फसल अवशेष प्रबंधन समय की जरूरत : कुलपति

कृषि विज्ञान केंद्र ऊझा में रविवार को विश्व मृदा दिवस पर किसान मेले का आयोजन किया गया। इसमें किसानों को मृदा जांच के साथ फसल अवशेष प्रबंधन बारे विस्तार से बताया गया। मुख्यातिथि चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बलदेव राज कम्बोज रहे।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 05 Dec 2021 07:29 PM (IST) Updated:Sun, 05 Dec 2021 07:29 PM (IST)
फसल अवशेष प्रबंधन समय की जरूरत : कुलपति
फसल अवशेष प्रबंधन समय की जरूरत : कुलपति

जागरण संवाददाता, पानीपत : कृषि विज्ञान केंद्र ऊझा में रविवार को विश्व मृदा दिवस पर किसान मेले का आयोजन किया गया। इसमें किसानों को मृदा जांच के साथ फसल अवशेष प्रबंधन बारे विस्तार से बताया गया। मुख्यातिथि चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बलदेव राज कम्बोज रहे। अध्यक्षता केंद्र के वरिष्ठ समन्वयक डा. राजबीर गर्ग ने की। मेले में पुरुषों के साथ महिला किसानों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया।

कुलपति प्रो. बलदेव राज कम्बोज ने कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन समय की जरूरत है। किसानों को अपनी जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने व अच्छी पैदावार लेने के लिए धान व गेहूं के अवशेषों को जलाने की बजाय प्रबंधन करना चाहिए। उन्होंने बताया कि फसल अवशेषों को जमीन में मिलाने से जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ती है, जो मिट्टी की रीढ़ हड्डी व भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने में सहायक होते हैं। उन्होंने विश्व मृदा दिवस पर कहा कि जिस तरह इंसान अपने शरीर की जांच करा दवाई लेता है। हमें उसी तरह अपने खेत की मिट्टी की जांच करा उसमें आई कमियों को जान उसे पूरा करना चाहिए। इसलिए किसान साल में कम से कम दो बार अपनी मृदा की जांच जरूर कराए।

कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ समन्वयक डा. राजबीर गर्ग ने केंद्र की मुख्य गतिविधियों पर विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि फसल अवशेषों का प्रबंधन अब मुश्किल नहीं रहा है। प्रबंधन को जमीन की उर्वरा शक्ति के साथ पैदावार में बढ़ोतरी होती है। उन्होंने किसानों से समय समय पर मृदा जांच कराने का आह्वान किया। कार्यक्रम में महिला किसानों को सम्मानित भी किया गया। इस मौके पर मृदा वैज्ञानिक डा. किरण कुमारी, डा. सतपाल सिंह, डा. आशीष कुमार, डा. सीमा दहिया, संतोष कुमारी, पुष्पा देवी, वीना, बबली मौजूद रही। अवशेष जलाने पर निकलती जहरीली गैस

निदेशक विस्तार शिक्षा डा. रामनिवास ने बताया कि गेहूं, गन्ना व धान के अवशेषों के जलाने से 70 प्रतिशत कार्बन डाइआक्साइड, सात प्रतिशत कार्बन मोनो आक्साइड, 0.66 प्रतिशत मीथेन व 2.01 प्रतिशत नाइट्रस आक्साइड आदि जहरीली गैस निकलती हैं। जोकि मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इससे मानव व पशुओं में श्वास और त्वचा रोगों को बढ़ावा मिलता है। साथ ही मृदा की ऊपरी सतह से पोषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते हैं। ऐसे में हमें बीमारियों को रोकने व खेती को बचाने के लिए फसल अवशेषों का प्रबंधन करना होगा। वहीं मृदा वैज्ञानिक डा. किरण कुमारी ने किसानों को मृदा जांच बारे विस्तार से बताया।

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