। और बहुत कुछ जानने के लिए पढि़ए दैनिक जागरण की ये खबर।

कपाल मोचन मेले में सोमवार से पहला पंचभीखी स्नान शुरू हो गया। उपायुक्त गिरीश अरोड़ा ने विधिवत रूप से मेले का शुभारंभ किया। सुबह से ही श्रद्धालुओं ने कपालमोचन सरोवर, ऋणमोचन सरोवर, सूरज कुंड में स्नान कर दीप दान किया।  

रात से ही श्रद्धालु पहुंचना शुरू हो गए थे मेले में
कपालमोचन मेला शाही स्नान के साथ शुरू हुआ पंजाब व अन्य प्रदेशों से आए श्रद्धालुओं ने अलसुबह पंजभीखी स्नान किया। पहले दिन करीब 25 हजार श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई। पंजाब व अन्य प्रदेशों के श्रद्धालुओं ने पंचभीखी स्नान के लिए रात से ही यहां पहुंचना शुरू कर दिया था। शाम तक मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने स्नान कर धार्मिक स्थलों की पूजा अर्चना व दान किया। श्रद्धालुओं ने दीपदान किया। गऊ-बच्छा घाट पर श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ जुटी

 

साधु की जटा दिखाते साथी।

तीनों सरोवरों पर सुरक्षा
जिला उपायुक्त गिरीश अरोड़ा ने बताया कि सुरक्षा के लिहाज से कपालमोचन तीर्थ में स्थित तीनों सरोवरों में गोताखोरों एवं तैराकों की ड्यूटी लगाई गई हैं। 24 घंटे बारी-बारी से अपनी ड्यूटी देंगे। कपालमोचन सरोवर व ऋणमोचन सरोवर में आधुनिक उपकरणों सहित दो-दो बोट लगाई गई हैं, जबकि सूरजकुंड सरोवर में चप्पु से चलने वाली एक नाव भी लगाई है। तीनों सरोवरों में सुरक्षा व्यवस्था की जांच करने के लिए बोट एवं नाव के चालन कार्य की जांच की जा चुकी है। घाटों एवं पूरे मेला क्षेत्र में सफाई व्यवस्था को बराबर रूप से चुस्त दुरुस्त रखने के व्यापक प्रबंध किए गए हैं। मेला कपालमोचन में खच्चर-घोड़ों मंडी को नहीं लगाया गया है। उन्होंने मेला में पधारने वाले लाखों यात्रियों एवं श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे मेला क्षेत्र में सफाई व्यवस्था बनाने के लिए मेला प्रशासन को अपना सहयोग दें व गंदगी न फैलाएं तथा पवित्र सरोवरों के जल की पवित्रता को बनाए रखें।  

 

गोद भराई की रस्म करते डीसी।

यह है कपालमोचन सरोवर का महत्व  
मेले में आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले कपालमोचन सरोवर में स्नान करते हैं। पुराणों में कपालमोचन सरोवर का प्राचीन नाम सोमसर एवं औशनस तीर्थ था। जिसका उल्लेख महाभारत और वामन पुराण में मौजूद है। पौराणिक कथा के अनुसार ब्राह्मण की हत्या करने के कारण बछड़े व उसकी माता को ब्रहम हत्या का घोर पाप लग गया था, जिससे बछड़े व गाय का रंग काला पड़ गया था । गाय और बछड़े ने कपालमोचन सरोवर में स्नान किया और वह इस पाप से मुक्त हो गए। पुन:दोनों का रंग सफेद हो गया।  शंकर भगवान ने कपालमोचन सरोवर में स्नान करके अपने आप को ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति पाई थी। इसी स्थान पर भगवान श्री रामचंद्र जी, भगवान कृष्ण जी, गुरु नानक देव जी, गुरु गोबिंद सिंह जी भी दो बार यहां पर आए थे। यहां के पवित्र सरोवरों में स्नान किया था। प्रतीकात्मक रूप में गऊ और बच्छे पत्थर की मूर्ति के रूप में यहां आज भी विद्यमान है।

 

दीपक जलाकर मन्नत मांगते भक्त।

सूरज कुंड पर होती मुराद पूरी 
कपालमोचन और ऋणमोचन सरोवर में स्नान करने के बाद श्रद्धालु सूरज कुंड में सरोवर में स्नान करते हैं। इस सरोवर के साथ भी अनेक दंत कथाएं जुड़ी हुई हैं। श्री कृष्ण जी ने महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के साथ इस सरोवर में स्नान किया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस स्थान पर एक सिद्ध पुरूष जिसका नाम दुधाधारी बाबा था वह यहां पर रहते थे और पूजा अर्चना करते थे। कहते हैं कि आस पास के क्षेत्र में उनकी काफी मान्यता थी। समय पर उनसे मुरादें मांगने आते थे। लोगों की मुरादें पूरी होती थी। आज भी मेले के समय इस सरोवर के तट पर देश के कोने कोने से साधु आकर सरोवर के तट पर तपस्या करते हैं और धूना रमाते हैं। यह केवल सूरजकुंड पर ही होता है। कहा जाता है कि इसमें स्नान करने से अध्यात्मिक शांति मिलती है, दुखों, कलेशों और रोगों से मुक्ति मिलती है। 

 

गुरु गोबिंद सिंह जी के हुक्मनामा को पढ़ते भक्त।

मेले में श्रद्धालुओं का आना जारी
देर शाम तक पंजाब से श्रद्धालुओं का आना जारी था। रात तक करीब एक लाख श्रद्धालु मेले में पहुंचने की  संभावना है। मेले में इस बार धुल मिट्टी का साम्राज्य है। कस्बे से कपालमोचन तक सड़क पर न तो कही बैठने की व्यवस्था है। और न ही पीने के पानी की सुविधा है। श्रद्धालुओं का कहना है कि पूर रास्ते धूल उड़ रही है। मेले में एक कैंटर पानी का छिड़काव करता नजर आया। श्रद्धालुओं का कहना है कि मेला परिसर में पानी की छिड़काव सुबह के समय व दिन मे कम से कम तीन चार बार अवश्य करना चाहिए, ताकि धूल मिट्टी से निजात मिल सके।

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