हिमाचल प्रदेश के सेब की पौध जींद में हो रही तैयार, जानिए क्‍या है खासियत

हिमाचल प्रदेश के किसान जींद में सेब की पौध तैयार करवा रहे। कंडेला गांव के किसान सुनील की नर्सरी में सेब की 60 हजार पौध हो रही तैयार। करीब 20 हजार पौधे तीन से चार फुट हो चुके हैं।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Fri, 16 Apr 2021 04:32 PM (IST) Updated:Fri, 16 Apr 2021 04:32 PM (IST)
हिमाचल प्रदेश के सेब की पौध जींद में हो रही तैयार, जानिए क्‍या है खासियत
सेब की पौध के साथ सुनील कंडेला व जितेंद्र चहल।

जींद, [कर्मपाल गिल]। हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादक किसानों को जींद जिले के गांव कंडेला के सुनील का खेत पसंद आ गया है। सुनील के खेत में हिमाचल के किसान सेब की पौध करवा रहे हैं। सेब के करीब 20 हजार पौधे तीन से चार फुट हो चुके हैं। नवंबर-दिसंबर में इन पौधों को हिमाचल के खेतों में रोपा जाएगा।

सुनील कंडेला ने बताया कि सालभर पहले हिमाचल प्रदेश के किसान उसका अमरूद का बाग देखने आए थे। तब उनको खेत की मिट्टी-पानी काफी पसंद आ गई। उन्होंने चार साल से खेत में रासायनिक उर्वरक या कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। ट्यूबवेल भी नहीं है। नहरी पानी को स्टोर करके ड्रिप सिस्टम से सिंचाई करते हैं। इस कारण जमीन में कार्बनिक पदार्थ काफी बढ़ गए हैं। सुनील बताते हैं कि हिमाचल में ठंड के कारण नर्सरी में पौधों की बढ़वार कम होती है। वहां पानी की भी कमी है। इस कारण दो महीने पहले हिमाचल के किसानों ने उनके खेत में बने पॉलीहाउस में नर्सरी सेटअप की थी। अब नर्सरी में सेब के पौधों की लंबाई करीब तीन-चार फुट हो चुकी है। सारे पौधे बहुत अच्छे तरीके से ग्रोथ कर रहे हैं। आगामी नवंबर-दिसंबर में इनकी हिमाचल के खेतों में रोपाई कर दी जाएगी। तब तक इनकी लंबाई दो फुट और बढ़ जाएगी। सेब के अलावा अमरूद के 10 हजार पौधों की नर्सरी भी तैयार की जा रही है। इन पौधों को पहले आओ पहले पाओ के आधार पर किसानों को रियायती दामों पर वितरित करेंगे।

गोमूत्र आधारित जीवामृत से सुधारा खेत

सुनील कंडेला कहते हैं कि चार साल पहले पांच एकड़ में आर्गेनिक खेती करनी शुरू की थी। शुरू में पूरे खेत की सिंचाई के साथ गोमूत्र के भरे दो ड्रम प्रयोग में लाए। पहले अरहर व मूंग की खेती की। अगले साल एकड़ में दो एकड़ में नींबू व एक एकड़ में अमरूद का बाग लगाया। नहरी पानी के लिए टैंक बनाया। उनके खेत में ट्यूबवेल नहीं है और पांच एकड़ में ड्रिप सिस्टम के जरिए सिंचाई होती है। पड़ोसियों जिस धान की पराली व ईंख की पत्तियों को जला देते हैं, उन्हें वह अपने खेत में लाकर बाग के बेड पर रखते हैं। इससे खरपतवार नहीं होती और जमीन में नमी बनी रहती है। खेत में साहीवाल नस्ल की तीन देसी गाय भी रखी हैं, उनका गोमूत्र और गोबर से जीवामृत बनाते हैं। गोबर के सदुपयोग के लिए गोबर गैस प्लांट लगा दिया है। इससे जमीन काफी सुधर गई है। चार साल पहले उनका खेत सबसे कमजोर था, अब उसमें कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ गई है। बाग के बीच में लहसुन, प्याज अदरक, सहित दूसरी सब्जियां भी लेते हैं।

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