कांग्रेस हाईकमान को नजरअंदाज कर अपनी शर्तों पर राजनीति कर रहे हरियाणा के पूर्व सीएम हुड्डा
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस आलाकमान को नजरअंदाज कर रहे हैं और अपनी शर्तों पर राज्य में राजनीति कर रहे हैं। हुड्डा कांग्रेस के 23 असंतुष्ट नेताओं में भी शुमार हो रहे हैं।
चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपनी शर्तों पर राजनीति करते नजर आ रहे हैं। वह कांग्रेस हाईकमान की नजरअंदाज कर अपने खास शैली की सियासत कर रहे हैं। उनका साफ झुकाव व तालमेल कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के साथ नजर आता है और कांग्रेस के जी-23 नेताओं में शामिल दिखते हैं।
दरअसल, हुड्डा की अपनी अलग ही तरह की राजनीति है। कांग्रेस के असंतुष्ट वरिष्ठ नेताओं की सूची में शामिल हुड्डा कभी अपने दिल की बात जुबान पर नहीं लाते, लेकिन उनकी गतिविधियां पार्टी हाईकमान की बेचैनी बढ़ाने वाली होती हैं। कांग्रेस की दिल्ली में अक्सर होने वाली रैलियों में हुड्डा ही भीड़ जुटाते रहे हैं। कांग्रेस की बागडोर जब तक सोनिया गांधी के हाथों में रही, तब तक हुड्डा की गिनती पार्टी के संतुष्ट नेताओं में होती थी, मगर जब से राहुल गांधी को कांग्रेस का नेतृत्व सौंपने की कवायद चली, तब से हुड्डा जी-23 के बाकी नेताओं की तरह इस कवायद से ना-इत्तेफाकी रखने लगे हैं।
गुलाम नबी आजाद के साथ मित्रता धर्म निभाने जम्मू पहुंचे हुड्डा
कांग्रेस विधायक दल और विधानसभा में विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कहीं न कहीं यह लगता है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने से पार्टी का भला होने वाला नहीं है। सार्वजनिक रूप से यदि हुड्डा से राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर सवाल पूछा जाए तो वह साफ तौर पर यही कहते सुनाई देंगे कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी हमारी नेता हैं तथा उनके नेतृत्व में हम सभी की आस्था है।
हरियाणा में भी कर सकते हैं जी-23 के नेताओं को इकट्ठा
दूसरी ओर, हुड्डा ने जिस तरह से जी-23 के असंतुष्ट नेताओं के साथ प्रेम-प्यार की पींगें बढ़ा रखी हैं, उससे साफ है कि वह हरियाणा में कांग्रेस की बजाय अपनी राजनीति की ज्यादा ¨चता करते हैं। हाईकमान पर दबाव बनाने के लिए हुड्डा अक्सर अलग-अलग प्रयोग करते रहे हैं। इस बार बजट सत्र के बाद हुड्डा उत्तर हरियाणा में बड़ी रैली करने की तैयारी में हैं, ताकि हाईकमान को संदेश दिया जा सके कि हरियाणा में असली कांग्रेस वे ही हैं।
2019 चुनाव में हुड्डा की पसंद की टिकटों पर सैलजा ने कैंची चलाई तो हाईकमान के साथ ज्यादा उभरे मतभेद
लगातार 10 साल तक हरियाणा के सीएम रहे हुड्डा की आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद, राजबब्बर, शशि थरूर और मनीष तिवारी से अच्छी दोस्ती है। हुड्डा जम्मू में गुलाम नबी आजाद द्वारा आयोजिक गांधी ग्लोबल फैमिली कार्यक्रम में शरीक हुए हैं। प्रदेश की राजनीति में उनके संबंध रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी, कुमारी सैलजा और अशोक तंवर से भी अच्छे रहे, लेकिन जब-जब हुड्डा के राजनीतिक अस्तित्व को चुनौती मिली, तब तक उन्होंने इस प्रेम-प्यार को किनारे रखकर अपनी राजनीति की ज्यादा फिक्र की।
उनकी आजकल मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा से भी अच्छी नहीं बन रही है। अशोक तंवर के कांग्रेस छोड़ने के बाद 2019 का विधानसभा चुनाव हालांकि हुड्डा और सैलजा ने मिलकर लड़ा, लेकिन इस चुनाव में भी टिकट के बंटवारे को लेकर दोनों में गहरे मतभेद बन गए, जो अब मनभेद के रूप में सामने आ रहे हैं।
बेटे दीपेंद्र को आगे कर मतभेद खत्म करने की गुंजाइश भी
हरियाणा में कांग्रेस विधायकों की संख्या 30 है। इनमें 25 विधायक अकेले हुड्डा समर्थक हैं, जबकि किरण चौधरी और कुलदीप बिश्नोई खुद का स्वतंत्र नेतृत्व बताते हुए गांधी परिवार के खूंटे से जुड़े हैं। सैलजा, सुरजेवाला और कैप्टन अजय भी इस परिवार के प्रति अपनी वफादारी में कोई कसर नहीं छोड़ते।
कहने को तो हुड्डा के राज्यसभा सदस्य बेटे दीपेंद्र हुड्डा कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की कोर टीम के अहम सदस्य हैं, लेकिन उनको लगता है कि यदि 2019 के चुनाव में उनकी पसंद से टिकट बंट गए होते और सैलजा व सुरजेवाला उनकी पसंद के कुछ टिकटों में पेंच नहीं अड़ाते तो आज सरकार कांग्रेस की होती। इसी बात को आधार बनाकर अब हुड्डा समर्थकों ने जहां प्रदेश में हाईकमान के समानांतर अलग राजनीतिक लाइन खींच रखी है, वहीं दीपेंद्र को आगे करते हुए हाईकमान के साथ किसी भी तरह के मनभेद खत्म करने की गुंजाइश भी छोड़ी हुई है।
अगले चुनाव में कुछ अलग होगी कांग्रेस की फिजा
हुड्डा समर्थक आजकल सैलजा के खिलाफ अभियान चलाकर अपनी पसंद के नेता को अध्यक्ष बनवाने की चाह रखते हैं, जबकि हाईकमान को लगता है कि यदि सुरजेवाला, किरण, कुलदीप, कैप्टन और सैलजा के सिर पर हाथ बरकरार रहा तो हुड्डा कांग्रेस हाईकमान के सामने ज्यादा मुश्किलें खड़ी कर पाने में कामयाब नहीं हो सकेंगे। यह अलग बात है कि हाईकमान बहुत से अवसरों पर हुड्डा के दबाव में आता रहा है। ऐसे में यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि साढ़े तीन साल बाद होने वाले राज्य विधानसभा के चुनाव में हुड्डा और उनके विरोधियों का राजनीतिक अंदाज सबको चौंकाने वाला होगा।