हरियाणा में किसान संगठनों के आंदोलन की काट बनी भाजपा की तिरंगा यात्राएं, ट्रैक्‍टरों से दे रही जवाब

Haryana BJP Tiranga Yatra हरियाणा भाजपा की तिरंगा यात्रा केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों के आंदोलन की काट बन गई है। भाजपा किसान संगठनों के आंदोलन के दौरान निकाली गई ट्रैक्‍टर रैली का जवाब ट्रैक्‍टरों से दे रही है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Tue, 10 Aug 2021 06:00 AM (IST) Updated:Tue, 10 Aug 2021 08:36 AM (IST)
हरियाणा में किसान संगठनों के आंदोलन की काट बनी भाजपा की तिरंगा यात्राएं, ट्रैक्‍टरों से दे रही जवाब
हरियाणा के बादली में तिरंगा यात्रा के दौरान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़। (जागरण)

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा में निकल रही भाजपा की तिरंगा यात्राएं आठ माह से चल रहे किसान संगठनों के आंदोलन पर भारी पड़ रही हैं। इन तिरंगा यात्राओं में शामिल ट्रैक्टर जहां किसान संगठनों के आंदोलन में जुटाए गए ट्रैक्टरों का सीधा जवाब है, वहीं पार्टी कार्यकर्ताओं का भारी जोश भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार तथा भाजपा संगठन के लिए मजबूत ढाल बन रहा है। भाजपा 15 अगस्त तक राज्य के सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में तिरंगा यात्राएं पूरी करेगी। अभी तक करीब दो दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में तिरंगा यात्राएं निकाली जा चुकी हैं, जिनमें पार्टी के शीर्ष नेताओं, मंत्रियों, सांसदों और विधायकों ने भागीदारी की।

आंदोलन में शामिल ट्रैक्टरों का जवाब तिरंगा यात्राओं में शामिल ट्रैक्टरों के ही जरिये

भाजपा विधायक दल की बैठक में एक अगस्त से तिरंगा यात्राएं निकालने की रणनीति तैयार की गई थी। इसकी शुरुआत जाट बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र लोहारू से हुई। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़, कृषि मंत्री जेपी दलाल और किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष सुखबीर मांढी के नेतृत्व में निकली इस पहली तिरंगा यात्रा में ही कार्यकर्ताओं के जोश ने पार्टी को पीछे मुड़कर नहीं देखने दिया।

पंचकूला में विधानसभा स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता, अंबाला छावनी में गृह मंत्री अनिल विज, महेंद्रगढ़ में पूर्व मंत्री प्रो. रामबिलास शर्मा, बल्लभगढ़ में परिवहन मंत्री पंडित मूलचंद शर्मा, भिवानी में पूर्व मंत्री घनश्याम सर्राफ, पानीपत में विधायक महीपाल ढांडा, पलवल में विधायक दीपक मंगला और बादली में प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ के नेतृत्व में निकली इन तिरंगा यात्राओं से प्रदेश में ऐसा माहौल बना कि संगठन और कार्यकर्ता दोनों केसरिया रंग में रंगते चले गए।

भाजपा नेता तिरंगा यात्राओं के जरिये अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में हुए सक्रिय

भाजपा की तिरंगा यात्रा शुरू होने से पहले किसान संगठनों के आंदोलन ने गठबंधन सरकार के नेताओं की नाक में दम कर रखा था। ऐसा भी नहीं था कि गठबंधन की सरकार इन आंदोलनकारियों से निपट नहीं सकती थी, लेकिन किसी तरह का बल प्रयोग कर सरकार इसे मुद्दा नहीं बनने देना चाहती थी।

लिहाजा आंदोलनकारियों के आंदोलन को भाजपा ने तिरंगा यात्रा के हथियार से काटने की मजबूत रणनीति तैयार की, जिसका असर यह हुआ कि संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं को सार्वजनिक मंच से कहना पड़ा कि वह न तो तिरंगा यात्रा में किसी तरह का विघ्न डालेंगे और न ही इसका विरोध करेंगे। अब राज्य के हर विधानसभा क्षेत्र में पूरे उत्साह के साथ तिरंगा यात्राएं निकाली जा रही हैं। इन तिरंगा यात्राओं के जरिये भाजपा के उन नेताओं को पब्लिक के बीच जाने का अच्छा मौका मिल गया, जो आंदोलनकारियों के विरोध की वजह से सार्वजनिक कार्यक्रमों से कन्नी काट रहे थे।

तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों के नेता अब तक हरियाणा सरकार के तमाम बड़े नेताओं का विरोध कर चुके हैं। वार्ता की पेशकश के बावजूद कोई आंदोलनकारी बातचीत करने को आगे नहीं आ रहा। आंदोलन भी लगातार राजनीतिक रंग लेता जा रहा था।

आंदोलन स्थलों पर बढ़ती आपराधिक वारदातें, संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं में जबरदस्त तरीके से उभर रहे मतभेद और राजनीतिक दलों के नेताओं की इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी ने भाजपा के रणनीतिकारों को तिरंगा यात्रा के रूप में ऐसी रणनीति बनाने को मजबूर कर दिया था, जिसकी कोई काट नहीं है। भाजपा की तिरंगा यात्राओं ने किसान संगठनों के आंदोलन और उनकी रणनीति को बैकफुट पर लाकर खड़ा कर दिया है।

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