इस किसान का कमाल, हजारों से लाखों में पहुंची कमाई, अपनाया ये तरीका
जींद के बुडायन का किसान शिशपाल ने न सिर्फ खेती का तरीका बदला बल्कि दूसरों के लिए नजीर भी बन गए। बागवानी अपनाकर हजारों की कमाई को लाखों में कर दिया। परंपरागत खेती से बागवानी की तरफ आकर 10 गुणा मुनाफा कमा रहे।
पानीपत/जींद, जेएनएन। उचाना के गांव बुडायन के किसान शिशपाल कंदोला ने परंपरागत खेती छोड़ जैसे ही बागवानी अपनाई तो उसकी आमदनी हजारों से लाखों में चली गई है। बागवानी अपनाकर शिशपाल ने अपनी आमदनी को पहले की बजाय 10 गुणा तक बढ़ाया है। इतना ही नहीं, बागवानी की यह खेती शिशपाल पूरी तरह से आॅर्गेनिक कर रहा है, जिसकी आसपास क्षेत्र में काफी डिमांड और चर्चा है।
मात्र सातवीं कक्षा तक पढ़ा शिशपाल आर्य परिवार से संबंध रखता है। इस कारण खान-पान की तरफ उनका विशेष ध्यान शुरू से ही था। हर बार परंपरागत खेती करते हुए खेती उसके लिए घाटे का सौदा बन रही थी या यूं कहें कि एक साल में उसे खेती से ज्यादा बचत नहीं होती थी। इस पर शिशपाल ने कुछ नया करने का सोचा और परंपरागत खेती में बदलाव करते हुए बागवानी को अपनाया, ताकि अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार सके। बड़े भाई यशपाल कंदोला ने मागर्दशन किया और प्रोत्साहित किया तो शिशपाल ने तीन एकड़ में अमरुद के बाग लगाया। पहले ही साल परंपरागत खेती की बजाय मुनाफा तीन से चार गुणा हुआ। अगली साल आमदनी चार गुणा तक बढ़ गई तो वह पूर्ण रूप से बागवानी की ओर ही रूख कर गया। पहले शिशपाल को तीन एकड़ में गेहूं और कपास की फसल से एक लाख रुपये की बचत मुश्किल से होती थी लेकिन अब शिशपाल 8 से 10 लाख रुपये सालाना कमा रहा है।
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अमरुद की अलग-अलग किस्में हैं शिशपाल के बाग में
शिशपाल के बाग में अमरुद की कई किस्में हैं, जिनमें हर किस्म का अलग ही स्वाद है। वह बताते हैं कि हिसार सफेदा, हिसार सूरखा, इलाहाबादी सफेदा, एपल क्रास जैसी किस्में उनके बाग में हैं। इस बार पिंक ताइवान किस्म के अमरुद भी उन्होंने लगाए हैं, जिसका छोटा सा पौधा ही फल देने लगता है। शिशपाल ने बताया कि यूं तो एक साल में तीन बार सीजन आता है लेकिन वह एक या दो बार ही अमरुद तोड़ते हैं। इससे इनका टेस्ट भी अच्छा रहता है तो यह ग्रोथ भी बढ़िया करते हैं।
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आॅर्गेनिक खेती की होती है ज्यादा डिमांड
शिशपाल का शुरू से ही आॅर्गेनिक खेती की तरफ रूझान रहा है। इसलिए परंपरागत खेती को छोड़ बागवानी अपनाने के बाद भी उन्होंने आॅग्रेनिक को ही अपनाया। शुरूआत में काफी दिक्कतें आई, क्योंकि जमीन के कीट भी पेस्टीसाइट के आदी हो चुके थे, इसलिए शुरू में उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी। अपने फार्म पर शिशपाल ने चार गाय बांध रखी हैं तो भैंसें भी हैं। इन गायाें का गोबर खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है तथा मूत्र से दवाई बनाई जाती है।
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लोग लेने आ रहे सलाह
शिशपाल ने बताया कि आॅर्गेनिक खेती को लेकर काफी लोग उनसे जानकारी भी लेने आते हैं। शिशपाल ने लोगों से अपील की कि फसलों में पेस्टीसाइड का कम प्रयोग करें और जहरमुक्त खेती की ओर अग्रसर हों। उचाना क्षेत्र में पानी की समस्या है, इसलिए ज्यादा लोग बागवानी से जुड़ें, जिससे किसान आर्थिक रूप से मजबूत हों।