कुरुक्षेत्र में बोले हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय, कहा- लूर नृत्य के संरक्षण से विलुप्त होती नृत्य विधा बचेगी

हरियाणा के राज्यपाल व कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलाधिपति बंडारू दत्तात्रेय ने किताब का विमोचन किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा लूर नृत्य के संरक्षण से हरियाणा राज्य की विलुप्त होती हुई एक नृत्य विधा बच जाएगी।

By Rajesh KumarEdited By: Publish:Thu, 16 Sep 2021 09:17 PM (IST) Updated:Thu, 16 Sep 2021 09:17 PM (IST)
कुरुक्षेत्र में बोले हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय, कहा- लूर नृत्य के संरक्षण से विलुप्त होती नृत्य विधा बचेगी
लूर नृत्य के संरक्षण से हरियाणा की विलुप्त होती नृत्य विधा बचेगी- दत्तात्रेय।

कुरुक्षेत्र, जागरण संवाददाता। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग हरियाणा की लुप्त हो चले लोकनृत्य लूर को फिर से पुनर्जीवित कर मंच प्रदान करेगा। इस आशय की पुस्तिका का वीरवार को  हरियाणा के राज्यपाल व कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलाधिपति बंडारू दत्तात्रेय ने विमोचन किया। उन्होंने कहा कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा लूर नृत्य के संरक्षण से हरियाणा राज्य की विलुप्त होती हुई एक नृत्य विधा बच जाएगी।

इस अवसर पर सांसद नायब सैनी, खेल मंत्री संदीप सिंह, विधायक सुभाष सुधा, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा, आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बलदेव धीमान, कुवि कुलसचिव डॉ. संजीव शर्मा, प्रो. ब्रजेश साहनी, डॉ. महासिंह पूनिया मौजूद थे।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय हरियाणवी संस्कृति के संरक्षण में अहम भूमिका निभाता है 

इस विषय में युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग के निदेशक डॉ. महासिंह पूनिया ने बताया कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय सदैव हरियाणवी संस्कृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है। इसी कड़ी में हरियाणा में लुप्त हो चले ‘लूर’ नृत्य को फिर से पुनर्जीवित फिर से युवा समारोह में शामिल कर जीवन्त किया जाएगा। उन्होंने बताया कि फागुन के महीने में ग्रामीण बालिकाओं एवं महिलाओं द्वारा लूर नृत्य करने की परम्परा रही है। वर्तमान में यह परम्परा लुप्त प्राय हो चली है। उन्होंने बताया कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की टीम ने गांव में जाकर लूर नृत्य के संरक्षण के लिए अनेक सार्थक कदम उठाए हैं और लूर के गीतों एवं नृत्य का डॉक्यूमेंटेशन किया है।  आने वाले दिनों में लेकर लूर नृत्य को लेकर विश्वविद्यालय में एक कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा जिसमें लूर नृत्य तैयार किया जाएगा और रत्नावली समारोह में लूर नृत्य का प्रारूप प्रस्तुत किया जाएगा। उसके बाद यह नृत्य कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक समारोह का हिस्सा बनेगा। इस आशय की पुस्तिका का विमोचन गुरूवार को महामहिम राज्यपाल ने कर इस कार्य हरी झंडी प्रदान की।

युवा पीढ़ी लूर नृत्य से जुड़ेगी

उल्लेखनीय है कि फागुन के महीने में गांव में महिलाएं एवं बालिकाएं दो वर्गो में बंटकर एक दूसरे वर्ग से वर एवं वधू पक्ष के रूप में नृत्य करते हुए सवाल एवं जवाब करती हैं। वर एवं वधू पक्ष की ओर से दोनों ही टोलियां सवाल एवं जवाब करते हुए जो नाटकीय अभिनय प्रस्तुत करती हैं उसी को लूर नृत्य कहा जाता है। हरियाणा के बांगर तथा बागड क्षेत्र में लूर नृत्य की फागुन के महीने में करने की परम्परा रही है। इस नृत्य के पुनर्जीवित होने से जहां एक ओर लोक पारम्परिक संस्कृति का संरक्षण होगा वहीं पर युवा पीढ़ी लूर नृत्य से जुडेगी।

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