बढ़ती बच्ची के लिए मां एक अनमोल उपहार व असली खजाना, गुरुग्राम के एक कस्टडी पर हाई कोर्ट की टिप्पणी

पति पत्नी के विवाद के बाद बच्ची पिता के साथ रह रही है। गुरुग्राम का यह मामला हाई कोर्ट पहुंचा तो हाईकोर्ट ने कहा कि बढ़ती बच्ची के लिए मां एक अनमोल खजाना है। उसका मां के साथ रहना उचित होगा।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Mon, 01 Mar 2021 04:35 PM (IST) Updated:Mon, 01 Mar 2021 04:35 PM (IST)
बढ़ती बच्ची के लिए मां एक अनमोल उपहार व असली खजाना, गुरुग्राम के एक कस्टडी पर हाई कोर्ट की टिप्पणी
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की फाइल फोटो।

चंडीगढ़ [दयानंद शर्मा]। एक सुखी वैवाहिक घर की नींव प्यार व खुशियों को साझा करने तथा दुख में साथ खड़े होने से तैयार होती है न कि चमचमाते फर्श और सीमेंट की दीवारों पर खड़ी इमारत खुशियों का घर है। कई बार पति-पत्नी में अहंकार और गलतफहमी के चलते वैवाहिक कलह इस स्तर पर पहुंच जाता है कि सब कुछ खत्म हो जाता है। इस मामले में बच्चे की व्यावहारिक रूप से कोई भूमिका नहीं होती, लेकिन इसका बच्चे के मनोविज्ञान, मानसिक और शारीरिक तौर पर बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। खासकर जब बच्चा एक लड़की हो।

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी एक कस्टडी मामले का निपटारा करते हुए की। हाई कोर्ट ने माना कि एक मां का साथ एक बढ़ती लड़की के लिए बहुत जरूरी है, जब तक उचित कारण नहीं हो तब तक एक बच्चे को मां के प्यार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। किशोर लड़कियों के लिए मां के साथ पर जोर देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि मां एक अनमोल उपहार व असली खजाना है और विशेष रूप से 13 साल की बढ़ती उम्र की लड़की के लिए जो एक बच्चे के लिए मन की भावना बगैर कहे महसूस कर सकती है। इस उम्र से उसके जीवन का महत्वपूर्ण चरण होता है।

हाई कोर्ट के जस्टिस एजी मसीह व जस्टिस अशोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने एक लड़की की हिरासत से संबंधित याचिका का फैसला करते हुए यह आदेश दिए हैं। इस मामले में गुरुग्राम के एक युगल की शादी 2006 में हुई थी और शादी के बाद 2008 में एक लड़की का जन्म हुआ था। कुछ समय बाद युगल में अनबन हो गई और दोनों अलग-अलग रहने लगे। गुरुग्राम की फैमिली कोर्ट ने मां की याचिका पर सुनवाई करते हुए 30 मई 2017 को एक आदेश जारी कर लड़की की कस्टडी मां को देने का आदेश दिया था। इन आदेश को महिला के पति ने हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए रद करने व बच्ची की कस्टडी उसे देने की मांग की।

पति का तर्क था कि मां के पास रहने से बच्ची का सही विकास नहीं हो पाएगा। दूसरी ओर मां ने तर्क दिया कि वह एक पढ़ी-लिखी महिला है और अपनी बेटी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने और उसके लिए बेहतर और सुरक्षित घर उपलब्ध कराने में सक्षम है। दोनों पक्षों को सुनकर हाई कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिता बच्चों के हित के लिए सभी कोशिश करता है। पिता की पृष्ठभूमि की जांच करने के बाद, हाई कोर्ट ने देखा कि वह कम बोलने वाला व एकांतप्रिय व्यक्ति है, जिसने सामाजिक दायरे और दोस्तों से खुद को अलग कर लिया है।

हाई कोर्ट ने यह भी पाया कि एक ही घर में रहने के बाद भी लड़की भूतल पर रहने वाले दादा-दादी के साथ भी बातचीत नहीं कर पाती। इसका मतलब यह है कि जब पिता काम के लिए बाहर होता है तो लड़की पहली मंजिल पर अकेले रहती है। हाई कोर्ट ने यह भी पाया कि बेटी अपनी मां के साथ रहना चाहती है। हाई कोर्ट ने पिता की दलील को खारिज करते हुए कहा कि मां बेटी की देखभाल करने और उसे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की बेहतर स्थिति में हैं। कोर्ट ने लड़की की कस्टडी मां को देने का आदेश जारी रखते हुए पिता को महीने में हर दूसरे या चौथे शनिवार को लड़की से मिलने का अधिकार दिया। 

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