किसान संगठनों की हरियाणा सरकार से वार्ता असफल, आज संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में रखेंगे सभी मसले
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल के आवास पर चार घंटे तक चली किसान संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठक में कोई नतीजा नहीं निकला। किसान संगठन हर तरह के मुकदमे वापस लेने की मांग कर रहे हैं। सरकार गंभीर मुकदमों को रद करने के हक में नहीं है।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा तीन कृषि कानून वापस लेने के बाद हरियाणा सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं के बीच हुई वार्ता के खास नतीजे सामने नहीं आ सके। संयुक्त किसान मोर्चा के 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने हरियाणा के दिवंगत किसानों को मुआवजा देने, उनके परिजनों को नौकरी दिए जाने तथा किसानों पर दर्ज तमाम मुकदमे वापस लेने की मांग सरकार के समक्ष रखी। सरकार ने कहा कि प्रधानमंत्री ने बिना शर्त किसानों की सबसे बड़ी मांग मान ली है। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी संबंधी कानून बनाने के लिए केंद्रीय कमेटी के गठन की दिशा में सरकार पूरी गंभीरता के साथ आगे बढ़ रही है। ऐसे में अब आंदोलन को बरकरार रखने का कोई औचित्य नहीं है।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल के निवास पर गत रात करीब चार घंटे तक चली बैठक के बाद संयुक्त किसान मोर्चा के नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने वार्ता विफल हो जाने का दावा किया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के समय किसानों पर आंदोलन से पहले और बाद में दर्ज सभी मुकदमे वापस लेने की मांग रखी गई। इन मुकदमों की संख्या 262 के आसपास है, जिसमें करीब पांच हजार लोगों को नामजद किया गया है। आंदोलन करते हुए हरियाणा के 110 किसानों की जान गई है। उन सभी के परिजनों को उचित मुआवजा तथा परिवार के सदस्यों को सरकारी नौकरी देने की मांग की गई। दिवंगत किसानों की याद में संयुक्त किसान मोर्चा एक शहीद स्मारक बनाना चाहता है। इसके लिए सोनीपत के आसपास जगह देने की मांग सरकार से की गई।
गुरनाम सिंह चढूनी ने दावा किया कि प्रदेश सरकार किसी भी मुद्दे को मानने के लिए सहमत नहीं हुई है, इसलिए मुख्यमंत्री के साथ हुई बातचीत का पूरा मसौदा शनिवार यानी आज संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के समक्ष रखा जाएगा। उस बैठक में तय होगा कि आगे किस तरह की रणनीति रहेगी। किसान संगठनों की ओर से बातचीत में गुरनाम सिंह चढूनी के अलावा भाकियू नेता रतन मान, राकेश बैंस, अभिमन्यु कुहाड़, रामपाल चहल, जरनैल सिंह, जोगेंद्र नैन और इंद्रजीत शामिल हुए।
हरियाणा सरकार की ओर से वार्ता में मुख्यमंत्री मनोहर लाल के अलावा उनके प्रधान सचिव वी उमाशंकर, सीआइडी चीफ आलोक कुमार मित्तल और एडवोकेट जनरल बलदेव राज महाजन शामिल हुए। मुख्यमंत्री निवास पर हालांकि मुख्य सचिव संजीव कौशल समेत तमाम अधिकारी मौजूद थे, लेकिन वार्ता में इन्हीं अधिकारियों की भागीदारी रही। मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि प्रदेश सरकार के साथ बातचीत काफी सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई है। चीजें धीरे-धीरे आगे बढ़ रही हैं। केंद्र सरकार की ओर से किसानों पर दर्ज मुकदमों की वापसी के संबंध में जो भी दिशा-निर्देश प्राप्त होंगे, उन पर अमल किया जाएगा।
बातचीत को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं में मतभेद
संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं में इस बातचीत को लेकर मतभेद उभकर सामने आने की बात कही जा रही है। संयुक्त किसान मोर्चा के कई सदस्य इस बात से नाराज हैं कि बातचीत में गुरनाम सिंह चढूनी अकेले क्यों शामिल हुए, जबकि उन्हें संयुक्त किसान मोर्चा के बाकी नेताओं के साथ ही वार्ता में जाना चाहिए था। संयुक्त किसान मोर्चा की शनिवार को होने वाली बैठक में इस मुद्दे पर घमासान मच सकता है। संयुक्त किसान मोर्चा की चार दिसंबर की यह बैठक दिल्ली बार्डर पर होगी, जिसमें अगली रणनीति तैयार की जाएगी।
गंभीर श्रेणी के मुकदमों की भी वापसी चाह रहे किसान संगठन
मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों का कहना है कि हरियाणा सरकार की ओर से किसानों पर दर्ज मुकदमों में से सामान्य घटनाओं से जुड़े केस वापस लेने पर सहमति बन गई थी। कई मुकदमे ऐसे हैं, जो गंभीर अपराध की श्रेणी में आते हैं। किसान संगठन चाहते थे कि हर तरह के मुकदमों को रद किया जाए, जबकि बहुत से केस तो कोर्ट में चल रहे हैं। हालांकि केंद्र सरकार की ओर से किसानों पर दर्ज मुकदमों को वापस लेने के लिए राज्यों पर ही फैसला छोड़ा हुआ है, लेकिन प्रदेश सरकार को इन मुकदमों को वापस लेने के लिए बीच का रास्ता निकालने का कोई समय संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से नहीं दिया गया है।
शहीद स्मारक के लिए जमीन पर यह आया सुझाव
संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने बैठक में जब दिवगंत हुए किसानों की याद में सोनीपत के आसपास शहीद स्मारक बनाने के लिए जमीन की मांग रखी तो सुझाव आया कि सारी जमीन के मालिक खुद किसान हैं। संयुक्त किसान मोर्चा यदि चाहता है कि वास्तव में स्मारक बने तो सरकार को इस पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन सरकार इसके लिए जमीन नहीं देगी, बल्कि किसान संगठन खुद चाहें तो मिलकर किसी भी किसान से यह जमीन खरीद सकते हैं। वार्ता में सरकार की ओर से किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को रात्रिभोज का निमंत्रण दिया गया था, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया।