कृषि विधेयकों को लेकर भ्रम में हरियाणा के किसान, एमएसपी पर चाहते हैं लिखित गारंंटी
कृषि विधेकयाें को लेकर हरियाणा के किसान भ्रम की स्थिति में हैं। उनको कृषि विधेयकों के प्रावधानों के बारे में ठीक से जानकारी नहीं है। राज्य के किसानों को इससे अपने फसलों की एमएसपी को लेकर डर है और वे इस पर लिखित गारंटी चाहते हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। कृषि विधेयकों के विरोध के विरोध के बीच किसान भ्रम में हैं। हरियाणा किसान कृषि विधेयकों के प्रावधानों से अनजान हैं और इसी कारण संदेहों से घिरे हुए हैं। हरियाणा के किसानों में सबसे ज्याद चिंता फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर है। वे चाहते हैं कि केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एसएसपी) की गारंटी लिखित में दे। इसके अलावा किसान यह भी चाहते हैं कि उनकी फसल मंडी के अंदर बिके या बाहर एमएसपी से कम दर पर नहीं खरीदी जाए। असल में कृषि विधेयकों के कथित असर को लेकर किसानों का भ्रम अभी दूर नहीं हुआ है।
किसानों को सता रहा है मंडी व्यवस्था खत्म होने का भय
किसानों को लगता है कि वर्षों से यथावत चल रही एमएसपी का उसकी खुशहाली में भरपूर योगदान रहा है। एमएसपी ही नहीं रहेगी तो फिर खेती उसके लिए घाटे का सौदा हो जाएगी। इसके लिए किसानों के पास अनेक तर्क हैं। किसान बताते हैं कि कपास का समर्थन मूल्य 5515 रुपये प्रति क्विंटल है मगर बाजार में 4400 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है क्योंकि कपास खरीदने वाली केंद्र की एजेंसी ने हर मंडी में खरीद केंद्र नहीं बनाए हैं।
बंद में शामिल किसानों ने लिखित में मांगी एमएसपी की गारंटी
दैनिक जागरण ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में भारत बंद के आह्वान के अंतर्गत प्रदर्शनों में शामिल किसानों से उनके विरोध का असल कारण पूछा तो इनमें से 75 फीसद कृषि विधेयकों के असर से अनभिज्ञ थे। उनका कहना था कि वे किसान नेताओं के कहने पर प्रदर्शनों में शामिल होने पहुंचे थे।
कुछ किसानों का सवाल था कि केंद्र सरकार एमएसपी की गारंटी लिखित में क्यों नहीं देती। हालांकि इन किसानों को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बयान और राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल के आश्वासन याद दिलाए जाते हैं तो भी ये किसान यही दोहराते हैं कि जब एमएसपी लागू रहेगी तो लिखित में जारी करने में क्या हर्ज है?
कुछ किसानों को यह भी भ्रम था कि मंडी में उसकी फसल बिकती है तो उसके साथ धोखाधड़ी होने की संभावना नहीं के बराबर होती है मगर मंडी के बाहर यदि कोई निजी कंपनी या फर्म किसान के साथ धोखा कर लेगी तो उस पर किसान का कोई सामाजिक दबाव नहीं रहेगा। मोटे तौर पर अब किसान का विरोध सिर्फ इसी बात को लेकर रह गया है कि जो बात केंद्र व राज्य सरकार मौखिक रूप में कह रही है वह लिखित तौर पर कह दे।