कोरोना से खुद जंग जीती, अब संक्रमित मरीजों की सेवा में जुटीं करनाल की ऐश
कोरोना योद्धा अपने परिवार और स्वास्थ्य की चिंता के साथ-साथ कोरोना संक्रमितों की सेवा में लगी हैं। करनाल की ऐश ने कोरोना संक्रमण को हराया। इसके बाद मरीजों की सेवा में जुट गईं। ऐश करनाल के जलमाना प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में हैं सेवारत।
करनाल, [मोतीलाल चौहान]। कोरोना संक्रमण से भारत ही नहीं, पूरी दुनिया जूझ रही है। एक ओर जहां सरकार और स्वास्थ्य विभाग की ओर से इस मुश्किल वक्त में सभी की जान बचाने के लिए अपने अपने घरों में रहने की अपील की जा रही है तो वहीं इस संकट के समय चिकित्सक और अन्य स्वास्थ्यकर्मी अपनी जान जोखिम में डालकर मरीजों की दिन-रात सेवा कर रहे हैं।
जलमाना के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात एएनएम ऐश बेशक खुद कोरोना से लड़ाई लड़ चुकी हैं। इसके बावजूद पूरी जिम्मेदारी से अपने मोर्चे पर डटी हुई हैं। सिस्टर ऐश ने बताया कि किसी भी मरीज को ठीक करने में जितना योगदान डॉक्टर का होता है, उससे कहीं ज्यादा नर्स का होता है। ऐसे में हालात और भी विपरीत हो जाते हैं, जब कोरोना जैसा भयानक संक्रमण का दौर हो जो एक दूसरे के माध्यम से फैलता हो। सेवा के रिश्ते को बखूबी निभाने के कारण उन्हें सिस्टर उपनाम दिया गया है और सरकार द्वारा आशा को दीदी का।
परिवार से ज्यादा जिम्मेदारी का पालन
उन्होंने बताया कि पिछले साल से ही कोरोना वायरस का कहर कायम है। इसके बावजूद वह हर परिस्थिति में अपने घर और परिवार से पहले जिम्मेदारी को महत्व देती हैं। अस्पताल में सबसे ज्यादा समय मरीजों के साथ नर्स ही बिता रही हैं। जिन नर्स के छोटे बच्चे होते हैं, उन्हें वह घर पर छोड़कर आती हैं और अस्पताल में अपनी जिम्मेदारी निभाती हैं। इस महामारी के कारण अधिकतर समय अपने बच्चों से दूर रहना पड़ता है। कई बार बच्चे भी अपनी मां से मिलने की जिद में रोने लगते हैं तो घरवाले काफी परेशान होते हैं। तीन साल का बेटा अपनी दादी के साथ ही खेलता है। पास आने की जिद करता है लेकिन बुरे दौर में अपने जिगर के टुकड़े को खुद से दूर रहकर अपने फर्ज को निभाना आसान काम नहीं है। उनकी एक बेटी और तीन साल का बेटा है। एएनएम ऐश ने बताया कि वह कोरोना पॉजिटिव भी हो गई थीं। परिवार में भी कई सदस्यों को इस दौर से गुजरना पड़ा लेकिन हिम्मत नहीं हारी और फिर कर्तव्य निभाने में कोई कमी नहीं छोड़ रही हैं।