पशुपालक सावधान, बारिश में जरा सी लापरवाही से जा सकती है पशुओं की जान, ये बीमारियां घातक

ये खबर पशुपालकों से जुड़ी है। हरियाणा में पशुपालन का शौक तेजी से बढ़ता जा रहा है। ऐसे में ये जानना बेहद जरूरी है कि किस मौसम में किस तरह से पशुओं को बचाया जाए। बारिश में खासतौर पर। पढ़ें बारिश में कौन सी बीमारी हैं पशुओं के लिए जानलेवा।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Wed, 21 Jul 2021 09:12 AM (IST) Updated:Wed, 21 Jul 2021 09:12 AM (IST)
पशुपालक सावधान, बारिश में जरा सी लापरवाही से जा सकती है पशुओं की जान, ये बीमारियां घातक
बारिश के मौसम में पशुओं का ध्‍यान रखें।

कैथल, [सोनू थुआ]। बरसात के मौसम में पशुपालक बीमारियों के प्रति सचेत रहिए। क्योंकि अगर आप पर समय अनुसार पशु बांधने वाले स्थान पर साफ सफाई नहीं हुई तो पशु बीमारी की चपेट में आ जाएंगे और आपको आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। पशुओं को संतुलित आहार देकर बीमारियों से बचाया जा सकता है। पशुपालक पशु के बीमार होने पर अन्य पशुओं से दूर रखें ताकि दूसरा पशु संक्रमित न हो। पशुओं को साफ पानी पिलाएं। पशुओं को बरसात के पानी में न बांधे। वहीं बरसात के समय पशु के बांधने वाले स्थान पर मच्छर दानी का विशेष प्रबंध करें, ताकि पशु बीमारी से बच सकें। गला सड़ा भोजन पशु को न खिलाए।

मानसून की बरसात में इन बीमारियों के आने की संभावना

मानसून की बरसात में पशुओं को गलघोंटू, मुंहखुर, ब्लैक क्वार्टर,थनैल रोग आने की सबसे ज्यादा खतरा रहता है। हरियाणा में खेती के साथ- साथ पशुपालन भी एक अच्छा व्यवसाय है।

ऐसे रखे पशुपालक अपने पशुओं की देखभाल

गलघोंटू बीमारी एक खतरनाक बीमारी है। ये बीमारी गाय, भैंस भेड़ तथा सुअरों को लग जाती है। इसका प्रकोप ज्यादातर बरसात में होता है। शरीर का तापमान बढ़ने लगता है और पशु सुस्त रहता है। रोगी पशु का गला सूज जाता है जिससे खाना निगलने में कठिनाई होती है। इसलिए पशु खाना – पीना छोड़ देता है। पशु को सांस लेने में तकलीफ होती है, बीमार पशु 6 से 24 घंटे के भीतर मरने की संभावना रहती है। इस बीमारी के बचाव के लिए गलघोंटू के टीक लगवाएं, ताकि किसी भी प्रकार की पशुपालक को हानि न हो।

इससे भी बचाएं पशुओं को

ब्लैक क्वार्टर रोग भी ज्यादातर बरसात में फैलता है। पशु लंगड़ाने लगता है। किसी किसी पशु का अगला पैर भी सूज जाता है। सूजन धीरे – धीरे शरीर के दूसरे भाग में भी फ़ैल सकती है। सूजन में काफी पीड़ा होती है तथा उसे दबाने पर कूड़कूडाहट की आवाज होती है। शरीर का तापमान 104 से 106 डिग्री रहता है। घाव बन जाता है। पशु चिकित्सा के परार्मश से रोग ग्रस्त पशुओं की इलाज की जाए। बरसात के पहले सभी स्वस्थ पशुओं को इस रोग का निरोधक टिका लगवा लेना चाहिए।

इस तरह की लापरवाही बिल्‍कुल मत करें

थनैला रोग पशुओं में बरसात के समय आता है। इसका मुख्य कारण थन पर चोट लगना या थन का कट जाना और दूसरा कारण है संक्रामक जीवाणुओं का थन में प्रवेश कर जाता। पशु को गंदे दलदली स्थान पर बांधने तथा दूहने वाले की असावधानी के कारण थन में जीवाणु प्रवेश कर जाते हैं। अनियमित रूप से दूध दूहना भी कारण है। अधिक दूध देने वाली गाय – भैंस इसका शिकार बनती है। थन गर्म और लाल हो जाना, उसमें सूजन होना, शरीर का तापमान बढ़ जाना, भूख न लगना, दूध का उत्पादन कम हो जाना, दूध का रंग बदल जाना तथा दूध में जमावट हो जाना इस रोग के खास लक्षण हैं। बचाव के लिए पशु को हल्का और सुपाच्य आहार देना चाहिए। सूजे स्थान को सेंकना चाहिए। पशु चिकित्सक की राय से एंटीवायोटिक दवा या मलहम का इस्तेमाल करना चाहिए। संक्रमित थनैल को सबसे अंत में दुहना चाहिए।

पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए लीकेज छत में पशुओं को न बांधे। पंखा ऊंचे स्थान पर बांधे। गला सड़ा भोजन न दे। बीमारी की शिकायत पर तुंरत डाक्टर को तुरंत सूचित करें। पशुओं को बुखार की भी शिकायत रहती है।

मंगल सिंह, पशुपालन उपनिदेशक, कैथल

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