Gita Jayanti Mahotsav 2021: जानिए कुरुक्षेत्र के अनोखे रहस्‍य के बारे में, 48 कोस में 168 तीर्थ स्थल

कुरुक्षेत्र में अंतरराष्‍ट्रीय गीता जयंती महोत्‍सव शुरू हो चुका है। कुरुक्षेत्र में गीता जयंती के मौके पर आ रहे हैं तो यहां के 48 कोस में 168 तीर्थ स्थल भी आप जा सकते हैं। इन तीर्थ स्‍थलों का अपना अपना एक अलग रहस्‍य है।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Fri, 03 Dec 2021 05:46 PM (IST) Updated:Fri, 03 Dec 2021 11:38 PM (IST)
Gita Jayanti Mahotsav 2021: जानिए कुरुक्षेत्र के अनोखे रहस्‍य के बारे में, 48 कोस में 168 तीर्थ स्थल
कुरुक्षेत्र में गीता जयंती महोत्‍सव की शुरुआत हो चुकी है।

कुरुक्षेत्र, जागरण संवाददाता। कुरुक्षेत्र का नाम आते ही आंखों सामने महाभारत के चित्र चलने लगते हैं। यही वह धरती है जहां श्रीकृष्ण के अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। ‌कुरुक्षेत्र का वर्णन श्रीमद्भगवत के पहले श्लोक में धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र के रूप में किया गया है। कुरुक्षेत्र ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है। जिसे वेदों और वैदिक संस्कृति के साथ जुड़े होने के कारण विदेश में भी श्रद्धा के साथ देखा जाता है। इस भूमि पर महाभारत हुई थी। इसके अलावा भी कुरुक्षेत्र का पुराना महत्व है। कुरुक्षेत्र का नाम राजा कुरु के नाम पर रखा गया था।

यहां तक हैं 134 तीर्थ स्‍थल

कुरुक्षेत्र एक जिले या इसकी सीमाओं तक सीमित नहीं है। कुरुक्षेत्र 48 कोस में फैला एक विशाल क्षेत्र है। इसमें कुरुक्षेत्र के अलावा, करनाल, कैथल, जींद व पानीपत के 134 तीर्थ स्थल आते थे। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने बुधवार को 30 नए तीर्थ स्थलों की पहचान करने की बात कही है। इनके साथ तीर्थ स्थलों की  संख्या 164 हो गई है।

जानिए धार्मिक महत्‍व

48 कोस कुरुक्षेत्र सरस्वती नदी के दक्षिण और दृषद्वती के उत्तर में स्थित है। इसको ब्रह्मा की उत्तर वेदी भी कहा जाता है। ब्राह्मण साहित्य में यह भूमि देवों की यज्ञभूमि के रूप में प्रतिष्ठित थी। यहां देवता यज्ञ कर स्वर्ग को प्राप्त करते थे। महाभारत और पौराणिक काल में तो कुरुक्षेत्र का धार्मिक महत्व अपनी पराकाष्ठा पर था।

ऐसे पहुंचे कुरुक्षेत्र

कुरुक्षेत्र दिल्ली-अंबाला रेलवे लाइन पर स्थित है। दिल्ली से लगभग 160 किलोमीटर उत्तर, करनाल से 34 किलोमीटर और अंबाला से 40 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। अगर बस या अपनी गाड़ी से आते हैं तो आप राष्ट्रीय राजमार्ग-44 से होकर दिल्ली या चंडीगढ़ से आ सकते हैं। कुरुक्षेत्र का करीबी हवाई अड्डा चंडीगढ़ है। यहा से आप बस टैक्सी लेकर आसानी से कुरुक्षेत्र आ सकते हैं। जीटी रोड पर पिपली से आपको पश्चिम दिशा में चलना होगा। इससे आगे आप तीर्थों का भ्रमण कर सकते हैं।

ये हैं प्रमुख तीर्थ

तरन्तुक यक्ष, बीड़ पिपली : महाभारत में चार यक्ष तरन्तुक, अरन्तुक, रामह्रद और मचक्रुक का वर्णन है। इनको ही कुरुक्षेत्र भूमि का रक्षक कहा जाता है। ये 48 कोस कुरुक्षेत्र के चारों कोनों में स्थित हैं। बीड पिपली स्थित तरन्तुक यक्ष है। पुराणों में वर्णन है कि कुरुक्षेत्र की यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व तरन्तुक यज्ञ के दर्शन करने जरूरी हैं। इसके दर्शन के बाद यात्रियों को मार्ग में कोई विघ्न नहीं पड़ता। इसको वर्तमान में चिट्टा मंदिर के नाम से जाता है। यहां पहुंचने के लिए पिपली-पिहोवा रोड से एक उपमार्ग है।

मां भद्रकाली मंदिर : कुरुक्षेत्र में झांसा रोड पर 52 शक्तिपीठों में से एक मां भद्रकाली शक्ति पीठ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कनखल में राजा दक्ष की पुत्री सती ने राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अनादर देखकर यज्ञ कुंड में अपनी देह का त्याग कर दिया था। भगवान शिव शती की मृत देह को कंध्णे पर लेकर तीनों लोकों में घूमने लगे। भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के 52 टुकड़े कर दिए थे। जहां भी सती की देह का अंश गिरा वह स्थान शक्तिपीठ बना। यहां सतीका दाया टखना (गुल्फ) गिरा। महाभारत के युद्ध से पहले अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण के साथ भगवती जगदंबा की पूजा अर्चना की थी।

स्थाण्वीश्वर महादेव मंदिर, थानेसर : स्थाण्वीश्वर महादेव मंदिर थानेसर शहर के उत्तर में है। महाभारत व पुराणों में भी इसका वर्णन है। महाबग्ग ग्रंथ में थूणा नाम ब्राह्मण गांव का उल्लेख मिलता है। कालांतर में थूणं नाम यह स्थान स्थाणुतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बताया जाता है कि स्वयं प्रजापति ब्रह्मा ने स्थाणु लिंग विग्रह की स्थापना की थी। इसी तीर्थ के नाम पर ही वर्तमान थानेसर नगर का नामकरण हुआ। इसको प्राचीन काल में स्थाण्वीश्वर कहा जाता था। भगवान शिव ने इस तीर्थ पर घोर तप किया था। वामन पुराणा के अनुसार मध्याह्न में पृथ्वी के सभी तीर्थ स्थाणु में आ जाते हैं। श्रीकृष्ण भगवान ने महाभारत के युद्ध से पहले स्थाण्वीश्वर महादेव मंदिर में पांडवों की पूजा कराई थी। थानेेसर के वर्धन साम्राज्य के संस्थापक पुष्पभूति ने अपने राज्य श्रीकंठ जनपद की राजधानी स्थाण्वीश्वर नगर को ही बनाया था। इसके जीर्णाेद्धार में मराठों का भी योगदान रहा है।

सन्निहित सरोवर : सन्निहित सरोवर की गणना कुरुक्षेत्र के प्राचीन एवं पवित्र तीर्थों में की जाती है। पुराणों के अनुसार अमावस्या पर पृथ्वी पटल पर स्थित सभी तीर्थ यहां एकत्र हो जाते हैं। इसलिए इसका नाम सन्निहित सरोवर दिया है। यहां पिंडदान और श्राद्ध की प्राचीन परंपरा है। कहा जाता है कि महर्षि दधीचि ने इंद्र की याचना पर देव कार्य के लिए अपनी अस्थियों का दान किया था। खग्रास सूर्यग्रहण के समय द्वारका से पहुंचे श्रीकृष्ण की भेंट गोकुल से पहुंचे नंद, यशोदा और गोप-गोपकाओं सेे हुई थी। श्रीकृष्ण ने विरह व्यथा से पीड़ित गोपियों को आत्मज्ञान की दीक्षा दी थी। ब्रिटिश कालीन अभिलेखों में सरोवर की पवित्रता व महत्ता का पता लगता है। तीर्थ पर सूर्य नारायण, ध्रुवनारायण, लक्ष्मी नारायण व दुखभंजन महादेव मंदिर है। इसके नजदीक नाभा राजपरिवार का नाभा हाउस है।

ब्रह्मसरोवर : ब्रह्मसरोवर की गणना ब्रह्मा से संबंधित होने पर कुरुक्षेत्र के प्रमुख तीर्थों में होती है। इसको सृष्टि का आदि तीर्थ माना जाता है। वामन पुराण के अनुसार सृष्टि रचना का ध्यान करते ब्रह्मा ने चारों वर्णाें की रचना यहीं की थी। चतुर्दशी व चैत्रमास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को तीर्थ में स्नान व उपवास करने से व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। यहां स्नान करने वाला व्यक्ति ब्रह्मलोक में स्थान पाता है। राजा पुरुरवा और उर्वशी का संवाद इसी सरोवर के तट पर हहुआ था। प्राचीन काल में इसे ब्रह्मा की उत्तरवेदि, ब्रह्मवेदि और समंतपंचक भी कहा जाता है। सर्यग्रहण पर स्नान करने से हजारों अश्वमेद्य यज्ञों के समान फल मिलता है। महाभारत के युद्ध में जीत के बाद युद्धिष्ठर ने यहां विजय स्तंभ बनवाया था। सरोवर के मध्यम सर्वेश्वर महादेव मंदिर है। जनश्रुति के अनुसार ब्रह्मा ने सर्वप्रथम इसी स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी।

गीता जन्मस्थली ज्योतिसर : यह तीर्थ ब्रह्मसरोवर से छह किलोमीटर पिहोवा रोड पर सरस्वती नदी के प्राचीन तट पर स्थित है। इसको गीता की जन्मस्थली भी कहा जाता है। महाभारत के युद्ध में इसी धरा पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। यहीं पर अपना विराट स्वरूप दिखाया था। गुरु शंकराचार्य ने हिमालय यात्रा के समय सर्वप्रथम इस स्थान को चिह्नित किया था। कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड अब इसको महाभारत के थीम पर विकसित कर रहा है। यह करीब 200 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट है। यहीं पर 10 करोड़ की लागत से श्रीकृष्ण भगवान का विराट स्वरूप लगाया जा रहा है।

अरुणाय तीर्थ, अरुणाय : अरुणाय तीर्थ कुरुक्षेत्र से करीब 28 किलोमीटर और पिहोवा से छह किलोमीटर अरुणाय गांव में स्थित है। इसकी उत्पत्ति की कथा ऋषि विश्वामित्र और वशिष्ठ से जुड़ी है। महाभारत व वामन पुराण के अनुसार दोनों के आश्रम सरस्वती तीर्थ पर थे और दोनों द्वेष पैदा हो गए। इसी झगड़े में विश्वामित्र ने सरस्वती को राक्षसों के प्रिय रक्तयुक्त जल को प्रवाहित करने का श्राप दे दिया। बाद में ऋषि मुनियों ने महादेव का स्मरण कर सरस्वती को श्राप मुक्त कराया। राक्षकों की मुक्ति के लिए अरुणा नदी को लाया गया। यहां सरस्वती और अरुणा का संगम है। यहां स्नान करने से व्यक्ति पांपों से मुक्त हो जाता है।

प्राची तीर्थ, पिहोवा : प्राची तीर्थ कुरुक्षेत्र से करीब 31 किलोमीटर दूर पिहोवा में सरस्वती नदी के तट पर स्थित है। वामन पुराण में तीर्थ का वर्णन दुर्गा तीर्थ व सरस्वती कूप के पश्चात उपलब्ध है। यानी पूर्व दिशा की ओर बहने वाली सरस्वती देव मार्ग में प्रविष्ट होकर देवमार्ग सेे ही निकली हुई है। यह पूर्ववाहिनी यानी प्राची सरस्वती दुष्कर्मियों का भी उद्धार कर उन्हें पुण्य देने वाली हहै। प्राची सरस्वती के निकट तीन रात तक उपवास करने वाला व्यक्ति त्रिविध ताप आधिभौतिक, आधिदैहिक व आधिदैविक में से कोई पाप पीड़ित नहीं करता। प्राची तीर्थ में श्रद्धा करने से इस लोक व परलोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं होता।

सरस्वती तीर्थ : यह तीर्थ कुरुक्षेत्र से लगभग 28 किलोमीटर पिहोवा में सरस्वती नदी के तट पर है। ब्रह्मंड पुराण के 43वें अध्याय में वर्णन है कि सृष्टि की रचना के समय समाधि की अवस्था में ब्रह्मा के मस्तिष्क से एक कन्या उत्पन्न हुई। कन्या ने अपने स्थान व कर्तव्य के बारे में बताया। तब ब्रह्मा ने उनका नाम सरस्वती रखा और प्रत्येक मुनष्य की जिह्वा में निवास करेगी। सरस्वती को नदी का रूप दिया और इसको पौराणिक ही नहीं बल्कि वैदिक काल में की थी प्रमुख नदी थी। ऋग्वेद में इसका उल्लेख है।

कुरुक्षेत्र में ये हैं तीर्थ

अरन्तुक यक्ष बीड पिपली, मां भद्रकालीन मंदिर, स्थाण्वीश्वर महादेव मंदिर, नाभिकमल तीर्थ, सन्निहित सरोवर, ब्रह्म सरोवर, बाण गंगा तीर्थ दयालपुर, भीष्म कुंड नरकातारी, ज्योतिसर, अदिति तीर्थ अमीन, त्रिपुरारि तीर्थ टिगरी, कुलोत्तारण तीर्थ किरमच, ओजस तीर्थ समशीपुर, कर्ण का टीला मिर्जापुर, काम्यक तीर्थ कमौदा, लोमश तीर्थ लोहार माजरा, भूरिश्रवपा तीर्थ भौर सैयदां, शालिहोत्र तीर्थ सारसा, मणिपूरक तीर्थ मुर्तजापुर, सोम तीर्थ सैंसा, अरुणाय तीर्थ अरुणाय, प्राची तीर्थ पिहोवा, सरस्वती तीर्थ पिहोवा, ब्रह्मयोनि तीर्थ पिहोवा, पृथूदक तीर्थ पिहोवा, रेणुका तीर्थ रणाचा, सोम तीर्थ गुमथलागढू, ब्रह्म तीर्थ थाणा, सप्तसारस्वत तीर्थ मांगना, गालव तीर्थ गुलडेहरा व शुक्र तीर्थ सतौड़ा।

पर्यटकों के लिए यह भी खास

श्रीकृष्णा संग्रहालय, पैनोरमा और विज्ञान केंद्र, श्री तिरुपति बालाजी मंदिर, गीता लघु संग्रहालय गीता ज्ञान संस्थानम्, शेख चिल्ली का मकबरा व कल्पना चावला तारामंडल पिहोवा रोड ज्योतिसर हैं।

कुरुक्षेत्र के बारे में एक नजर

23 जनवरी 1973 को जिला बना है। इसमें चार सब-डिविजन, सात ब्लाक, छह तहसील और चार उप तहसील हैं। गांवों की संख्या 419 है और जिले का क्षेत्रफल 1530 किलोमीटर है। जनसंख्या करीब 9.64 लाख हैं। इनमें करीब 5.10 लाख पुरुष और 4.53 लाख महिलाएं हैं।

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