धान फसल के लिए किसान रहें सावधान, इस लापरवाही से हो सकती है फुटाव में कमी

किसानों के लिए काम की खबर है। किसान सतर्क रहें धान की फसल में जरा सी लापरवाही भारी पड़ सकती है। धान की फसल में फुटाव में भी कमी आ सकती है। यूरिया और खरपतवार नाशक का रखें विशेष ध्यान।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Thu, 05 Aug 2021 04:21 PM (IST) Updated:Thu, 05 Aug 2021 04:21 PM (IST)
धान फसल के लिए किसान रहें सावधान, इस लापरवाही से हो सकती है फुटाव में कमी
धान की फसल लगाने वाले किसान सावधान रहें।

कैथल, जागरण संवाददाता। धान फसल को लेकर किसान अगस्त के महीने में सचेत रहिए। क्योंकि सबसे ज्यादा धान का फुटाव अगस्त के महीने में होता है। अगर थोड़ी सी भी लापरवाही किसान से हो गई तो फुटाव में कमी रहेगी। इसका सीधा असर धान की पैदावार पर पड़ेगा। धान रोपाई वाले खेत में फुटाव के लिए किसान सिफारिश वाले खरपतवार नाशक दवा का छिड़काव करें। यूरिया खाद का विशेष ध्यान रखें।

वहीं फसल में अधिक पानी जमा रखने से पौधे का तना गल जाता है, जिससे फुटाव प्रभावित होता है। फसल में भरपूर फुटाव के लिए खेत की हल्की सिचाई करें। खेतों से मेढ़ों के जरिए लगातार पानी का रिसाव होता रहता है। फसल में डाली गई दवा व उर्वरक घुलनशील होने के कारण पानी के साथ उनका भी रिसाव होता है। बरसात के मौसम में गहरे खेतों में हल्की सिचाई करें ताकि मौसम में अचानक अधिक बरसात से फसल डूबकर खराब होने से बच सके। फसल में

शाम के समय डालें उर्वरक किसान

किसान को हमेशा फसल में शाम के समय ही उर्वरक डालने चाहिए और कम पानी में ही उर्वरक डालें। सुबह के समय डाला गया उर्वरक पानी में घुलकर वाष्पीकरण विधि के द्वारा उड़ जाता है। शाम के समय डाले गए 30 किलोग्राम उर्वरक का परिणाम सुबह के समय डाले गए 50 किलोग्राम उर्वरक के समान होता है। बारीक धान में महज एक बैग यूरिया की खुराक ही दें। वहीं अन्य में दो कट्टो तक यूरिया डाले।

अच्छा फुटाव के लिए इन बीमारियों से बचाए किसान

धान किसानों को अगर अच्छा फसल का फुटाव करना है तो सफेदा रोग, खैरा रोग, झुलसा रोग, दीमक से जरूर बचाए। इन रोगों से फसल बची रही तो अच्छा फुटाव होगा। पैदावार किसान को अच्छी मिलेगी व आमदनी लागत के हिसाब से होगी।

खैरा रोग : जिंक की कमी के चलते धान फसल में लगने वाले इस रोग में फसल की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। साथ ही उसपर कत्थई रंग के धब्बे दिखाई पड़ने लगते हैं। इस रोग के उपचार के लि किसान प्रति हेक्टेयर 20 किलो यूरिया व पांच किलो जिंक सल्फेट का छिड़काव करें। यदि पानी के साथ छिड़काव करना है तो दो किलो यूरिया व पांच किलो जिंक पर्याप्त होगा। यदि यूरिया का छिड़काव पहले किया जा चुका है तो ढाई किलो चूने को आठ सौ लीटर पानी में भिगो दें। फिर उस पानी में पांच किलो जिंक मिलाकर छिड़काव करें लाभ हासिल होगा।

सफेदा रोग : लौह तत्व की कमी से लगने वाले इस रोग में फसल की पत्तियां सफेद पड़ने लगती हैं। साथ ही सूखने लगती हैं। इस तरह के लक्षण दिखाई पड़ने पर पांच किलो फेरस सल्फेट को 20 किलो यूरिया के साथ मिलाकर छिड़काव करना लाभकारी होगा। झुलसा रोग इस रोग में पौधों की बढ़वार रुक जाती है। खेत में जगह-जगह पौधे बढ़ते नहीं दिखाई पड़ते। इस बीमारी के लक्षण दिखने पर स्टेप्टोसाइक्लीन दवा चार ग्राम को पांच सौ ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड के साथ आठ सौ से एक हजार लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

'कृषि उपनिदेशक कर्मचंद ने बताया कि दीमक का प्रकोप फसल को पूरी तरह नष्ट कर देता है। इसका असर दिखाई पड़ने पर तार ताप हाइड्रोक्लोराइड चार से छह किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव किया जा सकता है। इससे बचाव के लिए फोरेट 10 जी दवा आठ से 10 किलो एक हजार लीटर पानी में घोल तैयार कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। निराई फसलों की करते रहे। घास धान में न होने दे।'

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