Haryana Politics: ओमप्रकाश चौटाला की रिहाई प्रदेश की जाट लीडरशिप का चेहरा तय करेगी

चौटाला की रिहाई कांग्रेस में सबसे अधिक हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र सिंह के लिए चुनौती है। जाट मतदाताओं के बारे में हालांकि यह भी कहा जाता रहा है कि वे अधिक दिन सत्ता से दूरी बनाए नहीं रह सकते।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 30 Jun 2021 09:36 AM (IST) Updated:Wed, 30 Jun 2021 01:12 PM (IST)
Haryana Politics: ओमप्रकाश चौटाला की रिहाई प्रदेश की जाट लीडरशिप का चेहरा तय करेगी
ओमप्रकाश चौटाला की रिहाई के बाद प्रदेश की राजनीति रोचक मोड़ लेती नजर आ रही है। फाइल

चंडीगढ़, अनुराग अग्रवाल। हरियाणा के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके 86 साल के ओमप्रकाश चौटाला की रिहाई के साथ ही प्रदेश की राजनीति करवट लेती दिखाई दे रही है। जूनियर बेसिक टीचर (जेबीटी) भर्ती घोटाले में 10 साल के सजायाफ्ता इनेलो प्रमुख की समय पूर्व रिहाई ने कांग्रेस में कोहराम मचा दिया। उम्रदराज मगर दिल के मजबूत चौटाला अपनी अधिक आयु और दिव्यांगता के आधार पर तिहाड़ जेल से रिहा हुए हैं।

चौटाला ने अपनी समय पूर्व रिहाई के लिए केंद्र सरकार की 18 जुलाई, 2018 की उस अधिसूचना का हवाला दिया, जिसके तहत 60 साल से ज्यादा उम्र पार कर चुके पुरुष, 70 फीसद दिव्यांग एवं बच्चे अगर अपनी आधी सजा काट चुके हैं तो राज्य सरकार उनकी रिहाई पर विचार कर सकती है। चौटाला पिछले कई दिनों से इलाज के लिए गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती थे। जेल की औपचारिकताएं पूरी कर अपनी रिहाई के साथ ही चौटाला ने जहां इनेलो संगठन के विस्तार और मजबूती के लिए सक्रियता बढ़ाने का संकेत दिया है, वहीं उनकी रिहाई से प्रदेश की जाट लीडरशिप के लिए तमाम चुनौतियां पैदा हो गई हैं।

हरियाणा के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए चौटाला की रिहाई सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है। चौटाला के छोटे बेटे अभय सिंह ने अपने पिता की रिहाई के साथ ही हुड्डा को यह कहते हुए कठघरे में खड़ा कर दिया कि उन्हें जेल पहुंचाने का काम कांग्रेस ने किया था। अब हुड्डा की जेल जाने की बारी है। अभय का इस तरह का रुख सामने आने के बाद हुड्डा समर्थक पांच विधायकों गीता भुक्कल, आफताब अहमद, राव दान सिंह, बीबी बत्र और डॉ. रघुबीर कादियान ने अपने नेता पर लगे आरोपों की तुरंत सफाई दी। इन पांचों विधायकों ने कहा कि चौटाला को सजा तत्कालीन प्राथमिक शिक्षा निदेशक संजीव कुमार की शिकायत पर हुई थी। उस समय केंद्र में भाजपा और हरियाणा में खुद इनेलो की सरकार थी।

कांग्रेस की इस सफाई के बाद अभय चौटाला ने पांचों विधायकों की दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि 2007 में जब भूपेंद्र हुड्डा मुख्यमंत्री थे, तब धारा 120बी (जब दो या इससे अधिक लोग मिलकर कोई साजिश रचते हैं) के तहत एफआइआर में ओमप्रकाश चौटाला का नाम जोड़ा गया, जबकि 2003 में दर्ज पहली एफआइआर में उनका नाम नहीं था। कांग्रेस और इनेलो के इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच प्रदेश की राजनीति रोचक मोड़ लेती नजर आ रही है। राज्य में सिरसा जिले की ऐलनाबाद विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है। यहां से इनेलो विधायक अभय चौटाला ने तीन कृषि कानूनों के विरोध और किसानों के समर्थन में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। इस सीट पर किसी भी समय उपचुनाव का एलान हो सकता है। ऐसे में चौटाला के लिए यहां अपनी परंपरागत सीट को बचाने की कड़ी चुनौती होगी तो साथ ही जाटों के नेता के रूप में स्थापित होने की मंशा भी जोर मारेगी।

दरअसल हरियाणा की राजनीति काफी हद तक जाट मतदाताओं के इर्द गिर्द घूमती है। प्रदेश में जब भाजपा की सरकार बनी और गैर जाट मुख्यमंत्री के रूप में मनोहर लाल ने दूसरी बार हरियाणा की कमान संभाली, तब से जाट ठगा महसूस कर रहे हैं। जाट आरक्षण आंदोलन के बाद तीन कृषि कानूनों का लंबा विरोध इसी का नतीजा बताया जा रहा है। हरियाणा में भाजपा के पास ओमप्रकाश धनखड़, कैप्टन अभिमन्यु, बीरेंद्र सिंह, सुभाष बराला, जेपी दलाल, कमलेश ढांडा, महीपाल ढांडा, धर्मवीर सिंह और बृजेंद्र सिंह के रूप में चमकदार जाट चेहरे हैं। विपक्ष में भूपेंद्र सिंह हुड्डा जाटों के नेता माने जाते हैं। भाजपा के साथ गठबंधन करने वाली जननायक जनता पार्टी (इनेलो के बिखराव के बाद इस पार्टी का जन्म हुआ) के कोटे से डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला, निर्दलीय कोटे से बिजली एवं जेल मंत्री रंजीत चौटाला और हरियाणा एग्रो इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के चेयरमैन राकेश दौलताबाद जाट लीडरशिप का दम भर रहे हैं।

इनेलो के बिखराव और लंबे समय तक सत्ता से दूरी की वजह से जाट कहीं न कहीं हताश हो गए थे। उनका रुख शुरू में हुड्डा एवं दुष्यंत की तरफ रहा, लेकिन जिस तरह अभय सिंह चौटाला ने अपने पिता ओमप्रकाश चौटाला एवं भाई अजय सिंह चौटाला के जेल जाने के बाद सड़कों पर संघर्ष किया, उसी का नतीजा है कि आज ओमप्रकाश चौटाला के बाहर आने के बाद इस बात की चर्चा चल पड़ी है कि जाट आखिरकार किसके पाले में खड़े दिखाई देंगे। चौटाला की रिहाई कांग्रेस में सबसे अधिक हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र सिंह के लिए चुनौती है। जाट मतदाताओं के बारे में हालांकि यह भी कहा जाता रहा है कि वे अधिक दिन सत्ता से दूरी बनाए नहीं रह सकते। सत्ता प्रेम जाटों को कहीं न कहीं भाजपा एवं जजपा की तरफ खींचता रहा है, लेकिन इसके बावजूद इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य में चौटाला की रिहाई प्रदेश की जाट लीडरशिप का नया चेहरा तय करेगी।

[स्टेट ब्यूरो चीफ]

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