Local Body Elections: हरियाणा में बिना कानून पार्टी चुनाव चिन्ह पर लड़े जा रहे स्थानीय निकाय चुनाव

Local Body Elections हरियाणा में स्थानीय निकाय चुनाव 25 वर्ष से चुनाव चिन्ह (Election Symbol) पर लड़े जा रहे हैं लेकिन राज्य में नगर निगम और नगरपालिका कानूनों में पार्टी चुनाव चिन्ह आवंटित करने का प्रविधान नहीं है।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Mon, 13 Sep 2021 02:13 PM (IST) Updated:Mon, 13 Sep 2021 02:13 PM (IST)
Local Body Elections: हरियाणा में बिना कानून पार्टी चुनाव चिन्ह पर लड़े जा रहे स्थानीय निकाय चुनाव
भाजपा, कांग्रेस, जजपा व इनेलो का चुनाव चिन्ह। सांकेतिक फोटो

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। Local Body Elections: हरियाणा में राजनीतिक दलों के बीच शहरी निकाय चुनाव पार्टी सिंबल पर लड़ने अथवा न लड़ने को लेकर भले ही घमासान मचता रहे, लेकिन कानूनी तौर पर राजनीतिक दल अपने पार्टी के सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ सकते। शहरी निकाय चुनाव में राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्हों का आवंटन पूरी तरह से गैरकानूनी है, लेकिन इसके बावजूद राजनीतिक दल अपने चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ते रहे हैं और जीतते भी रहे हैं। यह गलती पिछले 25 साल से लगातार की जा रही है।

राज्य चुनाव आयोग पंचायत व शहरी निकाय चुनाव कराता है। शहरी निकाय चुनाव में आयोग फ्री चुनाव चिन्ह तक अलाट कर सकता है, लेकिन भारतीय चुनाव आयोग द्वारा रजिस्टर्ड व मान्यता प्राप्त दलों के आरक्षित चुनाव चिन्ह आवंटित नहीं कर सकता। भाजपा का चुनाव चिन्ह कमल का फूल, कांग्रेस हाथ (पंजा), जजपा चाभी और इनेलो का चुनाव चिन्ह चश्मा है। भाजपा ने अधिकतर निगम चुनाव अपने पार्टी चुनाव चिन्ह पर लड़े हैं, जबकि कांग्रेस में इसे लेकर अक्सर मतभेद रहता है।

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हरियाणा में किसी भी समय 43 शहरी निकायों के चुनाव हो सकते हैं। भाजपा अपने पार्टी चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने का फैसला लगभग ले चुकी है, जबकि कांग्रेस में पिछली बार की तरह इस बार भी घमासान चल रहा है। आश्चर्य की बात है कि नगर निकाय चुनाव में पार्टी का आरक्षित चुनाव चिन्ह अलाट करने का हरियाणा नगर निगम कानून 1994 में प्रविधान ही नहीं है। हरियाणा सरकार द्वारा बनाए हरियाणा नगर निगम निर्वाचन नियम 1994 और हरियाणा नगरपालिका निर्वाचन नियम 1978 में भी ऐसा उल्लेख नहीं है। इसके बावजूद राजनीतिक दल अपने पार्टी के चुनाव निशानों पर चुनाव लड़ते रहे हैं।

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार का कहना है कि राज्य चुनाव आयोग द्वारा समय-समय पर जारी किए जाने वाले चुनाव चिन्ह (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश के आधार पर होता रहा है, जो कि कानूनन सही नहीं है, क्योंकि जब तक प्रदेश विधानसभा द्वारा उक्त दोनों कानूनों में इस संबंध में स्पष्ट प्रविधान नहीं किया जाता, तब तक आयोग अपने द्वारा जारी आदेश मात्र से ऐसा नहीं कर सकता।

आज से 25 वर्ष पूर्व मई 1996 में हरियाणा के तत्कालीन राज्य चुनाव आयुक्त जेके दुग्गल ने फ्री चुनाव चिन्ह आवंटन संबंधी आदेश के साथ ही भारतीय चुनाव आयोग द्वारा पंजीकृत एवं मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों और उनके लिए आरक्षित चुनाव चिन्हों को भी उसके साथ शामिल कर लिया था। तब से इसी विषय पर राज्य चुनाव आयोग द्वारा समय समय पर जारी आदेशों में भी ऐसा किया जाता रहा है, जिस पर आज तक किसी ने भी आपत्ति दर्ज नहीं कराई है।

एडवोकेट हेमंत ने राज्य चुनाव आयुक्त धनपत सिंह को एक प्रतिवेदन भेजकर लिखा है कि कानून में बदलाव किए बिना किसी भी राजनीतिक दल को उनके लिए आरक्षित चुनाव चिन्ह अलाट न किए जाएं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 जेड ए के खंड (1) में राज्य निर्वाचन आयोग के पास प्रदेश में नगर निकाय चुनावों के अधीक्षण, निदेशन एवं नियंत्रण का पूर्ण अधिकार है, परंतु इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि आयोग द्वारा चुनावों के लिए जारी फ्री चुनाव चिन्हों के साथ साथ ही राजनीतिक दलों के आरक्षित चुनाव चिन्हों को भी आवंटित कर दिया जाए। आखिरकार संविधान के उक्त अनुच्छेद 243 जेड ए के खंड (2) में नगर निकाय चुनावों संबंधी सभी प्रविधान बनाने का अधिकार प्रदेश विधानसभा को है।

हिमाचल प्रदेश की सरकार ने बदला अपने राज्य का कानून

एडवोकेट हेमंत कुमार ने राज्य चुनाव आयुक्त धनपत सिंह को जानकारी दी है कि इसी वर्ष मार्च में पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में विधानसभा द्वारा हिमाचल प्रदेश नगर निगम कानून 1994 में राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्हों पर चुनाव करवाने के लिए कानूनी प्रविधान किया है। इसके बाद ही मंडी, धर्मशाला, सोलन और पालमपुर नगर निगमों में पार्टी चुनाव चिन्हों पर चुनाव करवाए जा सके थे। अगर मात्र राज्य निर्वाचन आयोग के आदेश से ही ऐसा करना कानूनन संभव होता, जैसा हरियाणा में आज तक होता रहा है, तो हिमाचल विधानसभा को उपरोक्त कानूनी संशोधन करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

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