Farmers Protest: हरियाणा के प्रगतिशील किसान बोले- किसान समझें, उन्हेंं बरसों की गुलामी से आजादी मिली

Farmers Protest हरियाणा के प्रगतिशील किसानों ने कृषि कानूनों को लंबी गुलामी से आजादी दिलाने वाला बताया है। उन्‍होंने आंदोलनकारी किसानों से कहा है कि वे इस कानून को ठीक से समझें यह बरसों की गुलामी से आजादी दिलाएगा।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Sat, 05 Dec 2020 08:40 AM (IST) Updated:Sat, 05 Dec 2020 12:41 PM (IST)
Farmers Protest: हरियाणा के प्रगतिशील किसान बोले- किसान समझें, उन्हेंं बरसों की गुलामी से आजादी मिली
हरियाणा के तरावड़ी के प्रगतिशील किसान विकास चौधरी और आंदोलनकारी किसान। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। अंबाला से दिल्ली जाते हुए जीटी रोड पर रास्ते में एक कस्बा पड़ता है तरावड़ी। वैसे तो यहां नगरपालिका है, लेकिन जीटी रोड से सटा होने के कारण खेती भी खूब होती है। पृथ्वी राज चौहान के किले और बासमती चावलों से तरावड़ी की पहचान न केवल भारत बल्कि विदेश में भी है। तरावड़ी का चावल बिक्री के लिए आधा दर्जन देशों में जाता है। यहां के 40 वर्षीय प्रगतिशील किसान हैं विकास चौधरी। बीए तक पढ़े-लिखे विकास ने दसवीं के बाद ही अपने पिता के साथ खेती शुरू कर दी थी। उनके पास 35 एकड़ जमीन है।

जीटी रोड बेल्ट पर बरसों से खेती कर रहे प्रगतिशील किसान विकास चौधरी की नजर में तीन कृषि कानून

पिता अब आराम करते हैं। खेत में घूमने-फिरने चले हैं। खेती का सारा कामकाज विकास ने स्वयं संभाला हुआ है। बाकी भाई नौकरी करते हैं। धान, गेहूं, मक्का और मूंग की खेती करने वाले विकास को अब तक देश-विदेश और अपने राज्य में 40 से ज्यादा अवार्ड मिल चुके हैं। पिछले 11 सालों से उन्होंने अपने खेत में रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं किया। पांच बार विदेश हो आए विकास वहां के किसानों को खेती में नए-नए प्रयोग के आइडिया देते हैं।

उम्र 40 साल, जमीन 35 बीघा, खेती का शौक 10वीं से, प्रगतिशील किसानी के लिए मिले 40 अवार्ड

केंद्र सरकार ने करीब नौ साल पहले 2011 में विकास चौधरी के खेत में क्लाइमेट स्मार्ट फार्मिंग का एक प्रोजेक्ट लगाया था, जिसमें हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के चार और जापान के एक छात्र ने पीएचडी भी की। खेती के नए-नए आइडिया लेकर ये स्टूडेंट्स यहां से निकले। उनकी पीएचडी 2019 में पूरी हुई है। बहरहाल, आज पूरे देश में केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों पर बहस छिड़ी हुई है। अधिकतर प्रगतिशील किसान इन बिलों के हक में हैं और इनका विरोध करने वालों की समझ पर सवाल उठा रहे हैं।

क्लाइमेट स्मार्ट फाॄमग के प्रोजेक्ट में विकास चौधरी के खेत में पांच युवा कर चुके खेती में पीएचडी

विकास चौधरी के मुताबिक, मैं 1996 से खेती कर रहा हूं। सारा काम खुद देखता हूं। मुझे अच्छी तरह याद है, तब किसान इंटरनेशनल मार्केट के हिसाब से अपनी फसलों के दाम देने की मांग उठाते थे। आज सरकार ने किसानों को यह सुविधा दी है। वह अपनी फसल कहीं भी, कभी भी और किसी भी रेट पर बेच सकते हैं। उन्हेंं अपनी फसल कहीं भी ले जाने की आजादी है। स्टोर करने की आजादी है।

विकास कहते हैं, फसल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में कोई टैक्स नहीं लगता। किसान यदि अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते हैं तो उन्हेंं खुद के एफपीओ (फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन) बना लेने चाहिए।  यदि कोई नहीं बनाना चाहता तो वह किसी दूसरे एफपीओ से जुड़ सकता है। अपनी पसंद और चाह के हिसाब से फसल को बेचने के विकल्प किसान के पास हैं।

विकास चौध्ारी आगे कहते हैं, केंद्र व राज्य सरकारों ने किसानों को केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) दिए। उनका ब्याज पांच से सात फीसदी वार्षिक है, लेकिन इस पैसे को निकालकर अधिकतर किसानों ने अपने बेटों, रिश्तेदारों और बेटियों को गाडिय़ां दिला दी। बुलेट व कारें दिला दी। उन्हेंं विदेश भेज दिया। इस पैसे का सही ढंग से इस्तेमाल नहीं हुआ। फिर पछताना किस बात का है।

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विकास कहते हैं, मैं बरसों से कांट्रेक्ट फार्मिंग भी करता हूं। इसमें खरीदार की कई शर्तें होती हैं। हम उन्हेंं पूरा करते हैं तो जाहिर है कि रेट भी अच्छे मिलेंगे। विकास उदाहरण देते हैं कि आप किसी शहरी व्यक्ति से पूछिए कि इन कृषि कानूनों का क्या फायदा या नुकसान है। जवाब मिलेगा कि पूंजीपति अधिक रेट पर सामान बेचेंगे और किसान से सस्ता खरीदेंगे। इसके विकल्प के बारे में पूछने पर पता चलेगा कि शहरी आदमी पर अनाज या सब्जियों की खरीद के लिए डायरेक्ट किसान को अपना मित्र बनाना फायदे का सौदा मानेगा। फिर खुद अपने उत्पाद बेचने में दिक्कत कैसी।

विकास यहीं नहीं रुके। उनका कहना है कि आंदोलन राजनीतिक हवा ले रहा है। किसानों को समझने की जरूरत है। वह यह नहीं समझ पा रहे कि एमएसपी न तो बंद हो सकता और न ही खत्म हो सकता है। एमएसपी और वोट दोनों एक समान हैं। एमएसपी बंद हो गया तो समझो वोट गई। इसलिए किसानों को बेवजह डरने या घबराने की जरूरत नहीं है। केंद्र के तीनों बिल किसानों को नए आइडिया, इनोवेशन और प्रगतिशील व जैविक खेती की तरफ मोडऩे वाले हैं। इनमें किसी तरह का कोई संदेह नहीं है।

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