Ellenabad By-Election: चक्रव्यूह में फंसे अभय चौटाला, कांडा बन रहे चुनौती, अपनों की चाल में घिरे बैनीवाल
Ellenabad By-Election हरियाणा में ऐलनाबाद उपचुनाव 30 नवंबर को होगा। इसके लिए राजनीतिक दलों ने प्रचार में पूरी ताकत झौंक दी है। ऐलनाबाद की जंग रोचक हो रही है। भाजपा देवीलाल परिवार की फूट का फायदा उठाने की फिराक में है।
अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। Ellenabad By-Election: हरियाणा के सिरसा जिले की ऐलनाबाद विधानसभा सीट पर 30 अक्टूबर को होने वाले उपचुनाव में नतीजे चौकाने वाले हो सकते हैं। यह सीट पूर्व उप प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है। दो बार कांग्रेस को छोड़कर आज तक ऐलनाबाद में देवीलाल परिवार के अलावा किसी पार्टी का उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका है। इस बार की परिस्थितियों ने मुकाबला काफी बराबरी पर लाकर खड़ा कर दिया है। देवीलाल परिवार के दिग्गज जहां एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव प्रचार कर रहे हैं, वहीं भाजपा की कोशिश देवीलाल के परिवार में पड़ी इस राजनीतिक फूट का लाभ उठाने की है। मतदाताओं के ऊपर निर्भर करेगा कि वह किस पर अपना भरोसा जताते हैं।
ऐलनाबाद विधानसभा सीट पर एक लाख 86 हजार मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने वाले हैं। इस सीट के चुनाव नतीजों पर राजनीति के तमाम धुरंधरों और प्रदेश की जनता की निगाह टिकी हुई है। ऐलनाबाद का चुनाव जींद और बरोदा विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव से बिल्कुल अलग है। जींद में भाजपा ने पहली बार कमल खिलाया था। तब भाजपा, जजपा, इनेलो और कांग्रेस ने अलग-अलग ताल ठोंकी थी। बरौदा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दीपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थन वाले कांग्रेस उम्मीदवार इंदुराज नरवाल की जीत हुई थी। वहां हुड्डा और कांग्रेस के बीच किसी तरह की तनातनी सामने नहीं आई थी।
यूं भी कह सकते हैं कि सैलजा ने बरौदा के चुनाव में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। ऐसी स्थिति अब ऐलनाबाद के उपचुनाव में बनी हुई है, जिसमें सैलजा अपनी पसंद के उम्मीदवार पवन बैनीवाल के लिए खुलकर प्रचार कर रही हैं, जबकि हुड्डा और दीपेंद्र इसलिए प्रचार में दिखाई दे रहे हैं, ताकि कोई उन पर यह आरोप न लगा सके कि दोनों पिता-पुत्र कांग्रेस पार्टी का प्रचार करने ऐलनाबाद नहीं पहुंचे हैं।
कांग्रेस ने कुमारी सैलजा की पसंद के पवन बैनीवाल को ऐलनाबाद में टिकट दिया है। पवन बैनीवाल इनेलो प्रत्याशी अभय सिंह चौटाला के पुराने साथी रहे हैं, लेकिन राजनीति में ऐसी दोस्तियां ज्यादा दिन नहीं चलती। पवन बैनीवाल दो बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें कमल का साथ कभी रास नहीं आया। हुड्डा चाहते थे कि ऐलनाबाद में पवन के बजाय उनके पुराने समर्थक भरत बैनीवाल को टिकट मिले, लेकिन सैलजा उनका टिकट कटवाने में कामयाब रहीं। हुड्डा ने भी भरत को टिकट नहीं मिलने को अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से नहीं जोड़ा। संभव है कि हुड्डा ऐलनाबाद के संभावित चुनाव नतीजों से वाकिफ हों, इसलिए वह ऐलनाबाद के रण का बाहर से ही पूरा आनंद उठा रहे हैं। हुड्डा समर्थक भरत बैनीवाल के अचानक अस्पताल में भर्ती हो जाने को भी इसी आनंद से जोड़कर देखा जा रहा है।
गोबिंद के हक में हवा का रुख बदलने की कवायद
ऐलनाबााद में मुख्य मुकाबला इनेलो महासचिव अभय सिंह चौटाला और भाजपा-जजपा व हलोपा गठबंधन के प्रत्याशी गोबिंद कांडा के बीच है। आरंभ में गोबिंद कांडा हलके थे, लेकिन धीरे-धीरे उनकी पैठ बढ़ती जा रही है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में ऐलनाबाद में गोबिंद कांडा के हक में एक के बाद एक कई सभाएं की और मतदाताओं को यह समझाने की कोशिश की है कि गोबिंद कांडा के प्रति समर्थन का उन्हें क्या फायदा हो सकता है। मतदाता इस बात को समझे या नहीं, इसका पता 30 अक्टूबर को चल पाएगा।
गोपाल कांडा और अजय चौटाला ने पहचानी मछली की आंख
हलोपा के एकमात्र विधायक गोपाल कांडा अपने भाई गोबिंद कांडा की जीत के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। इसके लिए वह किसी भी सीमा तक जाने से कोई परहेज नहीं कर रहे। जजपा अध्यक्ष के नेता डा. अजय सिंह चौटाला अपने भाई अभय सिंह चौटाला को किसी सूरत में दोबारा विधाायक बनता नहीं देखना चाहते। अजय चौटाला और गोबिंद कांडा का निशाना मछली की आंख की तरह तय है। यह निशाना कितना फिट बैठता है, इसका अगले कुछ दिनों में पता चल जाएगा।
राजनीति के चक्रव्यूह में अकेले लड़ रहे अभय चौटाला
इनेलो महासचिव अभय सिंह चौटाला राजनीति के इस चक्रव्यूह में अकेले ही सबका सामना कर रहे हैं। इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला जेल से लौटने के बाद अपने बेटे अभय सिंह चौटाला के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। चौटाला ऐलनाबाद के लोगों को बताते हैं कि अभय सिंह की जीत क्यों जरूरी है। अभय सिंह को हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवं अपना भारत मोर्चा के संयोजक डा. अशोक तंवर का समर्थन मिल गया है।