क्लोन तकनीक से होगा नस्ल सुधार, NDRI करनाल का दुग्ध उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य

NDRI करनाल पशुओं की नस्ल सुधार पर काम कर रहा है। इससे दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होगी। उम्दा नस्ल के क्लोन पशुओं से दुग्ध उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य हासिल होगा। NDRI की गर्भाधान के लिए सीमेन डोज का आंकड़ा 14 करोड़ तक ले जाने की तैयारी है।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Thu, 24 Sep 2020 11:40 AM (IST) Updated:Thu, 24 Sep 2020 11:40 AM (IST)
क्लोन तकनीक से होगा नस्ल सुधार, NDRI करनाल का दुग्ध उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य
एनडीआरआइ करनाल में विकसित क्लोन कटड़ा तेजस। जागरण

करनाल [पवन शर्मा]। क्लोन तकनीक (Clone technique) में अग्रणी राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (National Dairy Research Institute) नस्ल सुधार पर फोकस कर रहा है ताकि उम्दा नस्ल के पशुओं से बेहतर दुग्ध उत्पादन का लक्ष्य हासिल किया जा सके। 2021-22 में गर्भाधान के लिए सीमेन की 14 करेाड़ डोज की जरूरत होगी। अभी देश में इसकी उपलब्धता महज 8.5 करोड़ है, जो 52 सीमेन फ्रीजिंग फॉर्म में स्टोर हैं। इन्हेंं बढ़ाने में क्लोन तकनीक कारगर होगी। इससे विकसित एक उम्दा नस्ल के कटड़े के सीमेन से प्रतिवर्ष 10-12 कटडिय़ां पैदा होंगी। इनमें प्रत्येक प्रतिदिन 10-12 किलो दूध देंगी।

एक भैंसे से प्रतिवर्ष लगभग 5000 सीमेन डोज फ्रीज की जा सकती है, जो 1250 भैंस में गर्भाधान के लिए उपयोगी है। ये सामान्य भैंसे से कई गुना अधिक क्षमता है। एनडीआरआइ में ऐसे 16 क्लोन कटड़े विकसित किए गए हैं। अब हिसार स्थित राष्ट्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान सहित पूरे देश के संस्थानों में बड़े पैमाने पर ये क्लोन विकसित किए जा रहे है।

इस तकनीक में नवीनतम अनुसंधान पर दैनिक जागरण से वार्ता में एनडीआरआइ के निदेशक डॉ. मनमोहन सिंह चौहान ने बताया कि देश में जितना गर्भाधान योग्य गोवंश है, हम उनमें बामुश्किल 30 प्रतिशत को सीमेन डोज उपलब्ध करा पा रहे हैं। इसे बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक ले जाना है। ऐसा तभी संभव होगा जब उम्दा नस्ल के कटड़े मिलें। क्लोन तकनीक यही कमी दूर करने में अहम साबित हो रही है। इसके लिए खास प्रोजनिंग टेस्टेड कटड़े चुने गए हैं, जिनके सीमेन से पैदा होने वाली भैंस प्रतिदिन 10-12 किलो तक दूध देगी।

उन्होंने कहा कि फिलहाल मुर्राह नस्ल की भैंसों में छह से आठ किलो का औसत दूध उत्पादन है। इसके लिए उम्दा नस्ल के अधिकतम क्लोन कटड़े विकसित किए जा रहे हैं, जो आकार-प्रकार से लेकर प्रजनन क्षमता तक हुबहू मूल क्लोन कटड़े जैसे ही होंगे, ताकि इनके सीमेन से होने वाले गर्भाधान के जरिए बेहतर दूध देने वाली भैंसों की संख्या बढ़ाई जा सके। इस पर एनडीआरआइ और सीआइआरबी सहित प्रमुख संस्थानों में कार्य जारी है। एनडीआरआइ में 16 क्लोन कटड़े विकसित किए जा चुके हैं, जिनमें नवीनतम कटड़ा तेजस जून में पैदा हुआ है। इन 16 कटड़ों में सात हिसार स्थित सीआइआरबी में हैं।

प्रोजेनिंग टेस्टेड कटड़ों पर प्रयोग

डॉ. चौहान ने ही 2009 में हैंड गाइडेड क्लोन तकनीक से क्लोन कटड़ी गरिमा को विकसित किया था। अब क्लोनिंग के उन्नत स्वरूप में वह उम्दा नस्ल के प्रोजेनिंग टेस्टेड कटड़ों और उन्नत नस्ल की भैंसों पर प्रयोग कर रहे हैं। इसके तहत इनकी पूंछ के नीचे के भाग, शरीर के अन्य हिस्सों, त्वचा, मूत्र से लेकर दूध तक का इस्तेमाल करके ऐसे पशु तैयार किए जा रहे हैं, जो सीमेन और दुग्ध उत्पादन बढ़ाने में कई गुना उपयोगी होंगे।

उम्दा क्लोन भैंसे से मिलेगा कई गुना सीमेन

क्लोन तकनीक से विकसित भैंसे से कई गुना अधिक सीमेन डोज ली जा सकती है। बेहतर पालन-पोषण के आधार पर ऐसे एक भैंसे से वर्ष में 5000 सीमेन डोज लेकर फ्रीज करना संभव है, जिससे 1250 भैंस गाभिन हो सकती हैं। जबकि सामान्य भैंसे से वर्ष में अधिकतम 100-150 बार ही गर्भाधान कराया जा सकता है।

गर्भाधान में लगती है डबल डोज

डॉ. चौहान ने बताया कि देश में फिलहाल भैंसों में कृत्रिम गर्भाधान के लिए 8.5 करोड़ सीमेन डोज उपलब्ध हैं। एक बार कृत्रिम गर्भाधान में न्यूनतम दो डोज की आवश्यकता होती है। इस आधार पर लगभग चार करोड़ भैंसों में गर्भाधान किया जा सकता है, जबकि आवश्यकता इससे कहीं अधिक है। देश के 52 सीमेन फार्म में मौजूदा स्टॉक फ्रीज है।

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