हरियाणा में महिला IPS अफसरों से ही क्यों होता है विज का पंगा, एसपी मनीषा चौधरी मामले में सियासत तेज

हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज के पानीपत की एसपी मनीषा चौधरी के खिलाफ एसआइआर दर्ज करने के आदेश सक राज्‍य में राजनीति गर्मा गई है। सवाल खड़े किए जा रहे हैं कि आखिरकार अनिल विज का महिला आइपीएस अफसरों से ही विवाद क्‍यों होता है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Tue, 24 Nov 2020 01:47 PM (IST) Updated:Tue, 24 Nov 2020 08:34 PM (IST)
हरियाणा में महिला IPS अफसरों से ही क्यों होता है विज का पंगा, एसपी मनीषा चौधरी मामले में सियासत तेज
हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज और पानीपत की एसपी मनीषा चौधरी। (फाइल फाेटो)

चंडीगढ़, जेएनएन। हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला और गृहमंत्री अनिल विज भले ही अपने बीच सब कुछ ठीक होने का दावा करते रहें, लेकिन इस दावे में सच्चाई बिल्कुल भी नजर नहीं आती। दुष्यंत चौटाला और अनिल विज को जब भी मौका मिलता है, दोनों एक दूसरे को घेरने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते। ताजा मामला पानीपत की एसपी मनीषा चौधरी के विरुद्ध एफआइआर दर्ज होने से जुड़ा है।

अफसरों को ढाल बनाकर एक दूसरे को घेर रहे दुष्यंत चौटाला और अनिल विज

पानीपत के पूर्व पार्षद हरीश शर्मा और उनके साथी राजेश शर्मा के आत्महत्या से जुड़े मामले में विज के हस्तक्षेप से मनीषा चौधरी के विरुद्ध एफआइआर दर्ज हुई है, जबकि दुष्यंत ने इस पर सवाल उठाए हैं। इस पूरे मामले को लेकर राजनीति तेज हो गई है। अफसरशाही गरम है तो राजनीति चरम पर है।

मनीषा चौधरी पर एफआइआर दर्ज होने के बाद उनकी चंडीगढ़ में एसएसपी ट्रैफिक के पद पर होने वाली पोस्टिंग भी लटक गई है। मनीषा चौधरी पर एफआइआर दर्ज होने के बाद प्रदेश की आइपीएस लाबी में सख्त नाराजगी है। यह पहला मौका नहीं है, जब गृह मंत्री अनिल विज ने पुलिस अधिकारियों को लपेटे में लिया हो। इससे पहले उनका आइपीएस अधिकारी संगीता कालिया से विवाद हो चुका है।

आइपीएस लाबी में चल रही सुगबुगाहट से सरकार चिंतित, दबंग विज को नहीं परवाह

उस समय वह फतेहाबाद की एसपी थी। कुछ दिन पहले ही लाकडाउन के दौरान शराब की अवैध बिक्री के मामले में सोनीपत की एसपी प्रतीक्षा गोदारा के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की गई थी। यहां सवाल यह भी उठ रहा कि आखिरकार विज का आइपीएस और वह भी महिला आइपीएस अफसरों से ज्यादा पंगा क्यों होता है? विज के पास इसका जवाब गलत बात स्वीकार नहीं करने से जुड़ा है, मगर मुश्किल सरकार की बढ़ रही है।  

सीआइडी प्रमुख रहे शत्रुजीत कपूर और अनिल कुमार राव से भी अनिल विज का कई बार पंगा हो चुका है। डीजीपी मनोज यादव से विज खुश नहीं हैं। एडीजीपी एएस चावला को विज औचक निरीक्षण में पद से हटा चुके हैं। हालांकि बाद में वह मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप से दोबारा काम पर लौट चुके हैं। करीब आधा दर्जन आइपीएस अधिकारी ऐसे हैं, जो विज के सीधे निशाने पर हैं। विज की यह सख्ती भले ही पुलिस विभाग की गंदगी साफ करने की मंशा वाली है, लेकिन आइपीएस लाबी ने सरकार पर अपना दबाव बढ़ा दिया है। सरकार पहले ही आइपीएस लाबी को आइएएस कैडर के पदों पर नियुक्तियां देने के मामले में खासी नरम है।

अनिल विज और दुष्यंत चौटाला के बीच तकरार नई नहीं, बरसों से चली आ रही दोनों में खटपट

बहरहाल, बात विज और दुष्यंत के बीच पुरानी तनातनी को लेकर हो रही है। दुष्यंत जब विपक्ष में थे, तब उन्होंने पिछली सरकार में विज के स्वास्थ्य मंत्रालय की कार्य प्रणाली पर गंभीर सवाल उठाते हुए करोड़ों रुपये का दवा घोटाला होने की बात कही थी। दोनों के बीच जुबानी जंग इतनी बढ़ी कि उन्हें एक दूसरे के विरुद्ध अदालत तक जाने की बात कहनी पड़ी।

भाजपा के साथ सरकार में साझीदार होने के बाद जजपा ने अपनी कार्य प्रणाली में बदलाव करना चाहा। इसकी शुरुआत दिग्विजय चौटाला ने अनिल विज के पांव छूकर की, लेकिन लाकडाउन में शराब घोटाले की जांच के लिए एसईटी के गठन ने विज और दुष्यंत के बीच तनातनी इस कदर बढ़ा दी कि अब दोनों एक दूसरे पर वार करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते हैं।

शराब घोटाले में एसईटी की सिफारिश को आधार बनाते हुए विज ने आबकारी एवं कराधान आयुक्त शेखर विद्यार्थी के विरुद्ध भी कार्रवाई की संस्तुति कर डाली। दुष्यंत को यह बात खासी नागवार गुजरी और उन्होंने शेखर का अड़कर बचाव किया। हालांकि बाद में दुष्यंत और विज के बयान आए कि दोनों के बीच किसी तरह की तकरार नहीं है और दोषी होने की स्थिति में आइपीएस प्रतीक्षा गोदारा के विरुद्ध भी कार्रवाई हुई है।

विज और दुष्यंत के बीच विवाद भाजपा हाईकमान के पास भी पहुंचा। दोनों कुछ दिनों तक शांत रहे। अब पानीपत की एसपी मनीषा चौधरी के विरुद्ध दर्ज मुकदमे पर सवाल उठाकर दुष्यंत ने जहां अपनी पुरानी खुन्नस निकाली है, वहीं विज भी किसी तरह से दबाव में आने के मूड में कतई नजर नहीं आ रहे हैं। विज और दुष्यंत के बीच यह तनातनी अफसरशाही के लिए किसी अवसर तथा सरकार के लिए परेशानी से कम नहीं है।

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