लखनौर साहिब का दशहरा है खास, लगता है धार्मिक जोड़ मेला, दूर-दूर से संगत आती माथा टेकने
अंबाला के लखनौर साहिब में लगने वाला दशहरा मेला दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। यहां पर दहशरे में धार्मिक जोड़ मेला लगता है। इस मेले में दूर-दूर से संगत माथा टेकने के लिए आते हैं। सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह की माता गुजरी जी इसी गांव से थीं।
अंबाला, [अवतार चहल]। अंबाला शहर के गांव लखनौर साहिब में दशम गुरु गोबिंद सिंह के ननिहाल हैं और यहां पर उन्होंने बचपन में छह माह यहां पर बिताए थे। यहीं पर उनके मामा कृपाल चंद ने दस्तार बंदी की थी। इस कारण आज यहां पर दशहरा के दिन धार्मिक जोड़ मेला लगता है। हजारों की तादाद में संगत माथा टेकने के लिए पहुंचती है। लखनौर साहिब सिखों की श्रद्धा का केंद्र हैं। सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह की माता गुजरी जी इसी गांव से थीं। इसी कारण दशहरा के अवसर पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की प्रधान बीबी जगीर कौर भी यहां पर पहुंच रही हैं।
लखनौर साहिब के गुरुद्वारा साहिब में गुरु श्री गाेबिंद सिंह जी का सामान संभालकर रखे गए हैं। इस ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिब में दर्शन और माथा टेकने के लिए दूरदराज क्षेत्रों से संगत आती हैं। सिख धर्म में दशहरे का खास महत्व है, क्योंकि इसी दिन लखनौर साहिब में गुरु गोबिंद सिंह जी की दस्तारबंदी हुई थी। उनके मामा कृपाल चंद ने विधि-विधान के साथ भांजे बाल गोबिंद सिंह जी की दस्तारबंदी की थी। तभी से गांव लखनौर साहब में दशहरे वाले दिन जबरदस्त मेला आयोजित किया जाता है। इस आयोजन में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों के श्रद्धालु शामिल होते हैं।
लखनौर साहिब में सहेजकर रखे गुरु गाबिंद सिंह जी के पलंग
यहीं पर उन्होंने अपनी बाल लीलाएं भी कीं और हर किसी का दिल जीत लिया। इसकी यादें धरोहर के तौर पर श्रद्धालुओं के लिए यहां पूरी श्रद्धा के साथ संभालकर रखी गई हैं। यहां से विदाई के समय गुरु जी अपनी यादगार के तौर पर तीन पलंग, दो लक्कड़ की परांतें तथा कुछ अस्त्र-शस्त्र यहां छोड़ गए। आज भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु गुरु साहिब की इन पवित्र निशानियों के दर्शन करके स्वयं को धन्य महसूस करते हैं।
पुराना कुआं खोदा जिसका मीठा था पानी
गांव में जब माता गुजरी और गुरु गोबिंद सिंह आए थे, तो यहां पर कुओं में पानी कड़वा होता था। यहीं पर एक पुराना कुआं भी था, जिसे ठीक करने का फैसला लिया गया। इसकी सफाई करवाकर खुदाई गई की तो पानी निकल गया। यह पानी पीने में काफी मीठा था और लोगों ने इसे गुरु जी का प्रसाद समझा। इसी कुएं से माता गुजरी कौर और अन्य महिलाएं पानी भरा करती थीं।
इस तरह से पहुंच सकते हैं गुरुद्वारा में
गुरुद्वारा लखनौर साहिब तक अंबाला छावनी और अंबाला शहर से पहुंचा जा सकता है। अंबाला शहर से यदि आप जाना चाहते हैं, तो कालका चौक से अंबाला शहर में आना होगा। इसके बाद अंबाला-हिसार पुल से आगे जलबेड़ा रोड पर आएं। जलबेड़ा रोड से भानोखेड़ी होते हुए गांव लखनौर तक पहुंच सकते हैं। इसी तरह अंबाला छावनी में कालीपलटन पुल से गांव उगाड़ा, बाड़ा, माजरी से लखनौर साहिब पहुंच सकते हैं।