पराली जलाने वाले 280 किसान चिह्नित, छह लाख का जुर्माना वसूला गया
पराली जलाने वालों पर कृषि विभाग की कार्रवाई हुई। कृषि विभाग ने पराली जलाने वाले किसान को सैटेलाइट के जरिए चिह्नित किया। इसके बाद उन पर छह लाख रुपये का जुर्माना लगाया। मुकदमे के डर से किसान जुर्माना भर रहे हैं।
पानीपत/यमुनानगर, जेएनएन। पराली जलाने वालों पर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग सख्ती खूब है। जिले में जिले में 280 किसानों पर छह लाख रुपये जुर्माना किया है। किसान जुर्माना भरकर मुकदमे से बच रहे हैं। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि पराली जलाने वालों से जुर्माना वसूला जाएगा। यदि किसी किसान ने जुर्माना अदा नहीं किया तो उसके खिलाफ केस निश्चित है। बता दें कि इस बार विभाग इस दिशा में विशेष रूप से मुस्तैद रहा।
गत वर्ष यह रही कार्रवाई
वर्ष जुर्माना
2017 27 हजार 500 रुपये
2018 दो लाख 82 हजार
2019 दो लाख 90 हजार
2020 छह लाख रुपये
जीपीएस सिस्टम से रखी निगरानी
धान के अवशेष जलाने पर प्रशाासन ने सेटेलाइट प्रणाली के जरिए जीपीएस सिस्टम से निगरानी रखी। उन जगहों की पहचान की गई जहां किसान फसल अवशेषों को आग के हवाले कर देते हैं। रोकथाम के लिए इस बार सरपंचों को भी विशेष रूप से हिदायत दी गई। अधिकारियों का कहना है कि पराली जलाने से प्रदूषण का स्तर सामान्य से कई गुणा बढ़ जाता है। विभाग का यह प्रयास रहा कि किसान धान के अवशेषों के बीच ही गेहूं की बिजाई करें।
यह है नुकसान
फसल अवशेष जलाने से पोषक तत्वों का नुकसान होता है। फसल अवशेष जलाने से सौ प्रतिशत नाईट्रोजन, 25 प्रतिशत फास्फोरस, 20 प्रतिशत पोटाश और 60 प्रतिशत सल्फर का नुक्सान होता है। उन्होंने बताया कि इससे जैविक पदार्थ नष्ट हो जाते हैं। मिट्टी कीटों का नुकसान होता है। फसल अवशेष जलाने से कार्बन मोनोआक्साइड, कार्बनडाई आक्साईड, राख, सल्फर हाईआक्साईड, मीथेन और अन्य अशुद्धियां उत्पन्न होती है। इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है। इन्हें जलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति कम होने के साथ-साथ भूंडलीय तापमान में बढोतरी होती है तथा छोटे पौधे और वृक्ष पर आश्रित पक्षी मारे जाते हैं।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डा. सुरेंद्र यादव का कहना है कि फसल अवशेषों के साथ 10-15 किलोग्राम यूरिया खाद डालने से अच्छी जैविक खाद मिलती है। भूमि की उर्वरा शक्ति और जैविक कार्बन में बढ़ोतरी होती है। इससे समय की बचत होती है और उपयुक्त समय पर बिजाई संभव होती है। फसल अवशेष पोटाश और अन्य पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने का महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं। इससे रासायनिक खादों पर निर्भरता कम होती है। पानी की बचत होती है। फसल अवशेष अत्याधिक गर्मी व ठंड में भूमि के तापमान नियंत्रण में सहायक होते हैं। बदलते मौसम के प्रभाव का प्रकोप कम होता है।