हरियाणा में धान की फसल के लिए किसानों को आढ़तियों के आगे नहींं फैलाने पड़े हाथ, खाते में सीधे भुगतान

हरियाणा में इस बार किसानों को धान की फसल के लिए आढ़तियों के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ा। ऐसा किसानों के बैंक खाते फसल की खरीद का सीधे भुगतान किए जाने से हुआ है। हरियाणा में किसानाें के खाते में 17 हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया गया।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Tue, 08 Jun 2021 09:28 PM (IST) Updated:Wed, 09 Jun 2021 06:44 AM (IST)
हरियाणा में धान की फसल के लिए किसानों को आढ़तियों के आगे नहींं फैलाने पड़े हाथ, खाते में सीधे भुगतान
हरियाणा में किसानों को सीधे भुगतान से काफी फायदा हुआ है।

चंडीगढ़, जेएनएन। हरियाणा में इस बार किसानों को धान की फसल की खेती के लिए आढतियों से मदद लेने या उनके आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं हुई। ऐसा उनके बैंक खाते में पिछली फसल का भगुतान किए जाने के कारण हुआ है। दरअसल, हरियाणा में किसानों के खाते में सीधे फसल का भुगतान का प्रयोग काफी कारगर रहा है। केंद्र व राज्य सरकार कई साल से किसानों को साहुकारी व्यवस्था के चंगुल से निकालने का प्रयास कर रही थी, लेकिन आढ़तियों के विरोध के चलते इस व्यवस्था को हर बार टाला जाता रहा।

आढ़तियों के विरोध के बावजूद इस बार 17 हजार करोड़ रुपये सीधे भेजे गए किसानों के खाते में

तीन कृषि कानूनों के विरोध के बीच प्रदेश सरकार ने आढ़तियों के तमाम विरोध को दरकिनार करते हुए इस मुद्दे पर स्टैंड लिया और किसानों के खातों में सीधे पैसा भेजकर किसानों का भरोसा जीतने की कोशिश की है। इस बार राज्य के किसानों के खातों में सीधे करीब 17 हजार करोड़ रुपये का भुगतान गया है।

हरियाणा सरकार की इस पहल से जहां किसान उत्साहित हैं और अगली धान की फसल तैयार करने में उन्हें साहुकारों के आगे हाथ नहीं पसारना पड़ा, वहीं आढ़तियों को अपने कारोबार के भविष्य की चिंता सताने लगी है। आढ़ती और किसान के बीच बरसों से लेनदेन होता आया है। किसानों को जब भी फसल के लिए खाद, बीज या ट्यूबवेल की मोटर के लिए जरूरत होती थी, वह सीधे आढ़तियों से पैसा उधार ले आते थे।

यहां तक कि घर के जरूरी खर्चों और शादी-ब्याह के लिए भी किसान समय-समय पर आढ़तियों से एडवांस के रूप में कर्ज उठाते रहे हैं। ऐसे मौके भी कई बार आए, जब किसानों को मूल से ज्यादा ब्याज देना पड़ा। आढ़तियों के माध्यम से भुगतान व्यवस्था का सबसे बड़ा नुकसान यह होता रहा कि किसान कभी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाया और उन्हें आढ़तियों की मनमर्जी का शिकार होना पड़ा।

आढ़तियों की भी अपनी परेशानी, किसानों को एडवांस में दिया पैसा वापस लेने में छूट रहे पसीने

केंद्र व हरियाणा सरकार की सीधे किसानों को भुगतान करने की व्यवस्था से हालांकि किसान साहुकारी व्यवस्था के चुंगल से बाहर निकले हैं, लेकिन कहीं न कहीं आढ़ती व कारोबारी भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। आढ़तियों का कहना है कि वह किसानों के सुख-दुख में काम आते रहे हैं। समय-समय पर उन्हें कर्ज देते हैं, लेकिन जब कर्ज वापस लेने की बारी आई तो सीधे किसानों के खातों में पेमेंट जाने लगी है। इससे किसान आढ़तियों से पूर्व में लिया पैसा लौटाने में न केवल आनाकानी कर रहे हैं, बल्कि अब आढ़तियों की आढ़त पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं।

इनेलो व्यापार सेल के प्रदेश अध्यक्ष सतीश जैन के अनुसार आढ़तियों को ढ़ाई परसेंट आढ़त मिलती थी। इस बार दबाव में सरकारी एजेंसियों ने यह आढ़त तो दी है, लेकिन भविष्य में सरकार की इस मंशा पर शक हो रहा है। साइलोज के गोदाम इसलिए बनवाए जा रहे हैं, ताकि खरीद एजेंसियां सीधे किसानों से अनाज एमएसपी पर खरीदें और उसे साइलोज के गोदामों में स्टोर कर दें।

व्‍यापारी नेता बोले- किसानों को सीधे भुगतान से आढ़तियों का कारोबार ठप हुआ

हरियाणा व्यापार मंडल के अध्यक्ष बजरंग दास गर्ग, व्यापारी नेता अशोक बुवानीवाला और विजय गुप्ता का कहना है कि किसानों के खातों में सीधे पेमेंट भेजकर आढ़तियों के कारोबार ठप कर दिए हैं। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष रतन मान ने व्यापारी नेताओं के दावे को सिरे से खारिज किया है।

मान का कहना है कि आढ़तियों को साहुकारी व्यवस्था के चुंगल से बाहर निकालकर सरकार ने सराहनीय काम किया है। ऐसा पहली बार हुआ कि भुगतान में तीन से देरी होने पर सरकार की ओर से किसानों को उनके खातों में नौ फीसद की दर से ब्याज भी दिया गया है। इस नई व्यवस्था से किसानों की आढ़तियों पर निर्भरता खत्म हो गई है।

प्लाटों पर निर्माण नहीं होने की स्थिति में दो फीसद जुर्माना

इनेलो व्यापार प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष सतीश जैन के अनुसार मार्केटिंग बोर्ड ने मंडियों में निर्माण नहीं किए गए प्लाटों पर कुल कीमत का दो प्रतिशत जुर्माना लगाने का निर्णय लिया है। यह आढ़तियों को तंग करने की नीति है। पहले साल पांच हजार, दूसरे साल 10 हजार और तीसरे साल 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया। अब इसे सीधे दो प्रतिशत कर दिया गया है। नारनौल समेत पूरे प्रदेश में यह व्यवस्था अपनाई गई है, जो उचित नहीं है। व्यापारी हित में इसे वापस लिया जाना चाहिए।

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