अंबाला से पंजाब और दिल्ली तक बेशकीमती खैर की तस्करी का खेल, अब गुप्तचर रखेगा वन विभाग
खैर की लकड़ी प्रति क्विंटल सात से आठ हजार रुपये में बिकती है। खैर की लकड़ी को पकाया जाता है उसकी लाली का तेल निकलता है। यह चमड़े के जूते पर लगाया जाता है। जिसका दाम और भी ज्यादा है।
जागरण संवाददाता, अंबाला शहर। खैर तस्करों पर नजर रखने के लिए वन विभाग गुप्तचरों को छोड़ेगा। साथ ही कर्मचारियों की पेट्रोलिंग को भी बढ़ाया जाएगा। यह खैर के बेशकीमती पेड़ नारायणगढ़ रेंज के जंगलों में खड़े है, इसलिए सबसे ज्यादा लकड़ी चोरी भी इसी जगह से होती है। बता दें वन विभाग में कर्मचारियों की संख्या कम होने के चलते जंगलों की गश्त भी ठीक से हो नहीं पा रही है। भाड़े के मजदूर लेकर गश्त शुरू की जाती है, करीब 347 रुपये 80 पैसे के हिसाब से मजदूरों को भाड़ा दिया जाता है। इससे जहां मजदूर को राेजगार मिल रहा, वहीं दूसरी तरफ विभाग को भाड़ा देकर काम लेना भी महंगा पड़ रहा है।
बीट की यह स्थिति
बता दें एक रेंज में तीन ब्लॉक अंबाला, साहा और नारायणगढ़ हैं। जंगलों की रखवाली के लिए एक गार्ड के पास दो से तीन बीट है। इन बीट में गार्ड के पास दो व तीन जंगल होते हैं। इनकी सुरक्षा का जिम्मा इनके ऊपर होता है। गश्त के दौरान इनके पास केवल लाठी व बैटरी ही होती है, जबकि जंगलों में नील गाय, जंगली सुअर, बंदर, मोर, सेह, काला तीतर के अलावा और भी कई वन्य प्राणी भी रहते हैं। यही नहीं गार्ड के रहने के लिए भी कोई व्यापक प्रबंध नहीं है। ऐसे में इन्हें कई बार खेत में बने ट्यूबवेल के कमरे में ही रात गुजारनी पड़ती है।
अब तक यहां हो चुकी बड़ी चोरी
इस साल फरवरी माह में गांव भड़ोग के जंगल से 12 बेशकीमती खैर के पेड़ चोरी हो गए थे। उसके बाद 19 अगस्त की रात को तस्करों ने गांव लाहा के जंगल में घुसपैठ कर 11 खैर के पेड़ों को आरी से काट चोरी कर लिए थे। बता दें खैर की लकड़ी तस्करों के लिए इसलिए खास है क्योंकि यह लकड़ी प्रति क्विंटल सात से आठ हजार रुपये बिकती है तथा जब खैर की लकड़ी को पकाया जाता है उसकी लाली का जो तेल निकलता है वह चमड़े के जूते पर लगाया जाता है जिसका दाम और भी महंगा होता है। तस्कर ऐसे लोगों के संपर्क में रहते हैं जो इसका व्यापार करते हैं। यह लकड़ी को इकट्ठा कर ट्रक में भर महंगे दामों पर उन सौदागरों के पास बेचकर आते हैं।
यहां तक जुड़े होते हैं तस्करों के तार
यहां बता दें तस्करों के तार पंजाब के राजपुरा और दिल्ली की आजाद नगर मंडी तक होता है क्योंकि खैर की लकड़ी का बहुत बड़ा बाजार है। जहां पर खैर की लकड़ी सात से 8 हजार रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेची जाती है। खैर की बेशकीमती लकड़ी से खाने वाला कत्था भी बनाया जाता है। फैक्ट्री प्रोसेस में खैर की लकड़ी से पहले खैर की लकड़ी का तेल निकाला जाता है और उसके बाद लकड़ी का कत्था बनाया जाता है। खैर का तेल बहुत महंगे दामों पर बिकता है।
रात के समय पेट्रोलिंग बढ़ाई
नारायणगढ़ के रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर मोहन लाल ने कहा कि जंगलों की सुरक्षा के लिए कर्मियों की गश्त को बढ़ा दिया गया है। रात के समय ज्यादा पेट्रोलिंग रहती है। हालांकि विभाग में कर्मचारियों की कमी है, मगर जंगल की सुरक्षा सबसे पहले है।
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