हरियाणा की BJP-JJP सरकार के एक साल पूरे, विपक्ष के 'स्‍पीड ब्रेकरों' के बावजूद सरपट चली गाड़ी

हरियाणा में भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार का आज पूरा हो गया। इस सरकार का गठन पिछले साल 28 अक्‍टूबर को हुआ था। पिछले एक साल में इस गठबंधन की सरकार की गाड़ी विपक्ष के तमाम स्‍पीड ब्रेकरों के बावजूद छलांग मारकर चलती रही। पेश है सरकार का लेखा-जोखा।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Mon, 26 Oct 2020 02:58 PM (IST) Updated:Tue, 27 Oct 2020 07:17 AM (IST)
हरियाणा की BJP-JJP सरकार के एक साल पूरे, विपक्ष के 'स्‍पीड ब्रेकरों' के बावजूद सरपट चली गाड़ी
पिछले साल भाजपा-जजपा सरकार के गठन के बाद सीएम मनोहरलाल व डिप्‍टी सीएम दुष्‍यंत चौटाला। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा की भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने अपना एक साल पूरा कर लिया है। इस दौरान गठबंधन सरकार की गाड़ी तमाम दिक्‍कतों व विपक्ष के 'स्‍पीड ब्रेकरों' के बावजूूद छलांग मारकर चलती रही। गठबंधन सरकार के का पहला साल राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परेशानियों से भरा रहा। अल्पमत में होने के बावजूद सत्तारूढ़ भाजपा के लिए जननायक जनता पार्टी का मिला साथ हौसला बढ़ाने वाला रहा। एक साल के कार्यकाल में सरकार के सात महीने कोरोना का मुकाबला करने में बीत गए। बाकी बचे पांच माह में उपलब्धि के पर कोई बड़ा काम नहीं हो पाया, लेकिन सरकार ने पटरी से उतरी प्रदेश की अर्थव्यवस्था को इसी साल काबू करने में सफलता हासिल कर ली। हालांकि इस दौरान कुछ अहम फैसले भी सरकार ने लिए हैं।

एक साल के कार्यकाल में सात माह तक कोरोना संकट से जूझी भाजपा-जजपा की सरकार

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पिछले साल भाजपा 40 विधायकों और जजपा के 10‍ विधायकों के साथ दूसरी बार सत्ता संभाली थी। इसमें कई निर्दलीय विधायकों का भी साथ मिला। पिछले पांच साल के पारदर्शी और भ्रष्टाचार रहित शासन के दावे के बावजूद भाजपा हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 (Haryana assembly Election 2019) esa 75 पार के नारे को सिरे चढ़ाने में कामयाब नहीं हो पाई थी।

इनेलो से अलग होकर अस्तित्व में आई अजय चौटाला और दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी के 10 विधायक मनोहर लाल की सरकार के सारथी बने। भाजपा के पास हालांकि सात निर्दलीय और एक हलोपा विधायक के समर्थन से सरकार बनाने का विकल्प भी था, लेकिन स्थायित्व के लिए भाजपा हाईकमान ने निर्दलीय विधायकों को नेपथ्य में (परदे के पीछे) रखते हुए जजपा के साथ राजनीतिक दोस्ती आगे बढ़ाने का बड़ा फैसला लिया।

 

अपनी मां नैना चौटाला व जजपा के प्रदेश प्रधान सरदार निशान सिंह के साथ दुष्‍यंत चौटाला।

पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था को इसी साल काबू करने में सफल रहा सरकारी सिस्टम

भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल, गृह मंत्री अनिल विज, शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर और सहकारिता मंत्री डा. बनवारी लाल को छोड़कर अधिकतर चेहरे नए थे। ऐसे में सरकार चलाने के अनुभव की कमी भी साफ दिखाई दी। इसकी वजह यह रही कि विज को छोड़कर पिछली सरकार में शामिल मुख्यमंत्री का कोई सहयोगी चुनाव नहीं जीत सका। आठ मंत्रियों की हार तथा दो मंत्रियों के टिकट कटने की वजह से भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार में अधिकतर नए चेहरों को ही मंत्रालय सौंपे गए, जिस कारण विधानसभा में न केवल कांग्रेस हावी रही, बल्कि इनेलो के एकमात्र विधायक अभय चौटाला ने भी दमदार तरीके से सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं गंवाया।

 पार्टियों की अंदरूनी राजनीति से जूझती रही भाजपा और जजपा, कांग्रेस व इनेलो ने बढ़ाई मुश्किलें

भाजपा-जजपा की राजनीतिक दोस्ती को लेकर हरियाणा के राजनीतिक गलियारों में साल भर चर्चाओं के दौर चलते रहे। विपक्ष खासकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अभय सिंह चौटाला ने जजपा के भाजपा के साथ जाने के फैसले पर गंभीर सवाल उठाए। दलील दी गई कि जजपा को भाजपा के विरोध स्वरूप वोट मिले थे, लेकिन जजपा ने भाजपा का साथ देकर अपने ही वोट बैंक के साथ न्याय नहीं किया। इसके विपरीत जजपा का जवाब था कि कार्यकर्ताओं और पब्लिक के काम कराने के लिए सत्ता में भागीदारी जरूरी होती है। इसलिए कांग्रेस का साथ देने से अच्छा कमल के फूल की डंडी पकड़ना ज्यादा हितकर है।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा औी अभय चौटाला।

एक साल की सरकार में रही कई घोटालों की गूंज

भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार के एक साल के कार्यकाल में कई घोटालों की गूंज रही। लाॅकडाउन के दौरान शराब की अवैध बिक्री से जुड़ा घोटाला हो या फिर अनापत्ति प्रमाण पत्र के बिना प्रापर्टी की रजिस्ट्रियों में गोलमाल, केंद्रीय पूल के लिए धान से चावल बनाकर देने के काम में गड़बड़ हो या फिर परिवहन विभाग में बसों के परमिट देने में नियमों की अनदेखी सरकार पर घेरा कसता दिखा। इसके साथ ही फरीदाबाद का बिजली मीटर स्कैम, दूसरे राज्यों से धान मंगाकर मिलों में पूरे किए गए स्टाक का मामला तथा फसल बीमा योजना में बीमा कंपनियों की मनमानी, ऐसे तमाम मामलों की वजह से गठबंधन की सरकार अस्त-व्यस्त रही। एक विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा के निधन के बाद 30 विधायकों वाले प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस और एक विधायक वाले इनेलो ने इन तमाम मुद्दों को पूरी मजबूती के साथ उठाकर सरकार की घेराबंदी का कोई मौका नहीं छोड़ा।

अधिकारियों की मनमानी ने बढ़ाई सरकार की परेशानी

एक साल के कार्यकाल में प्रशासनिक अधिकारियों ने भी जमकर मनमानी की। अधिकतर सांसदों और विधायकों ने अधिकारियों पर उनकी बात नहीं सुनने के आरोप जड़े। विधानसभा स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता को इस पर कड़ा संज्ञान लेना पड़ा। मुख्यमंत्री मनोहर लाल के संज्ञान में मामला आया तो मुख्य सचिव के जरिये अधिकारियों के लिए प्रोटोकाल का अनुपालन करने तथा उनकी दमदार तरीके से सुनवाई करने के आदेश जारी किए गए। इसके बावजूद भी अधिकारियों की कार्य प्रणाली पर कोई खास फर्क पड़ा हो, ऐसा सभी विधायक नहीं मानते। विपक्ष ने पूरे साल सरकार को दबाव में लिए रखा।

गृह मंत्री अनिल विज ने कई बार किया सरकार को असहज

भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार में सबसे सीनियर मंत्री अनिल विज हैं। उन्हें राजनीति का अच्छा खासा तुजुर्बा है। आइपीएस अधिकारियों के तबादलों में जब उनकी नहीं चली तो वह नाराज हो गए। मुख्यमंत्री कार्यालय से हुए आइपीएस अधिकारियों के तबादलों पर विज की आपत्ति के बाद विवाद बढ़ते चले गए। बाद में हालांकि सीएम ने उन्हें मना लिया, लेकिन दिलों में खटास बरकरार रही। अनिल विज के पास शहरी निकाय, स्वास्थ्य और आयुष विभाग भी है। इन विभागों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों के साथ ही जब उन्होंने शराब घोटाले की विजिलेंस जांच की सिफारिश की तो अधिकतर फाइलें सीएमओ में अटक गई, जिस कारण विज ने अपना स्टाइल बदल लिया।

विज ने सरकार की नीतियों की तो परवाह की, लेकिन व्यक्ति विशेष या अधिकारी के खिलाफ रहे। सीआइडी को लेकर मुख्यमंत्री व विज में कई दिनों तक असहजता के हालात बने रहे। आखिरकार यह मामला भाजपा हाईकमान के पास पहुंचा। सीआइडी सीएम ने अपने पास रखी। पहले सीआइडी प्रमुख शत्रुजीत कपूर की तरह दूसरे सीआइडी प्रमुख अनिल कुमार राव से उनकी पूरे साल नहीं बनी। अब डीजीपी मनोज यादव के साथ उनकी खटपट की खबरें आ रही हैं। एक दर्जन एसपी तथा एडीजीपी रैंक के एएस चावला के विरुद्ध भी विज ने कार्रवाई कर अधिकारियों को कठोर संकेत दे दिए थे।

अनिल विज और दुष्यंत चौटाला में भी कई बार हुई खटपट

गृह मंत्री अनिल विज और डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के बीच विभागीय मामलों को लेकर कई बार खटपट सामने आई। एक मौका ऐसा भी आया था, जब विधायकों ने अनिल विज के पास हाजिरी भरनी शुरू कर दी थी। मनोहर लाल की पहली सरकार के कार्यकाल में दुष्यंत चौटाला जब इनेलो में थेे, तब उन्होंने अनिल विज के स्वास्थ्य विभाग में दवाई घोटाला उठाते हुए उन पर गंभीर आरोप जड़े थे। मानहानि को लेकर दोनों का विवाद अदालत तक भी पहुंचा था।

अब गठबंधन की सरकार में विज और दुष्यंत आरंभ में तो सामान्य दिखाई दिए, लेकिन शराब घोटाले की जांच को लेकर आबकारी एवं कराधान आयुक्त शेखर विद्यार्थी के विरुद्ध कार्रवाई की सिफारिश, फिर दुष्यंत द्वारा पुलिस की कार्य प्रणाली पर सवाल उठाने का पलटवार और बाद में रजिस्ट्री घोटाले को लेकर पूरे समय विज और दुष्यंत के बीच खींचतान चलती रही। अभी भी दोनों के बीच अंदरूनी तौर पर हालात सामान्य नहीं हैं, लेकिन बाहरी तौर पर सब कुछ ठीक चल रहा है।

कोविड के विरुद्ध सरकार ने मजबूती के साथ लड़ी लड़ाई

गठबंधन सरकार को अपने एक साल के कार्यकाल में सात महीने कोविड से जूझते हुए हो गए। अच्छी बात यह है कि हरियाणा में कोविड के प्रसार पर काफी हद तक कंट्रोल कर लिया गया है। स्वास्थ्य मंत्री होने के नाते अनिल विज ने लगातार बैठकें की। मुख्यमंत्री मनोहर लाल पल-पल का अपडेट लेते रहे। दुष्यंत चौटाला और मूलचंद शर्मा समेत बाकी मंत्रियों ने भी कोविड की रोकथाम के लिए किए गए सरकारी प्रयासों की सराहना की। समाजसेवी संगठनों के साथ-साथ विपक्षी दलों कांग्रेस तथा इनेलो का सरकार को भरपूर सहयोग व समर्थन मिला।

सामाजिक संगठनों ने अपने स्तर पर खूब काम किया, जिस कारण कोविड में परेशान लोगों को आर्थिक तथा खाने-पीने की खासी मदद मिल पाई। आज हरियाणा के हालात सामान्य होने की ओर अग्रसर हैं। इस काम में डाक्टरों, कर्मचारियों, पुलिस तथा अधिकारियों की टीम ने अपनी जिम्मेदारी का बखूबी निर्वाह किया। इस दौरान मुख्यमंत्री व डिप्टी सीएम समेत एक दर्जन के आसपास मंत्री, विधायक और सांसद कोरोना पाजिटिव हो गए।

निर्दलीय विधायकों ने कई बार दिखाई सरकार को आंख

भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार को कई बार निर्दलीय विधायकों की मनमानी का शिकार भी होना पड़ा। सरकार ने हालांकि सात निर्दलीय विधायकों में से छह को एडजेस्ट कर दिया। एक निर्दलीय विधायक रणजीत सिंह चौटाला को बिजली मंत्री बनाया। बाकी पांच विधायकों को बोर्ड एवं निगमों का चेयरमैन बनाया गया। महम के निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू ने पूरे साल सरकार की नाक में दम करके रखा। पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर के साथ हुए उनके विवाद में सरकार इस कद्र उलझ गई कि उसने अपने एक अच्छे साथी को खुद से दूर कर लिया। निर्दलीय विधायकों ने सरकार पर दबाव बनाने तथा मंत्री पद या बढ़िया चेयरमैनी हासिल करने के लिए निर्दलीय विधायकों ने कई बार अलग-अलग बैठकें करने की नौटंकी भी खूब की, लेकिन सरकार उनके दबाव में नहीं आई।

मुख्यमंत्री ने जीता विधायकों और कार्यकर्ताओं का भरोसा

अपने एक साल के कार्यकाल में कोरोना से जूझते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अपनी पार्टी के विधायकों का भरोसा जीतने में सफलता हासिल की है। मुख्यमंत्री हर मंगलवार को विधायकों से अपने आवास पर मिलते हैं। अब उन्होंने पूर्व विधायकों, बोर्ड एवं निगमों के चेयरमैनों तथा पराजित उम्मीदवारों के साथ भी संवाद बढ़ा दिया है, जो कि उनकी ताकत बना है। पार्टी के प्रमुख पदाधिकारी भी अब बुधवार को मुख्यमंत्री से उनके आवास पर समय लेकर मुलाकात कर सकते हैं। इस बढ़े संवाद के कारण कार्यकर्ताओं में भरोसा जगा है।

डिप्टी सीएम के विधायकों ने कई बार किया उन्हें असहज

नारनौंद के जजपा विधायक रामकुमार गौतम ने अपनी पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला को कई बार असहज किया। गौतम मंत्री बनना चाहते थे, लेकिन सरकार में ऐसे कई गणित होते हैं, जिनमें कुछ गुणा भाग जरूरी होते हैं। ऐसी स्थिति ही कई बार देवेंद्र बबली, ईश्वर सिंह और रामकरण काला ने भी पैदा की, लेकिन दुष्यंत चौटाला और उनके रणनीतिकारों ने बोल्ड निर्णय लेते हुए न केवल इन विधायकों को खुली चेतावनी दी, बल्कि समय आने पर अधिकतर विधायकों को बोर्ड एवं निगमों में चेयरमैन के पदों पर भी एडजेस्ट करा दिया है। अब सिर्फ रामकुमार गौतम बचे हैं, लेकिन जिस तरह से गौतम को दुष्यंत की परवाह नहीं है, उसी तरह से दुष्यंत को भी अब उनकी ज्यादा परवाह नहीं रही है। जजपा पूरी निष्ठा के साथ भाजपा के साथ अपने गठबंधन धर्म का निर्वाह कर रही है।

गठबंधन की सरकार ने एक साल में लिए 1व अहम फैसले

1. हरियाणा के युवाओं को यहां की फैक्ट्रियों में 75 फीसदी रोजगार की गारंटी।

2. पंचायती राज सिस्टम में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण।

3. जमीनों की रजिस्ट्री के लिए आनलाइन सिस्टम तैयार।

4. एक लाख नई सरकारी नौकरियां देने का निर्णय।

5. चीन से आने वाली कंपनियों को अपने राज्य में फैक्ट्रियां लगाने के लिए तमाम सुविधाएं मुहैया।

6. सोनीपत-पलवल रेल कारिडोर को मंजूरी।

7. अच्छा काम करने वाली सौ महिला जनप्रतिनिधियों को स्कूटी।

8. कोविड के चलते मंत्रियों की स्वैच्छिक ग्रांट में कटौती।

9. प्रदेश में एक हजार प्ले स्कूल और अंग्रेजी मीडियम के स्कूल खोलने की घोषणा।

10. एसवाईएल नहर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट में पैरवी।

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