जूट के धागे से बन रहे कारपेट, हर महीने दो हजार टन की खपत; दुनियाभर में बढ़ी मांग

निर्यातक रमन छाबड़ा ने बताया कि जूट के उत्पाद की सबसे ज्यादा मांग अमेरिका और फ्रांस में रहती है। पानीपत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री का 60 फीसद से ज्यादा कारोबार भी अमेरिका से होता है। जूट के उत्पाद की मांग इसलिए बढ़ी क्योंकि अब इसे प्रिंट भी किया जाने लगा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 12:40 PM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 12:40 PM (IST)
जूट के धागे से बन रहे कारपेट, हर महीने दो हजार टन की खपत; दुनियाभर में बढ़ी मांग
कारोबारी इस साल तीस फीसद तक बढ़ोतरी की उम्मीद लगा रहे हैं।

रवि धवन, पानीपत। कोरोना संक्रमण के बावजूद पानीपत से टेक्सटाइल निर्यात करीब तीस फीसद बढ़ गया है। इसकी दो वजहे हैं। पहली वजह तो यह कि चीन से उत्पाद लेने से विदेशी खरीदार कतराने लगे, दूसरी वजह यह रही कि दुनिया के लोग प्राकृतिक धागे से बने कारपेट की मांग ज्यादा करने लगे। इससे जूट के धागे से बनी दरियों के आर्डर बढ़ गए। दरियां हाथ से बनती हैं, सो बुनने वालों की भी आय बढ़ी।

दो साल पहले तक पानीपत में जूट का धागा प्रति माह सौ से दो सौ टन लगता था, लेकिन कोरोना संक्रमण के वक्त केवल धागे-धागे की मांग हर महीने पांच सौ टन तक पहुंच गई। हालात ये हैं कि अब बंगाल से धागा, चोटी, डोरी नहीं आ रहीं। पटसन के फसल की कटाई अगले महीने से शुरू होगी। दरी-कालीन उत्पादक, जो निर्यातक भी हैं, इसी का इंतजार कर रहे हैं। इस वर्ष ओवरआल मांग बढ़कर ढाई हजार टन तक पहुंच सकती है। वैसे, पानीपत से मांग बढ़ी तो बंगाल के कई में खुशहाली आ गई है।

जूट की दरियों, बैग, टेबल मैट का अगर कारोबार बढ़ा तो उसके पीछे की कहानी कृष्णा जूट सेल्स फैक्ट्री चलाने वाले अनिल बंसल से जुड़ी है। कुछ साल पहले तक बंसल जूट की रस्सी से पैकिंग मैटेरियल बनाते, उसी से पैकिंग भी करते। निर्यातकों ने पोलिस्टर पैकिंग की तरफ रुख कर लिया तो इनका काम बंद होने लगा। जूट के काम में महारथ हासिल थी। सो, इन्होंने सोचा कि क्यों न निर्यातकों को जूट की दरियां बनाने के लिए प्रेरित किया जाए। पहले तो बंगाल गए। वहां से जूट की चोटी के आकार जैसी डोर बनवाई। अलग-अलग के धागे लेकर आए। इतना ही नहीं, पानीपत के निर्यातकों को सैंपल भी बनाकर दिखाए। उनका यह प्रयोग काम कर गया। एक हजार करोड़ से ज्यादा का सालाना कारोबार करने वाले देवीगिरी एक्सपोर्ट से लेकर छोटे एक्सपोर्टर के पास प्राकृतिक धागे से बने उत्पाद के आर्डर आने लगे।

सजने लगे रंग, नयनाभिराम हुए उत्पाद: प्राकृतिक धागे से बने उत्पादों की मांग में पिछले साल उछाल आया। दुनिया कोरोना से जूझ रही थी। अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी से लेकर बड़े देशों में लाकडाउन था। चिकित्सा विशेषज्ञ बता रहे थे कि पोलिस्टर धागे से बने उत्पादों के बजाय प्राकृतिक धागे से बने उत्पादों का उपयोग किया जाए। सो, लोगों का रुझान प्राकृतिक धागे से बने उत्पादों में रुचि इस कारण भी बढ़ी, क्योंकि अब जूट के धागे रंगे जाने लगे थे। उनसे बने उत्पाद आकर्षक हो चुके थे। नयनाभिराम हो चुके थे। पहले केवल भूरे रंग के होते थे, बोरियों के रंग जैसे।

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बंगाल में लोगों की आय बढ़ी: अनिल बंसल ने बताया कि बंगाल में लोगों की आय बढ़ गई है। उत्तर 24 परगना में जिससे उन्होंने पटसन और इसके उत्पाद लेने शुरू किए थे, पहले वह साइकिल पर चलता था। आज उसकी बड़ी कोठी है। कार है। वहीं ठाकुर नगर एरिया के घर-घर में चोटी वाली डोरी बनने लगी है। एक परिवार रोजाना एक हजार रुपये तक कमा रहा है।

कारोबार अभी और बढ़ेगा: निर्यातक विनीत शर्मा का कहना है कि इस समय जूट के धागे, डोरी की बहुत कमी है। विदेशी खरीदार रोजाना आर्डर दे रहे हैं। लेकिन उनके पास कच्चा माल ही नहीं है। इस वजह से आर्डर नहीं ले पा रहे। जिनके पहले से आर्डर लिए हुए हैं, उन्हेंं भी पहुंचाना मुश्किल हो गया है। क्योंकि धागे, चोटी का रेट बहुत बढ़ गया है। जुलाई, अगस्त में उम्मीद है कि धागा मिलने लगेगा।

बंगाल की पटसन फसल से जो डोरी बनती, उसमें रेशा आ जाता था। निर्यातकों को इससे दिक्कत आने लगी। तब अनिल और अशोक बंसल, दोनों भाई बांग्लादेश पहुंचे। वहां पर ये फसल और ज्यादा बेहतर होती है। डोरी की लंबाई भी ज्यादा निकलती। वहां की मिलों से बात कर मशीनरी में बदलाव कराया। रेशे की दिक्कत खत्म हो गई। अब बांग्लादेश से भी डोरी मंगा रहे हैं।

ऐसे समझें तरक्की का गणित: इस समय जूट का धागा 120 से 130 रुपये प्रति किलो मिल रहा है। सामान्य सीजन में सौ रुपये औसत पड़ जाता है। इस समय दो हजार टन यानी महीने में 20 लाख किलो जूट के धागा, चोटी का इस्तेइमाल हो रहा है। औसत कीमत कच्चे माल की हुई 20 करोड़। कारीगरों की आय, अन्य खर्चे सहित उत्पाद लागत भी पचास करोड़ तक पहुंच जाती है। हर महीने कम से कम अस्सी से सौ करोड़ का कारोबार तो हो ही रहा है। कारोबारी इस साल तीस फीसद तक बढ़ोतरी की उम्मीद लगा रहे हैं।

अमेरिका में सबसे ज्यादा मांग: निर्यातक रमन छाबड़ा ने बताया कि जूट के उत्पाद की सबसे ज्यादा मांग अमेरिका और फ्रांस में रहती है। पानीपत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री का 60 फीसद से ज्यादा कारोबार भी अमेरिका से ही होता है। जूट के उत्पाद की मांग इसलिए भी बढ़ी है क्योंकि अब इसे प्रिंट भी किया जाने लगा है। अलग-अलग रंग में उत्पाद बनने से वैरायटी ज्यादा पसंद आने लगी है। पहले प्लेन एक ही भूरे रंग में उत्पाद बनता था। पहले एरिया रग्स ही बनते थे। पर अब पुफ, किचन और लांड्री बास्केट बन रही हैं।

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