पराली जलाने के नुकसान से रूबरू हुए चुलकानावासी

चुलकाना गांव में दैनिक जागरण और कृषि विभाग की ओर से पराली नहीं जलाने को लेकर आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में कृषि विभाग के खंड तकनीकी प्रबंधक डॉ. सतेंद्र ने किसानों को पराली जलाने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में बताया। उन्होंने जल और थल पर पड़ने वाले इसके कुप्रभावों के बारे में जानकारी दी। कृषि उपकरणों पर दी जा रही सब्सिडी के बारे में बताया। किसानों को पराली नहीं जलाने की शपथ दिलाई।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 12 Oct 2018 08:49 AM (IST) Updated:Fri, 12 Oct 2018 08:49 AM (IST)
पराली जलाने के नुकसान से रूबरू हुए चुलकानावासी
पराली जलाने के नुकसान से रूबरू हुए चुलकानावासी

जागरण संवाददाता, समालखा : चुलकाना गांव में दैनिक जागरण और कृषि विभाग की ओर से पराली नहीं जलाने को लेकर आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में कृषि विभाग के खंड तकनीकी प्रबंधक डॉ. सतेंद्र ने किसानों को पराली जलाने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में बताया। उन्होंने जल और थल पर पड़ने वाले इसके कुप्रभावों के बारे में जानकारी दी। कृषि उपकरणों पर दी जा रही सब्सिडी के बारे में बताया। किसानों को पराली नहीं जलाने की शपथ दिलाई।

डा. सतेंद्र ने कहा कि फसल अवशेष जलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। रबी की फसल भी कमजोर होती है। फसल अवशेष के धुएं से हादसे होते हैं। पानीपत जिले में गत साल इससे हादसे हो चुके हैं। एक युवक को जान भी गंवानी पड़ी है। विश्व में ग्लोबल वार्मिग की समस्या पैदा हो रही है। धरती का तापमान बढ़ता है। जमीन के मित्र कीट मर रहे हैं। हवा और पानी जहरीली होती है। नहर, नदी और अन्य जल स्त्रोत पर भी इसका कुप्रभाव पड़ता है। बीमारियां बढ़ती है। सांस रोगियों की जान को खतरा उत्पन्न होता है। हमें इसे जलाने के बजाय इसके प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

सब्सिडी के बारे में दी जानकारी

उन्होंने कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन के यंत्रों पर सरकार एकल या समूह के किसान को 20 से 80 प्रतिशत तक छूट दे रही है। गांवों में हाय¨रग सेंटर बनाकर वहां पराली के निस्तारण साधन रुटावेटर, पलटू हल, हैप्पी सीडर, जीरो टीलर आदि यंत्र उपलब्ध करवाया है। किसानों को बगैर एसएमएस लगे कंबाइन से फसल की कटाई नहीं कराने को कहा गया है। कृषि उपकरणों की खरीद नहीं करने वाले किसान सेंटर पर मौजूद उपकरणों का लाभ उठा सकते हैं।

डा. सतेंद्र ने कहा कि पराली जलाने से मिंट्टी के मित्र कीट, केचुआ आदि मर जाते हैं। वहीं जमीन भी बंजर हो जाती है। पराली से सीओटू, मीथेन, सीओ आदि ग्रीन हाउस गैस निकलती है, जो पर्यावरण में जहर घोलती है। उन्होंने पराली से खाद सहित इसके व्यवसायिक उपयोग के बारे में भी किसानों को बताया।

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